इस रियासत की गद्दी पर नहीं बैठता कोई राजा,देवता लक्ष्मण के नाम पर होता है शासन

आशुतोष तिवारी/ रीवा : मध्यप्रदेश के रीवा का राजघराना उन चुनिंदा राजपरिवारों में से एक है, जिनका इतिहास 500 वर्षों से भी पुराना है. रीवा राजघराने से जुड़ी हुई एक कहानी बेहद प्रचलित है. इतिहासकार असद खान बताते है कि हिंदुस्तान के इतिहास में रीवा ही एक ऐसा राज्य है जहां राजा सेवक की भूमिका में रहकर राज्य का संरक्षण करता था. रीवा राज परिवार के सदस्य और यहां के राजा कभी भी अपने सिंहासन पर नहीं बैठते थे. वह एक खुद को एक कार्यकारी और सेवक राजा मानते थे.आज भी यहां के राजा गद्दी के सामने जमीन पर बैठते है.

इतिहासकार असद खान ने  कहा कि रीवा के राज घराने के लोग लक्ष्मण जी को अपना राजा मानते है. उन्हे ही सिंहासन पर बैठाते है. और गद्दी में बैठाकर लक्ष्मण जी की राजाधिराज के रूप में पूजा करते है. और खुद दशहरा के अवसर पर गद्दी पूजा के दौरान सिंहासन के सामने जमीन पर बैठते है.

राजा सेवक बनकर चलाते थे राज्य
इतिहास कार असद खान ने बताया कि ऐसा केवल रामायण में ही हुआ है जब श्री राम के भाई भरत ने अपने बड़े भाई श्री राम जी की चरण पादुका को सिंहासन में विराजमान कर और खुद उनका सेवक मानकर राज्य का संचालन किया था. भरत सिंहासन का सेवक मानकर खुद को कार्यकारी राजा मानते थे. इसी तरह रीवा के राज परिवार के लोग लक्ष्मण जी को ही अपना राजा मानते हैं. और गद्दी में उन्हें विराजित करते है. और खुद सेवक की भूमिका में रहकर राज्य का संचालन करते हैं. राजघराने के सदस्यों को मानना यह है कि भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण उनके कुल देवता हैं.भले ही यहां के राजा कभी गद्दी पर नहीं बैठे लेकिन उनकी राजशाही ठाटबाट आज भी कायम है. इस रियासत की 450 वर्ष पुरानी ये परंपरा है कि राजगद्दी पर राजाधिराज भगवान को गद्दी पर बैठाया जायेगा और उनकी पूजा की जाएगी. इस ऐतिहासिक परंपरा का निर्वाह आज भी यहां के राज परिवार के सदस्य करते है. इतिहासकार असद खान ने बताया कि महराजा बाघ्रवेश ने राजगद्दी पर लक्ष्मण जी के साथ भगवान विष्णु को विराजमान किया था. तभी से ये परंपरा चलती आ रही है.

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FIRST PUBLISHED : October 24, 2023, 20:49 IST

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