भोपाल. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) के लिए चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है. इस बीच भाजपा ने 136 टिकट घोषित कर दिए हैं जबकि कांग्रेस में माथा-पच्ची जारी है.
News18 Hindi ‘अनकही राजनीति!’ कॉलम के जरिए भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों में चल रही उठापठक को आपके सामने बेपर्दा कर रहा है. इस बार दोनों ही दल टिकट के लिए मंथन में जुटे हैं. दोनों ही प्रमुख दलों से टिकट वितरण की नई-नई कहानियां और समीकरण सामने आ रहे हैं. पढ़िए इस अंक में टिकटों पर मची खींचतान के किस्सों को…
अब कांग्रेस के दिग्गजों को सता रहा डर
भाजपा के दिग्गज नेताओं को टिकट देने से कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में भी हड़कंप की स्थिति बन गई है. उन्हें लग रहा है कि कहीं उन्हें भी पार्टी टिकट देकर किसी कठिन से सीट से मैदान में न उतार दे. टिकट लेने से इनकार करने के लिए कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं ने दिल्ली दौड़ लगानी शुरू कर दी है. कोई दिग्गज नेता अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इनकार कर रहा है तो कोई खराब स्वास्थ का हवाला देकर. कुछ नेताओं ने तो यहां तक कह दिया है कि भले ही हमें दस उम्मीदवारों को चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी दे दी जाए लेकिन हमें टिकट न दिया जाए. हालांकि अब तक कांग्रेस आला कमान ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
मिनिस्टर मैडम की बीमारी या मजबूरी
पिछले दिनों प्रदेश की एक कद्दावर और तेज तर्रार महिला मंत्री ने प्रदेश संगठन को एक चिट्ठी लिखी है. इसमें उन्होंने अपनी बीमारी और उम्र का हवाला देते हुए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का आग्रह किया है. जबकि मैडम पिछले महीने तक जमकर अपने क्षेत्र में भूमिपूजन और शिलान्यास कर रहीं थीं. ऐसे में लोगों इस बात पर सवाल खड़े होना लाजिमी है कि जब मिनिस्टर मैडम को अगला विधानसभा चुनाव लड़ना ही नहीं था तो वो इतने आनन-फानन में भूमिपूजन क्यों कर रहीं थीं. चुनाव नहीं लड़ने वाला कोई भी नेता अपने क्षेत्र में इतना सक्रिय नहीं रहता है जितना कि मिनिस्टर मैडम थी. यानि चिट्ठी लिखी है या लिखवाई गई है इस पर फिलहाल सस्पेंस बना हुआ है.
टिकट पाने नहीं कटवाने के लिए लॉबिंग
भारतीय जनता पार्टी ने सात सांसदों समेत आठ केन्द्रीय स्तर के दिग्गज नेताओं को टिकट देकर जितना जनता को चौंकाया है उतना ही उन आठ नेताओं को भी चौंकाया है. इन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि इन्हें भी विधानसभा चुनाव में उतरना पड़ सकता है. इन्हें जिन सीट से उतारा गया है उनमें से एक सीट को छोड़कर सभी सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. ऐसे में निश्चित तौर पर प्रत्याशियों को डर सता रहा है कि जीत गए तो ठीक यदि कहीं धोखे से भी हार गए तो उम्र के इस पड़ाव में आकर हमेशा के लिए राजनीति समाप्त हो जाएगी. इसी वजह से तो एक केन्द्रीय मंत्री टिकट घोषित होने के बाद से क्षेत्र में ही नहीं पहुंचे हैं. वे खुद का टिकट कटवाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं.
भाजपा के दिग्गज विधायक की रणनीति पर निगाहें
हर बार पार्टी बदलकर चुनाव लड़ने वाले भाजपा विधायक का टिकट इस बार दिल्ली नेतृत्व ने काट दिया है. उनके स्थान पर महाराज के खास समर्थक को टिकट दिया गया है. जिनका टिकट काटा गया है और जिन्हें टिकट दिया गया है दोनों ही ब्राह्मण समाज से आते हैं. लेकिन जिन विधायक का टिकट काटा गया है उनका अपने विधानसभा क्षेत्र के अलावा करीब एक दर्जन विधानसभाओं में ब्राह्मण वोटों पर सीधा हस्तक्षेप है. निश्चित तौर पर विधायक जी अपना टिकट काटे जाने से नाराज हैं. यह नेता जी अलग पार्टी और प्रदेश बनाने की मांग भी लगातार करते आ रहे हैं. ऐसे में सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हुई हैं कि नेता जी किस तरह से चुनाव में सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाने वाले हैं.
आप की निष्क्रियता से कांग्रेस खुश
आम आदमी पार्टी के नेता प्रदेश में उस तरह से सक्रिय नहीं हैं जिस तरह से उन्हें होना चाहिए था. इससे ज्यादा आप ने सक्रियता तो नगरीय निकाय के चुनाव में बताई थी. इसी वजह से सिंगरौली महापौर पर अपनी प्रत्याशी को काबिज कराने में आप कामयाब हो गई थी. साथ ही ग्वालियर में महापौर के प्रत्याशी ने करीब पचास हजार वोट हासिल किए थे. इस हिसाब से राजनीतिक पार्टियां अनुमान लगा रही थी कि आप विधानसभा चुनाव में कम से कम पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार को जीत दिलवाने में कामयाब हो जाएगी. लेकिन अब तक आसार ऐसे नजर नहीं आ रहे हैं. अब तक उम्मीदवारों की भी जो सूची जारी की है उसमें कोई भी बड़ा नाम नहीं है. जबकि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टी में नाराज लोगों की कमी नहीं है. इसके बावजूद कोई आप का दामन नहीं थामना चाह रहा है.
सांसद ने की विधायक की शिकायत
सत्ताधारी दल से ताल्लुक रखने वाले एक विधायक की शिकायत उन्हीं के पार्टी के एक कद्दावर सांसद ने अपनी पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से की है. शिकायत में सांसद जी ने कहा है कि विधायक जी के चाचा को पार्टी एक बड़े शहर से टिकट देकर उम्मीदवार बना चुकी है. ऐसे में विधायक जी को टिकट नहीं देना चाहिए. यदि टिकट दी जाती है पार्टी की परिवारवाद वाली लाइन का उलंघ्घन होगा. मजेदार बात यह है कि विधायक जी की टिकट पर तो पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन सांसद जी को जरूर विधानसभा की टिकट एक नजदीकी सीट से दे दी है. ऐसे में अब सांसद जी चुनाव के टेंशन अपनी की हुई शिकायत भूल गए हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 10, 2023, 12:27 IST