कुंदन कुमार/गया. पिछले कुछ वर्षों से मौसम का बदलता रूप खेती-किसानी के लिए चुनौती बनकर उभर रहा है. मौसम का अचानक बदल जाना अब एक स्थायी समस्या बनता जा रहा है. यकीनन जलवायु में हो रहे परिवर्तन खेती-किसानी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. एक तरफ जहां विश्व की बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न, दलहन-तिलहन, फल-सब्जी, दूध, मांस, अंडा आदि खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ रही है. वहीं, पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी घटनाएं खेती किसानी के सामने नई चुनौती पैदा कर रही हैं. अब इससे किसानों को परेशानी नहीं होगी. अब जलवायु अनुकूल खेती के लिए तैयारी हो गई है.
हमेशा देखने को मिलता है कि कम बारिश के कारण किसानों की चिंता भी बढ़ रही है. जरूरत होने पर भी कई-कई दिनों तक बरसात के दिनों में भी पानी नहीं बरसता है. इस कारण बारिश पर आधारित खरीफ मौसम की फसलें सूख जाती हैं. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक को अपनाया जाए. हालांकि जलवायु अनुकूल खेती के लिए अब भारत सरकार और राज्य सरकार भी काम कर रही है. इस बीच बिहार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.
पांच गांव में सफल रहा प्रयोग और अब…
बिहार के गया जिले में जलवायु अनुकूल खेती के लिए 2019 में पांच गांव का चयन किया गया था, जहां पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक के माध्यम से किसानों से खेती कराई जाती है. गया के ये पांच गांव मानपुर ब्लॉक का रसलपुर और रुपसपुर, तो गया टाउन ब्लॉक का रसलपुर, तकेया और रहीम बिगहा का चयन किया गया था. इन गांवों के खेतों में पिछले साल जीरो टिलेज से धान, गेहूं, मक्का, मसूर एवं चना की फसल कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में लगाई गई थी. किसानों को कम लागत और मेहनत में अच्छी उपज मिली, तो अन्य किसान भी इस ओर कदम बढ़ा रहे हैं.
किसानों की बदलेगी किस्मत
गया कृषि विज्ञान केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक मनोज कुमार राय ने बताया कि जलवायु अनुकूल खेती शुरू होने से अब यहां के किसान एक साल में तीन बार फसल की बुआई करते हैं. पहले सिर्फ यहां धान और गेंहू होती थी, लेकिन रबी फसल के बाद मूंग की खेती भी शुरू हुई है. जलवायु अनुकुल खेती में मुख्य रूप से इस बात का ध्यान रखा जाता है कि अच्छे प्रभेद का चयन किया जाता है, ताकि विपरीत परिस्थिति में भी फसल का उत्पादन अच्छा हो. जीरो टिलेज के माध्यम से गेंहू, मक्का, मसूर को लगाया जाता है. इसका फायदा यह होता है कि कम लागत, कम पानी, कम श्रम में बेहतर उत्पादन होता है और किसानों को प्रति एकड़ 3 हजार रुपये की बचत हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED : November 29, 2023, 15:13 IST