प्रवीण मिश्रा/खंडवा. कार्तिक मास की चौथ तिथि को आने वाला त्यौहार करवा चौथ के नाम से जाना जाता है. इस बार करवा चौथ 1 नवंबर दिन बुधवार को है. करवा चौथ व्रत महत्व सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र की कामना के साथ निर्जल व्रत रखती है. यह निर्जल व्रत सूर्य उदय से चन्द्र उदय तक किया जाता है. इस व्रत को चन्द्रमा के पूजन के साथ ही पूर्ण माना जाता है.
चन्द्रमा की पूजा में जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है छलनी. करवा चौथ व्रत में छलनी से ही अपने पति का चेहरा और चांद की पूजा करने का विधान है. शादीशुदा स्त्रियां छलनी में पहले दीपक रख चांद को देखती हैं और उसके बाद ही अपने पति को उस छलनी से निहारती हैं. लेकिन क्या आप ये जानते है कि इस व्रत में छलनी का इतना अधिक महत्व क्यों है? जबकि दूसरे किसी व्रत में ऐसा नहीं बताया गया है.
करवा चौथ व्रत में छलनी का प्रयोग क्यों?
पंडित राजेश पाराशर ने बताया कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चन्द्रमा को भगवान शिव से लम्बी आयु का वरदान मिला हुआ है. जिसका उल्लेख करवा चौथ की कथा में भी है. इसलिए ही इस दिन महिलाएं चौथ का चांद छलनी से देखकर उनसे प्रार्थना करती है कि चन्द्रदेव कृपा करके अपने समस्त गुणों के साथ हमारे पति को लम्बी उम्र का वरदान दें. ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा को छलनी से देखने पर व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और पति को लम्बी उम्र का वरदान मिलता है.
व्रत कथा से जुड़ी कहनी?
करवा चौथ व्रत कथा में साहूकार के सात लड़को के बारे में बताया जाता है. कथा में बताया गया है कि सात भाईयों की एक बहन थी जिससे वो बहुत प्रेम करते थे. करवा चौथ के दिन जब बहन को भूखे बैठे देखा तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने झूठा चन्द्रमा दिखाया. जिसके फलस्वरूप ऐसा करते ही उसके पति के प्राण चले गए। इसलिए ही छल से बचने के लिए चन्द्रमा को छलनी से देखने की प्रथा का आरम्भ हुआ.
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FIRST PUBLISHED : October 30, 2023, 09:58 IST