अनोखा है ये 250 साल पुराना बंदूक, एक फायर से धराशायी हो जाते थे हाथी

आशुतोष तिवारी/रीवा:किले के बघेला म्यूजियम में बहुत सी नायब और दुर्लभ वस्तुएं रखी हुई है, जो आज महज विरासत है. इस म्यूजियम में एक हाथीमार बंदूक भी है. यह बंदूक काफी वजनी है. इस बंदूक को दो से तीन लोग उठाया करते थे और दो से तीन लोगों की मदद से ही हथीमार बंदूक से फायरिंग की जाती थी. शेर,बाघ, और हाथी के शिकार के अलावा कई युद्धों में भी इस बंदूक का इस्तेमाल किया जा चुका है.

इतिहासकार असद खान ने कहा कि रीवा के बघेला म्यूजियम में रखी हाथीमार बंदूक रीवा रियासत के राजा महजाओं की पसंदीदा बंदूक थी. इस बंदूक का वजन 35 से 40 किलो था. इस बंदूक में चांदी की गोली गलती थी.असद खान ने आगे कहा कि जिस बंदूकों को उठाना दो लोगों के लिए मुश्किल हुआ करता था. महराजा रघुराज सिंह इस बंदूक को अकेले उठा कर निशाना लगाते थे. इस बंदूक से महराजा रघुराज सिंह ने कई शेर और बाघों का शिकार किया था. विशेषतौर पर ये बंदूक पागल हाथी के शिकार के लिए बनाई गई थी. इस बंदूक को हाथी के ऊपर रख कर भी चलाया जाता है. चलती हुई हाथी के ऊपर बैठकर महराजा रघुराज सिंह और आगे के राजा शेर का शिकार किया करते थे. यही वजह है की इस बंदूक का आज भी ऐतिहासिक महत्व है.

युद्धों में भी हाथीमार बंदूक का किया गया इस्तेमाल
इतिहासकार असद खान बताते हैं कि युद्ध के समय किले के दीवारों की सुरक्षा करने के लिए इस बंदूक की तैनाती की जाती थी. इस बंदूक से फायरिंग करने के बाद दुश्मनों में भगदड़ मच जाया करती थी. वर्ष 1796 के नैकहाई की लड़ाई में इस बंदूक का इस्तेमाल किया गया था. रीवा रियासत के फौजी लड़ाके इन बंदूकों को चलाया करते थे. युद्ध के दौरान दुश्मन सेना के हाथियों को इन बंदूकों से मार दिया जाता था. जिससे दुश्मन की सेना में भगदड़ मच जाती थी. इस बंदूक के धमाके से दुश्मन की सेना दहल जाती थी. और पूरी सेना तितर बितर जाती थी. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बंदूक के बदौलत युद्ध में रीवा रियासत के राजाओं विजय होती थी. नैकहाई के युद्ध में भी एरिया को जीत मिली थी. पेशवा के सेना नायक यशवंत राव नायक को बंदी बना लिया गया था. आज इन बंदूकों का कोई काम नहीं है. ये बंदूके रीवा के बघेला म्यूजियम में विरासत के तौर पर रखी हुई है.

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FIRST PUBLISHED : November 2, 2023, 16:55 IST

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