7 अक्टूबर को रॉकेट हमलों के बाद इजरायल में कम से कम 1200 लोग मारे गए थे. इसके बाद इजरायल ने हमास का नामोनिशान मिटाने की कसम खाई है. इजरायल 7 अक्टूबर से ही गाजा पट्टी पर हमास के ठिकानों को निशाना बना रहा है. बीते कुछ दिनों से इजरायली सेना ने गाजा में ग्राउंड ऑपरेशन भी तेज कर दिया है. गाजा में इजरायली हमलों में अब तक 15,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इजरायल ने हमास को जड़ से खत्म करने और अपने क्षेत्र को सुरक्षित करने का टारगेट रखा है.
क्योंकि इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कह चुके हैं कि इजरायल हमास के खिलाफ अपना युद्ध जारी रखेगा. भले ही बंधकों को रिहा करने के लिए हमास के साथ अस्थायी रूप से सीजफायर लागू हो. ऐसे में गाजा के भविष्य को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
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इजरायल-हमास जंग से क्या चाहता है अमेरिका?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले वेस्ट बैंक से मॉडरेट फिलिस्तीनी अथॉरिटी को गाजा में वापस लाना चाहते हैं. बाइडेन फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण को फिर से शुरू करना चाहते हैं. हाल ही में अपने एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसका जिक्र भी किया था.
वेस्ट बैंक और गाजा को अलग रखना चाहती है नेतन्याहू सरकार
इजरायल और हमास की जंग के बीच गाजा के ताजा हालात पर इजरायल, अरब दुनिया, यूरोप और अमेरिका में दो दर्जन अधिकारियों, राजनयिकों और विश्लेषकों से बात की गई. अमेरिका से उलट इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार फिलिस्तीनी राज्य का विरोध करती है. नेतन्याहू सरकार वेस्ट बैंक और गाजा को अलग रखना चाहती है.
सीजफायर के बिना भविष्य पर चर्चा नहीं करेगी फिलिस्तीनी अथॉरिटी
फिलिस्तीनी अथॉरिटी का कहना है कि वह सीजफायर के बिना भविष्य पर चर्चा नहीं करेगा, लेकिन निजी तौर पर अधिकारियों का कहना है कि वे जंग से लौटने के लिए तैयार हैं; मगर इजरायली टैंकों के डर से नहीं. एक सीनियर अधिकारी ने कहा, यूरोपीय संघ इसकी वापसी का समर्थन करता है और गाजा में अपने सीमा नियंत्रण मिशन को मजबूत कर सकता है. 7 अक्टूबर के हमलों के बाद फिलहाल इसे वापस ले लिया गया था. यूरोपीय संघ के टॉप अधिकारी इस मामले में फिलिस्तीनी अथॉरिटी और प्रमुख अरब राज्यों के अधिकारियों के साथ चर्चा कर रहे हैं.
जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान सफ़ादी ने दिया बड़ा बयान
जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान सफ़ादी ने 18 नवंबर को बहरीन में मनामा डायलॉग सुरक्षा सम्मेलन में बड़ा बयान दिया था, “मुझे एक चीज साफ कर लेने दीजिए. मुझे पता है कि मैं जॉर्डन की ओर से बोल रहा हूं, लेकिन मैंने इस मुद्दे पर हमारे लगभग सभी अरब भाइयों के साथ चर्चा की है. हम साफ कर देना चाहते हैं कि गाजा में कोई अरब सैनिक नहीं जाएगा.”
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हैती या लेबनान की आर्मी का ऑप्शन नहीं मानेगा इजरायल
ऐसे में अब कैरिबियन देश हैती या लेबनान की आर्मी का विकल्प बचता है, लेकिन इन्हें उतना प्रभावी नहीं माना जाता. जाहिर तौर पर इजरायल या तो इसे स्वीकार नहीं करेगा या एक बार लागू होने के बाद इसे अनदेखा कर देगा.
शांति कायम करने के लिए फिलिस्तीनी पक्ष को नजरअंदाज करने का आरोप
अरब के कई नेता पिछले महीने हमास के हमले को इस बात के सबूत के रूप में देखते हैं कि इजरायल संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ शांति कायम करने के लिए फिलिस्तीनी पक्ष को नजरअंदाज कर रहा है. उनका तर्क है कि हमला अपनी बर्बरता के कारण कम और अंतर्निहित कारकों के कारण ज्यादा महत्वपूर्ण था.
हमास को लेकर इजरायल का अलग नजरिया
इन सबके बीच इजरायली ज्यादातर अलग निष्कर्ष निकालते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने 2005 में गाजा से अपनी सेना और वहां बसने वाले लोगों को हटा लिया था. फिलिस्तीनी वहां फैक्ट्रियां, खेत और होटल बना सकते थे. इसके बजाय हमास ने गाजा पर कंट्रोल हासिल कर लिया और ज्यादातर रॉकेट और भूमिगत सुरंगें बनाईं. हमास ने हजारों आतंकवादियों को हत्या और हमले की ट्रेनिंग दी. हमास ने आबादी को गरीब बना दिया.
हमास को लेकर ये है सबक
सबक यह है कि इजरायल को कभी भी पड़ोसी क्षेत्र को फिलिस्तीनी सुरक्षा बलों के हाथों में नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि हमास फिर से गाजा पर कब्जा कर लेगा और इसकी जमीन से 7 अक्टूबर की तरह फिर से हमले की कोशिश करेगा. उनके लिए दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान और जर्मनी का मॉडल है. मॉडल के मुताबिक, मौजूदा फिलिस्तीनी अथॉरिटी को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए और रिलीफ पैकेज से नई यूनिट बनाई जानी चाहिए.
अरब नेताओं ने दी चेतावनी
जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला जैसे अरब नेताओं ने चेतावनी दी है कि गाजा की तबाही के परिदृश्य में युवाओं की एक पूरी पीढ़ी को यहूदी राज्य के खिलाफ कट्टरपंथी बनाने का जोखिम है. साथ ही, इसमें अरबों डॉलर भी खर्च होंगे. सवाल यह है कि इसे किससे और कैसे खर्च किया जाए और इसका फैसला कौन करेगा? कतर ने वर्षों से गाजा को फंडिंग की है, जिसका पैसा बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जा रहा है.
टू-स्टेट फॉर्मूले को छोड़ने की वकालत
इजरायल में कई लोगों का मानना है कि अब समय आ गया है कि फेल हो चुके टू-स्टेट फॉर्मूले को छोड़ दिया जाए. अब एक नया फॉर्मूला खोजे जाने की जरूरत है. मोशे दयान सेंटर फॉर मिडिल ईस्टर्न एंड अफ्रीकन स्टडीज के डायरेक्टर उजी रबी ने कहा, “ऐसा लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं. लोग पुरानी बातें लेकर आ रहे हैं. मैं कुछ ऐसा करने की कोशिश करूंगा, जो लीक से हटकर सोच वाला हो. ये कुछ अलग करने का मौका है.”
मिस्र को भी इस बात का है डर
दूसरी ओर, इजरायल अपने आर्मी ऑपरेशन को पूरा करने और नागरिक हताहतों की संख्या को सीमित करने के लिए अस्थायी रूप से गाजावासियों को मिस्र या अन्य अरब देशों में शिफ्ट करने के लिए दबाव डाल रहा है. मिस्र ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया है. मिस्र को इस बात का डर है कि इजरायल अपने पुराने रिकॉर्ड की तरह शायद इस बार भी गाजा के लोगों को वापस न बुलाए. हालांकि, इजरायल इससे इनकार करता आया है. उसका कहना है कि वह गाजा के अंदर एक बफर जोन बनाने की योजना बना रहा है, ताकि आतंकवादियों को उसके समुदायों से दूर रखा जा सके.
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गाजा में आगे क्या होगा?
गाजा में आगे क्या होगा इसकी योजना बनाने की कोशिश में कई लोग हाल के इतिहास पर नज़र डालते हैं. फिलिस्तीन अथॉरिटी 1994 से 2007 तक गाजा में इंचार्ज रही. 2006 के विधायी चुनावों में हमास ने फिलिस्तीनी अथॉरिटी की मुख्य पार्टी फतह को पछाड़ दिया. इसके बाद हमास ने फतह के अधिकारियों पर दबाव डालना शुरू कर दिया, जिससे गाजा में हिंसक गृहयुद्ध शुरू हो गया. सैकड़ों लोग मारे गए. आखिरकार फिलिस्तीन अथॉरिटी को गाजा पट्टी से निर्वासित कर दिया गया.
गाजा में सरकार चलाने की संभावनाएं
कम से कम अल्पावधि में गाजा में सरकार चलाने की संभावनाओं के रूप में दो नाम सामने आते हैं. इनमें से पहला नाम मोहम्मद दहलान का है, जो हमास के सत्ता में आने से पहले गाजा में फिलिस्तीन अथॉरिटी के टॉप नेता थे. दहलान ने राष्ट्रपति अब्बास को चुनौती दी थी. फिलहाल वो 2011 से अबू धाबी में निर्वासित जिंदगी जी रहे हैं. दूसरे नेता का नाम है मारवान बरघौटी. वह दो दशकों से इजरायली जेल में हैं. उन्हें वेस्ट बैंक में अत्यधिक प्रभावशाली नेता माना जाता है. बरघौटी को ही अब्बास का संभावित उत्तराधिकारी माना जाता है. गाजा में जंग खत्म करने की स्थिति में इजरायल को उसे रिहा करने के लिए तैयार रहना होगा.
गाजा को लेकर तमाम सवाल
इस समय गाजा को लेकर तमाम सवाल हैं- युद्ध कब समाप्त होगा? कितने लोगों बचे रहेंगे? कितने नागरिक मारे गए? क्या लेबनान के दखल से जंग अधिक गहराई तक फैली? यह भी स्पष्ट नहीं है कि जंग खत्म होने की स्थिति में प्रमुख जगहों पर फैसला लेने वावे कौन लोग होंगे?
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बेंजामिन नेतन्याहू को देना पड़ सकता है इस्तीफा
कई लोगों को उम्मीद है कि जब जंग खत्म होगा, तो बेंजामिन नेतन्याहू को 7 अक्टूबर को सुरक्षा चूक के लिए इजरायली प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. चूंकि उनकी सरकार विशेष रूप से राष्ट्रवादी है. ऐसे में इस बदलाव का मतलब नया नजरिया भी हो सकता है.
बाइडेन ने लेबनान और ईरान को दी थी वॉर्निंग
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजरायल का समर्थन करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है. अमेरिका ने लेबनान के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह और ईरान को इजरायल-हमास के जंग में नहीं कूदने की चेतावनी भी दी थी. अमेरिका ने पूर्वी भूमध्य सागर में दो लड़ाकू बेड़े भी भेजे हैं.
जंग के बाद गाजा में क्या बचेगा?
जंग के बीच तमाम सवालों और मुद्दों में एक अहम मुद्दा ये है कि गाजा में आखिर में क्या बचेगा? गाजा शहर का ज्यादातर भाग हमलों में खंडहर बन चुका है. गाजा के निवासी ज्यादातर शरणार्थियों के वंशज हैं और मुफलिसी में जिंदगी गुजारते हैं. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की कई एजेंसियां और अन्य सोसाइटियों के जरिए उनकी दैनिक और मुख्य जरूरतें पूरी होती हैं.
गाजा पट्टी की प्रतिष्ठा
गाजा पट्टी की प्रतिष्ठा वास्तविकता से भी ज्यादा भयानक है. विश्व बैंक के अनुसार, गाजा में लगभग सार्वभौमिक साक्षरता है, जो पड़ोसी मिस्र की तुलना में बहुत ज्यादा है. सूडान और चाड जैसे गरीब देशों की तो बात ही छोड़ दें. गाजा में शिशु मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा भी बेहतर है.
स्थानीय निकाय के उभरने से भी दिक्कत
ऐसे हालात में अगर कोई स्थानीय निकाय शासन के लिए उभरता है, तो स्थिति वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों के समान हो सकती है. यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके बारे में फिलिस्तीनियों ने वर्षों से शिकायत की है. उनका कहना है कि इजरायली सैनिक उनके अधिकारियों को अपमानित करते हैं, जिन्हें आबादी टोडी और कब्जे के एजेंट के रूप में खारिज कर देती है.
फिलिस्तीनियों का अलग रुख
वहीं, फिलिस्तीनी इसे अलग तरह से देखते हैं. रामल्ला स्थित अरब वर्ल्ड फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के हालिया सर्वे के मुताबिक, वे इस हमले को इजरायल पर जीत के रूप में देखते हैं. इससे पता चला कि टू-स्टेट फॉर्मूले के लिए समर्थन कम हो गया है. साथ ही जॉर्डन नदी से भूमध्य सागर तक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना में विश्वास बढ़ गया है.
इजरायली इसी तरह की भावना का हवाला देते हुए किसी और से सहयोग की अपेक्षा किए बिना पूरी तरह से अपनी सुरक्षा पर फोकस कर रहे हैं. दयान सेंटर के डायरेक्टर रबी ने कहा, “जब तक गाजा में स्थिरता नहीं है, इजरायल किसी पर भरोसा नहीं कर सकता. गाजा संकट का समाधान जो भी हो, इसका इजरायल की सुरक्षा ज़रूरतों से कुछ लेना-देना होना चाहिए.”
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