बीज मंत्र के साथ दे सूर्य को अर्घ्य, मिलेगा शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ…

उधव कृष्ण/पटना. हम सभी ये जानते हैं कि छठ व्रत में सूर्य देवता की पूजा-अर्चना की जाती है, जो प्रत्यक्ष रूप से हमें दिखते भी हैं. सूर्य ही सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं. लेकिन हम में से बहुत कम लोग अर्घ्य देने के यम नियम को जानते हैं. दरअसल, अर्घ्य देते समय भी मंत्र का उच्चारण किया जाता है. सनातन विज्ञान के अध्येता प्रेम पांडेय बताते हैं कि सही तरीके से मंत्रोचारण के साथ अर्घ्य देने से आशातीत फल प्राप्त होते हैं.

प्रेम पांडेय बताते हैं कि शास्त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है. पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा ली थी. वहीं, श्रीराम ने स्त्रोतम का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय प्राप्त की थी. इसके अलावा श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को जब कुष्ठ रोग हो गया था, तब उन्होंने सूर्य की उपासना करके ही इस रोग से मुक्ति पाई थी. प्रेम पांडेय बताते हैं कि सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है. इस अवसर पर सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है.

अर्घ्य के क्या-क्या हैं लाभ?
प्रेम पांडेय बताते हैं कि भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले और अत्यंत दयालु देव हैं. वे उपासक को आयु, आरोग्य, धन-धान्य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्य देते हैं. इसके अलावा वे सभी को चेतना देते हैं. सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है. जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते.

अर्घ्य के समय जपें यह मंत्र
उनके के अनुसार आप अर्घ्य के समय ॐ सूर्याय नम: का जाप कर सकते हैं. इसके अलावा अगर संभव हो तो आप सूर्य के इन बारह नामों के मंत्र का भी उच्चारण कर सकते हैं जो इस प्रकार हैं. ‘ॐ सूर्याय नम:, ॐ भास्कराय नम:,ॐ रवये नम:, ॐ मित्राय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगय नम:, ॐ पुष्णे नम:, ॐ मारिचाये नम:, ॐ आदित्याय नम, ॐ सावित्रे नम:, ॐ आर्काय नम:, ॐ हिरण्यगर्भाय नम:’.

छठ देता है समानता का संदेश
इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है. समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं, उनके हाथों से बनी सामग्रियों को ही इस पूजा के लिए शुद्ध माना जाता है.

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