इस जगह से हुई थी पिंडदान की शुरुआत, जानें किसने किया था पहला पिंडदान

भरत तिवारी/जबलपुर. महर्षि जावाली की तपो भूमि जबलपुर अपनी प्राचीनता और रहस्यमय स्थानों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. आज हम आपको ऐसी ही एक प्राचीन और रहस्यमय जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां से कहते हैं कि पिंडदान की शुरुआत की गई थी. जहां पहला पिंडदान स्वयं देवों के राजा इंद्रदेव ने अपने पूर्वजों का किया था, जहां आज भी उनके वाहन ऐरावत के पद चिन्ह मजूद हैं.

जबलपुर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लम्हेटा घाट में इंद्र गया कुंड मौजूद है. इसके बारे में कहा जाता है कि यहां की गहराई का आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है, कई वर्षों में कई विभाग वाले आए लेकिन आज तक कोई भी इसकी गहराई का पता नहीं लगा पाया है और इसी जगह पर पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों के राजा इंद्र ने अपने वाहन एरावत पर सवार होकर यहां पर आकर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था कहते हैं इस जगह की गहराई इतनी है कि यहां पर खारी विसर्जन करने के बाद उसे नीचे तक जाने में 24 घंटे लगते हैं.

आज भी यहां मौजूद है एरावत के पैरो के निशान
इंद्रगया कुंड में आज भी देवराज इंद्र के वाहन एरावत के पद चिन्ह मौजूद हैं, जो यह दर्शाते हैं कि देवों के राजा इंद्र यहां पर आए थे. इंद्र गया कुंड के पास ही एक चट्टान में पैरों के निशान की आकृति साफ तौर पर दिखाई देती है, जिनके बारे में स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि यह देवराज के वाहन एरावत के ही पैर हैं. जब इंद्र देव अपने वाहन एरावत पर सवार होकर यहां आकर रुके थे तब उन्होंने यहां अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था और जिस जगह पर उनका वाहन रुका हुआ था वहां पर उनके पद चिन्ह आज भी मौजूद हैं.

लोगों ने बताया कि इंद्र गया कुंड की गहराई आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है. कहते हैं लम्हेटाघाट मध्य प्रदेश के सबसे पुराने घाटों में से एक है, जहां पर कई महापुरुषों ने तपस्या की है. जिनमें से महर्षि जवाली भी एक हैं जिनके नाम पर जबलपुर को अपना नाम मिला, जहां पर मां नर्मदा की गहराई सबसे ज्यादा है. मान्यता है कि इंद्रदेव ने यहां पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था और कहते हैं इसी जगह से पिंडदान की शुरुआत भी की गई थी.

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