शाश्वत सिंह/झांसी:मां आदिशक्ति की आराधना के महापर्व नवरात्रि का आज अंतिम दिन है. इन नौ दिनों में देश भर में लोग अलग-अलग तरीकों से मां दुर्गा की उपासना करते हैं. बुंदेलखंड में भी जगह-जगह मां दुर्गा की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है. आधुनिक समय में कई आयोजन भी किए जाते हैं. लेकिन एक परंपरा ऐसी है जो लुप्त होती जा रही है. यह परंपरा है सुआटा की. एक समय पर बुंदेलखंड और झांसी में नवरात्रि के दिनों में सुआटा खेलने की परम्परा थी. समय के साथ यह परंपरा लुप्त सी हो गई है.
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग के विद्यार्थियों ने सुआटा परंपरा के बारे में लोगों को याद दिलाने का प्रयास किया. विभाग की शिक्षिका डॉ. श्वेता पांडेय ने बताया कि सुआटा कुंवारी लड़कियों द्वारा मनाया जाने वाला एक अद्भुत पर्व है. इसके बारे में एक कहानी प्रचलित है कि महाभारत काल में सुआटा नामक दैत्य कुंवारी लड़कियों को सताया करता था. इस दैत्य से रक्षा करने के लिए लड़कियां मां गौरी से प्रार्थना करती थी. इसके बाद सूर्यबली और चंद्रबली नाम के भाइयों ने दैत्य का संहार किया था.
कुछ गांवों में आज भी जीवित है परंपरा
डॉ. श्वेता पांडेय ने प्रस्तुति के दौरान बताया कि कुंवारी कन्याएं दीवार पर सुआटा का चित्र बनाकर उसके सामने आकर्षक रंगोली बनाती थी. इसको बनाते समय वह लोकगीत गाते हुए पूरी कथा का जिक्र करती थी और मां गौरी से लंबी उम्र का वरदान मांगती थी. यह परंपरा कन्याएं एक साथ एक जगह मिलकर करती थी जिसे आपसी सौहार्द और एकता की ताकत का उन्हें एहसास होता था. शहर में लुप्त हो चुकी है परंपरा आज भी कुछ गांव में जीवित है.
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FIRST PUBLISHED : October 23, 2023, 12:44 IST