Bhai Dooj 2023: भाई दूज के दिन क्यों होती है धान से बने चूड़ा और ओखल की पूजा? जानें इसका राज

तनुज पाण्डे/ नैनीताल.देवभूमि उत्तराखंड अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां कई तरह की जनजातियां निवास करती हैं और सबका हर त्योहार मनाने का ढंग भी अलग-अलग है. देश का सबसे बड़ा पर्व दीपावली भी उत्तराखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उत्तराखंड में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व में उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. दिवाली के दो दिन बाद भाई दूज (Bhai Dooj 2023) का त्योहार मनाने की भी यहां की अपनी अनोखी परंपरा है. हिमालय की गोद में बसा होने के कारण यहां के लोग प्रकृति से जुड़े हुए हैं. यहां के उत्सवों में भी प्राकृतिक संसाधनों का समागम होता है. उत्तराखंड में धान से बने चूड़ा पूजने की परंपरा सालों से चली आ रही है, जो उत्तराखंड की लोक संस्कृति में भी समाहित है.

देवभूमि उत्तराखंड में मुख्य रूप से चूड़ा बनाने के लिए धान भिगोने की परंपरा है. कुमाऊं मंडल में चूड़ा बनाने के लिया प्रयुक्त धान दीपावली से तीन दिन पूर्व या पांच रात्रि पूर्व भिंगोए जाते हैं. उसके बाद गोवर्धन पूजा के दिन गर्म धान को ओखल में कूटने के बाद चूड़ा बनाए जाते हैं और भाई दूज के दिन चूड़ा को बहन भाई के सिर में चढ़ाती है और उसकी खुशहाली व लंबी उम्र की कामना करती है. गोवर्धन पूजा के दिन चूड़ा को कूटने के लिए प्रयुक्त ओखल की भी पूजा की जाती है.

कैसे बनाया जाता है चूड़ा ?
नैनीताल निवासी आचार्य पंडित प्रकाश जोशी ने चूड़ा पूजन की महत्व को बताते हुए कहा कि कुमाऊं के पहाड़ी इलाकों में धान को दीपावली से पूर्व तीन रात्रि या पांच रात्रि भिगोने के बाद गोवर्धन पूजा के दिन इन्हें तेल की कढ़ाई में कुछ देर तक आग में भूना जाता है. इसके बाद तुरंत गर्म अवस्था में ओखली में कूटा जाता है. यह धान से चावल को अलग करने की पारंपरिक विधि है. आग में भुने हुए होने के कारण यह बेहद स्वादिष्ट होता है. इसे ही चूड़ा कहा जाता है.

क्या है ओखल के पूजा का उद्देश्य?
प्रकाश जोशी ने बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन कुमाऊं में चूड़ा कूटने की परंपरा है. इस दिन सर्वप्रथम ओखल की पूजा की जाती है, जिसमें चूड़ा कूटे जाते हैं. ओखल की पूजा का मुख्य उद्देश्य यह है कि ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि इस ओखल में कूटे अनाज से सालभर घर भरा रहे. साथ ही घर में अन्न की कमी ना हो.

क्या है कुमाऊं की परंपरा?
भाई दूज के त्योहार के दिन मुख्यतः बहन भाई को चूड़ा से पूजती है. मान्यता है कि इस दिन यमराज भी अपनी बहन यमुना के यहां चूड़ा पूजने के लिए जाते हैं. कुमाऊं की संस्कृति में चूड़ा पूजने की अपनी अलग परंपरा है. देवभूमि उत्तराखंड में गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन भाई दूज (दुतिया त्यार) के दिन यहां के लोगों द्वारा प्रातः स्नान एवं पूजा पाठ के उपरांत सर्वप्रथम चूड़ा कुल देवता के मंदिरों व घर के मंदिर में चढ़ाए जाते हैं. और ईश्वर के आशीर्वाद स्वरूप सरसों के तेल को दूब घास के तिनकों से सिर में लगाया जाता है. उसके बाद परिवार के प्रत्येक सदस्य के सिर में चूड़ा चढ़ाए जाते हैं. ताकि परिवार के सभी लोगों को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हो और सभी लोगों की दीर्घायु की कामना ईश्वर से की जाती है.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. LOCAL 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

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