Rajasthan : नामांकन भरने की तारीख खत्म होने के साथ ही चुनावी लड़ाई का मैदान सज गया है. मैदान में कई प्रत्याशियों को दौड़ के बजाय बाधा दौड़ के साथ उतरना पड़ रहा है. दूसरे ही नहीं अपने ही दौड़ में बाधा बन रहे हैं.
पार्टी के खिलाफ जाकर नामांकन किए दाखिल
टिकट कटने पर गुस्सा हुए कईयों ने पार्टी के खिलाफ जाकर नामांकन दाखिल किए है. ये पार्टी के साथ ही प्रत्याशी के लिए भी सिर दर्द बने हुए हैं. अब महज ढाई दिन बचे हैं, पार्टी के नेता इनकी मान मनौव्वल में लग गए हैं. मान मनुहार की जा रही है, जिससे रूठों को मनाया जा सके ताकि बाधा दौड़ के बजाय इन्हें जीत की दौड़ में साथी बनाया जा सके.
कांग्रेस और बीजेपी ने खोले अपने पत्ते
मरूधरा के महासमर में कांग्रेस और बीजेपी सहित अन्य दलों ने अपने अपने पत्ते खोल दिए हैं. प्रदेश में आज नामांकन की आखिरी तारीख थी. करीब तीन हजार के आसपास नामांकन भरे गए. इनमें किसी किसी ने दो सैट भी दाखिल किए, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे हैं, जिन्होंने बागी होकर ताल ठोक दी है.
प्रत्याशियों के लिए बने टेंशन
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों से बागी होकर कई लोगों ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. पार्टी से रूठकर बागी हुए इन प्रत्याशियों के नामांकन के कारण पार्टी के साथ साथ प्रत्याशियों के लिए टेंशन हो रही है.
निर्दलीयों की संख्या ज्यादा
बात अगर की जाए तो दोनों ही दलों से बागी होकर निर्दलीय ताल ठोकनें वालों की संख्या है. दोनों ही दलों में टिकट वितरण से खफा हुए ज्यादातर दावेदारों को तीसरे मोर्चे के आरएलपी, बसपा तथा आप का दामन थाम लिया, वरना निर्दलीयों की संख्या ज्यादा होती.
ये चेहरे है शामिल
प्रदेश के जानें मानें चेहरों में शाहपुरा से विधायक आलोक बेनीवाल, बाडमेर से प्रियंका, शिव से रवींद्र भाटी, झोटवाडा से आशुसिंह, राजपाल सिंह, कोटपूतली से मुकेश गोयल ने बीजेपी से बगावत कर पर्चा दाखिल किया. चौरासी(डूंगरपुर) विधानसभा से पीसीसी महासचिव महेंद्र बरजोड़ ने बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दाखिल किया . ये तो महज कुछ नाम हैं, इनके अलावा भी कई प्रमुख नाम हैं.
वापस नाम लेने का है इंतजार
अब 7 से 9 नवम्बर नाम वापस लेने की तारीख है. नौ नवम्बर को दोपहर तीन बजे तक नाम वापस लिए जा सकेंगे. ऐसे में पार्टी के नेता बागी होकर नामांकन भरने वाले अपनों को मनाने के लिए मान मनौव्वल में जुट गए हैं. इसके लिए उनके सम्पर्क के नेताओं के साथ ही रिश्तेदारों तथा समाज के प्रमुखों का भी सहारा लिया जा रहा है. खैर अब नौ नवम्बर के बाद ही पता चल पाएगा कि कितने मानें या कितने मैदान में डटे रहेंगे.
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