इस ऋषि के कहने पर माता सीता ने पहली बार किया था छठ, आज भी मौजूद हैं पदचिह्न

भास्कर ठाकुर/सीतामढ़ी: बिहार के साथ उत्तर प्रदेश, झारखंड सहित कई राज्यों में छठ का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं और तमाम विधि-विधान से छठ के दौरान भगवान भास्कर की पूजा आराधना करते हैं. प्राचीन काल से ही यह परंपरा चली आ रही है. छठ पूजा को लेकर अक्सर लोगों के जेहन में आता है कि इस लोक आस्था का वहां पर्व की शुरुआत कैसे हुई और किसने पहली बार छठ पर्व किया था.

तो आइए हम जानते हैं संस्कृत महाविद्यलय देवघर के प्राचार्य रह चुके है आचार्य डॉ. राधारमण ठाकुर से कब इसकी शुरुआत हुई थी और किसने पहली बार छठ पर्व किया था. आचार्य डॉ. राधारमण ठाकुर के मुताबिकछठ पर्व दुनिया का एक मात्र एसा पर्व है, जो वैदिक काल से चलता आ रहा है. और यह बिहार की संस्कृति बन गया है. लोगों के परंपराओं मे संलिप्त होकर लोक आस्था का एक महापर्व बन गया है. यह पर्व बिहार की वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक है. उन्होंने बताया कि छठ पर्व मुख्य रुप से ऋषियों द्वारा लिखी गई ऋग वेद में सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता है.

माता सीता ने की थी छठ पर्व की शुरुआत


आचार्य डॉ. राधारमण ठाकुर ने बताया कि वाल्मिकी रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी अंग प्रदेश की राजधानी मुंगेर में माता सीता ने 6 दिनों तक छठ पूजा की थी. उन्होंने बताया कि जब श्री राम 14 वर्षो के वनवास काटकर आयोध्या लौटे थे, तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिएऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराने का फैसला लिया. इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था. लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया. ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया.

मुग्दल ऋषि ने माता सीता को छठ व्रत करने का बताया था महत्व

आचार्य डॉ. राधारमण ठाकुर ने बताया कि मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. यहीं रह कर माता सीता ने 6 दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी.

ऐसी मान्यता है कि माता सीता ने जहां छठ पूजा संपन्न किया था, वहां आज भी उनके पदचिह्न मौजूद हैं और तब से ही लोग बड़े हीं आस्था और श्रद्धा के साथ छठ करते आ रहे है. व्रत को करने की महत्ता और अधिक बढ़ गयी व यह पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हो गया. इस व्रत को करने के पश्चात हीं निर्विघ्न रूप से श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था.

संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी किया जाता है छठ

आचार्य डॉ. राधारमण ठाकुर ने बताया किइस व्रत को करने के पीछे यह भी मान्यता है कि इससे दंपत्ति को संतान सूख की प्राप्ति होती है. फलस्वरूप माता सीता भी गर्भवती हो गयी थी तथा उनके दो पुत्रो लव व कुश का वाल्मीकि आश्रम में जन्म हुआ था. तब से लोग बड़े ही आस्था के साथ संतान प्राप्ति के लिए भी इस महापर्व अनुष्ठान करते हैं.

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