लीगल एक्सप्लेनर: LGBTQIA और बच्चों को गोद लेने का अधिकार | – News in Hindi – हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी

समलैंगिंक जोड़ों की शादी के रजिस्ट्रेशन और बच्चों को गोद लेने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. उसके बाद विदेशी नागरिकों को बच्चा गोद लेने में आ रही मुश्किलों के मद्देनजर दिल्ली हाईकोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने की बात कही है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि कारा (CARA) नियमों को सरल बनाकर बच्चा गोद लेने में हो रहे विलम्ब को खत्म करने की जरुरत है.

मानवाधिकार आयोग (NHRC) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 3.1 करोड़ बच्चों को सुरक्षा और संरक्षण की जरुरत है जिनमें लगभग 2 करोड़ बच्चे अनाथ हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ कुछ हजार बच्चे ही Adoption के लिए उपलब्ध हैं. इन सभी कानूनी विवादों के मद्देनजर भारत में बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया को ठीक करने के लिए कानून को सरल तरीके से समझने की जरुरत है-

1. संरक्षण और गोद लेना- सभी धर्मों में बच्चे गोद लेने के लिए अलग नियम और कानून हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में J.J. Act में 2006 में किए गये संशोधनों की व्याख्या करते हुए कहा था कि किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के बच्चे को गोद लेने का अधिकार है. हिन्दू, बौद्ध और जैन के लिए हिन्दू एडॉप्शन एण्ड मेंटिनेंस एक्ट 1956 का कानून है. Guardians and Wards Act, 1890 के तहत किसी बच्चे को अपनाकर उसका संरक्षक बना जा सकता है, लेकिन उन्हें माता पिता की मान्यता नहीं मिलती. 18 साल की उम्र में बच्चे के बालिग़ होने पर संरक्षक की भूमिका स्वतः समाप्त हो जाती है.

2. JJ Act और CARA- बच्चों को मानव तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए सन् 1993 में हेग की अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई थी जिसे सन् 2003 में भारत ने मान्यता दी थी. भारत सरकार के महिला एवं कल्याण विभाग के अधीन सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) 1990 में गठन हुआ जो J.J. Act के अनुसार गोद लेने के लिए नोडल एजेंसी है. इसके तहत सन् 2015 में केन्द्र सरकार ने गोद लेने के नियमों में अनेक बदलाव किये. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के नियमों में सन् 2021 में बदलाव करके जिला अधिकारी को अनेक अधिकार दिये गये, जिससे लोगों को अदालत के चक्कर लगाने से मुक्ति मिल सके.

3. समलैंगिक जोड़ों के लिए मनाही- जैविक माता-पिता परस्पर सहमति से अपने बच्चे को गोद दे सकते हैं. गोद देने के वक्त बच्चे की उम्र 15 साल से कम होनी चाहिए. माता-पिता या कानूनी अभिभावकों के बिना बच्चे को अनाथ माना जाता है जिसे गोद लेने के लिए बाल-कल्याण समिति की मंजूरी जरूरी है. भारतीय नागरिक, विदेशी नागरिक, एनआरआई, निःसंतान दम्पति, रिश्तेदार, सौतेले माता-पिता, अंतर्राज्जीय, सिंगल पुरुष और महिला अनेक वर्गों के गोद लेने के लिए अलग नियम हैं. अकेली महिला लड़का या लड़की किसी को भी गोद ले सकती है लेकिन सिंगल पुरुष लड़की को गोद नहीं ले सकता. इन्हीं वजहों से समलैंगिक व्यक्तियों को जोड़े के तौर पर बच्चे गोद लेने की कानूनी इजाजत नहीं है.

4. दस्तावेज और सर्टिफिकेट- अगर कोई दम्पति बच्चे को गोद ले रहा है तो उन्हें कम से कम दो साल की स्थिर शादी पूरी करने के साथ बच्चे को गोद लेने के लिए संयुक्त सहमति देना जरुरी है. बच्चे और दत्तक माता-पिता के बीच उम्र का अंतर 25 साल से कम नहीं होना चाहिए. किसी परिवार में पहले से अगर बड़े बच्चे हों तो नये बच्चे को गोद लेने से पहले गोद लेने के पहले उनकी सहमति भी जरुरी है. गोद लेने वाले माता-पिता की शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक स्थिति अच्छी होनी चाहिए.

5. ऑनलाइन आवेदन- बच्चे को गोद लेने वाले इच्छुक व्यक्ति कारा की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. आवेदन पत्र के साथ उन्हें आधार कार्ड, पैन कार्ड, फोटो, शादी या तलाक का प्रमाण-पत्र, स्वास्थ्य के लिए मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट, आय के लिए इनकम टैक्स का सर्टिफिकेट और आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं होने के लिए पुलिस की रिपोर्ट जैसे कई दस्तावेज देने की जरुरत होती है. आवेदन में दिये गये विवरण के अनुसार एजेंसी होम विजिट करके आवेदन और दस्तावेजों की जांच पड़ताल करती है. गोद लेने वाले मामलों में स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और केन्द्रीय एजेंसियों की भूमिका होने की वजह से प्रक्रिया में खासा विलम्ब हो जाता है.

6. डीड का रजिस्ट्रेशन- गोद लेने के बारे में सारी प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद गोद लेने वाले दोनों पक्ष स्टॉम्प पेपर पर डीड साइन करते हैं जिसमें बच्चे की फोटो के साथ दो गवाहों के साइन भी होते हैं. इसका सब-रजिस्ट्रार दफतर में रजिस्ट्रेशन होता है. यदि बच्चा अनाथालय से लिया गया हो तो उसका विवरण देना जरुरी है. यह ध्यान रखना जरुरी है कि बच्चा किसी नर्सिंग होम, हॉस्पिटल या गैर-मान्यता प्राप्त संस्थाओं से नहीं हो वरना यह प्रक्रिया अवैध हो सकती है. गोद लेने में किसी प्रकार के पैसे या प्रोपर्टी का लेन-देन नहीं हो सकता. गोद लेने के बाद बच्चे को नये परिवार में सम्पत्ति के सारे अधिकार हासिल हो जाते हैं.

7. सुप्रीम कोर्ट के फैसले- सन् 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज रंजन गोगोई ने कहा था कि व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं के कारण JJ Act के प्रावधानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बच्चा गोद लेने वाले माता-पिता पर्सनल लॉ का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार गोद लेने का मौलिक अधिकार नहीं हैं। सन् 2021 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज चन्द्रचूड़ ने कहा था कि लोगों को गोद लेने के लिए 3-4 साल तक इंतजार करना गलत है। केन्द्र सरकार को एडोप्शन प्रक्रिया को तेज करने की जरुरत है। याचिकाकर्ता के अनुसार सालाना लगभग 4 हज़ार बच्चों का ही एडाप्शन हो पाता है। जिसकी वजह से लाखों जरुरतमंद परिवार और दम्पति बच्चों की खुशहाली से वंचित हैं। इस बारे में अदालत ने सरकार को तीन हफ्ते का समय दिया था। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होनी है।

8. LGBT जोड़ों की मांग- संविधान पीठ में अल्पमत के फैसले में चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ और कौल ने कारा(CARA) के रेगुलेशन-5 (3) को भेदभावपूर्ण और गलत बताया है. उनके अनुसार यह नियम विवाहित और अविवाहित जोड़ों के बीच भेद करता है, जिसका कोई तार्किक आधार नहीं है. लेकिन बहुमत के फैसले में जस्टिस रविन्द्र भट्ट, नरसिम्हा और हिमा कोहली के अनुसार कारा (CARA)के रेगुलेशन-5 (3) में लिखे गये मैरिटल शब्द को न्यायिक आदेश से रद्द नहीं किया जा सकता. इस बारे में सरकार और संसद ही कानूनी बदलाव कर सकते हैं. विधि मंत्रालय की संसदीय समिति ने अगस्त 2022 की रिपोर्ट में कहा था कि LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को बच्चे गोद लेने की इजाजत मिलनी चाहिए. उसके अनुसार इस बारे में गोद लेने के नये कानून और नियम बनाने की जरुरत है. लेकिन ऐसे किसी कानून को बनाने से पहले समलैंगिक समुदाय के जोड़ों को कानूनी मान्यता लेने की जरुरत होगी जिससे पेंच फंस सकता है.

ब्लॉगर के बारे में

विराग गुप्ताएडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 7 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.

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