नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) प्रशिक्षण को शामिल करने का निर्देश देने संबंधी याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया और कहा कि यह पूरी तरह से शैक्षणिक नीति का मामला है.
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि कई अलग-अलग चीजें हैं जो बच्चों को सीखनी चाहिए, लेकिन न्यायालय सरकार को उन सभी को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्देश नहीं दे सकता.
पीठ ने कहा, “उन्हें (बच्चों को) पर्यावरण के बारे में सीखना चाहिए. बच्चों को भाईचारे के बारे में सीखना चाहिए. बच्चों को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन के बारे में सीखना चाहिए. हम सरकार से यह नहीं कह सकते कि वह हर उस चीज़ को शामिल करे जो वांछनीय है… ये सरकार द्वारा तय किये जाने वाले मामले हैं.”
रांची निवासी याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोविड-19 के बाद अचानक दिल का दौरा पड़ने की बढ़ती घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक ज्वलंत मुद्दा है. पीठ ने कहा, “केवल यही एक ज्वलंत मुद्दा क्यों है, बहुत सारे अलग-अलग मुद्दे हैं…आप स्कूली पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल नहीं करते.”
पीठ ने कहा, “बच्चों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए, यह पूरी तरह से सार्वभौमिक स्वीकृति का मामला है. इसलिए, क्या शीर्ष अदालत को इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करना चाहिए.” पीठ ने कहा कि यह सरकार को तय करना है कि समग्र पाठ्यक्रम क्या होना चाहिए. इसने कहा, ‘यह पूरी तरह से शैक्षणिक नीति का मामला है.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा नीतिगत क्षेत्र से संबंधित है. न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता सुझावों के साथ उचित प्राधिकार के पास जाने के लिए स्वतंत्र हैं. पीठ ने कहा, ‘इसके अलावा, शीर्ष अदालत ऐसा कोई परमादेश जारी करने की इच्छुक नहीं है जिसकी मांग की गई है. याचिका का निपटारा किया जाता है.’
.
Tags: Supreme Court
FIRST PUBLISHED : November 28, 2023, 22:13 IST