हमर देश में ये रिवाज हे के जब बेटी के बिहाव करे के समे आथे तब ओकर मन के गुन-अवगुन के मिलान करे खातिर पंडित, ज्ञानी, ज्योतिषी मन करा विचार करवाथे. हिमाचल नरेश और मैना के पुत्री पारबती के घला अइसने करवाय रिहिन हे. नारद जी पारबती के हस्तरेखा ल देखके जब बतइस के एकर होवइया गोसइया (पति) जटाधारी, निष्काम हिरदय वाले, नंग धड़ंग और अमंगल वेशधारी होही, अइसन एकर (पारबती) के हाथ मं रेखा लिखाय हे. नारद के ये वचन ल सुन के मैना अउ हिमाचल दुख मं परगे होनी ल कोन टार सकत हे.
डॉ. शैल चन्द्रा घला वइसने कस अपन छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘गोदावरी के भविष्य ल बिचरवाय खातिर कोनो ज्ञानी, धियानी के फिराक मं रिहिसे के अचानक ओला मोर सुरता आगे अउ भेज परिस ‘गोदावरी के हस्तरेखा देखे खातिर. ककरो हस्तरेखा बांचना कोनो सरल काम नोहय. नारदजी ल मैना हा कतेक खरी-खोटी सुनाय रिहिसे. महू हा हां जी कहि परेव सोचेंव अउ होही तउन देखे जाही.
भोजन ह साग-सब्जी के बिगर सुहावय नही. कतको सुमहर खीर-पुड़ी, हलवा, तसमइ, कलेवा बने राहय, फेर सब्जी बिना बने नइ लागय. सब्जी ह भोजन के असली सुवाद हे. अउ हां, सब्जी घला सबो दरी बने ढंग के नइ बनय. सब्जी रांघ के तो सबो के गोसइन मन देथे फेर कइ झन के हाथ के बने साग-सब्जी अइसन सुहाथे के खवइया खाते रहि जाथे, अंगुरी चाटत रहि जाथे. अइसन सब्जी के रंधइया गोसइन, लाखों मं एक होथे, कोनो मास्टरसैफ ले कम नइ होवय, लगथे विधाता ह ऊपर ले गढ़के भेजथे अइसन कलाकार मन ला. अइसने कस एक झन कलाकार हे डॉ. शैल चन्द्रा. एहर कलाकार नहीं, बल्कि एक सुंदर साहित्यकार हे. एकर हाथ ले रांधे साग-सब्जी कभू खाए ले तो नइ मिले हे फेर जइसन ढंग ले एक ले बढ़के एक साहित्य के रचना करे हे ओ कोनो जायकेदार, सुवादिस्ट सब्जी ले कम नइहे, कोनो चटनी (आचार) के जरूरत नइ होवन दय.
डॉ. शैल चन्द्रा के अइसने एक ठन अघाते सुंदर साहित्य नानकिन उपन्यास हे. ओहा गोदावरी के रचना करे हे जेला देखे-पढ़े अउ सुने ले समझ आ जथे के जइसे सब्जी बनइया ल ये बात के खियाल रहिथे, सावधानी बरते ले परथे के का-का जिनिस मिरची, मसाला, हरदी, दालचीनी, हींग, अजवाइन, मेथी, धनिया डारे मं सब्जी के सुवाद बढ़ जथे. कोनो कमी नइ करय, मनपसंद जेवन बन जथे खवइया मन बर. अइसने कस धियान डॉ. शैल चन्द्रा ह उपन्यास गोदावरी के रचना करत बखत रखे हे, ओकर बुद्धि कौशल के तारीफ करत रहि जाही उपन्यास के पढ़इया मन के अतेक सुग्घर उपन्यास ओकर मन के हाथ लगे हे अउ पूरा पढ़े बिगन नइ छोड़ही. इही हाल मकान बनइया आर्किटेक्ट मन के होथे. घर अइसे ताजमहल, सोमनाथ, जगन्नाथ अउ कुतुबमीनार जइसे बनय के देखइया देखते रहि जाए. ये ओकर मन के कलाकारी के गुन होथे. कोन-कोन चीज के जरूरत होथे ओकर पूरा खियाल रखथे.
डॉ. शैल चन्द्रा एक महिला साहित्यकार हे, प्रबुद्ध हे, नारी चेतना के प्रति निरंतर सजग हे अउ रहिथे, अपन उपन्यास मं उही सब बात के धियान रखे, भावना ल उड़ेले हे. एक किशोर वय मं उपजे परेम के आखिर मं का दुरगति होय हे तउन ल ओ सुंदर ढंग ले पाठक के आगू मं परोसे हे. उपन्यास के मुख्य नायिका गोदावरी हे, जेकर गांव मं नवा-नवा आए पटवारी सागर संग परेम हो जथे. गोदावरी पढ़-लिख के वकील बन जथे अउ वकालत शुरू कर देथे. एती एक दिन पटवारी ओकर संग बिहाव करे के भावना लेके ओकर घर जाथे. ओकर ददा राधाकिशन गांव के सरपंच रहिथे. ओकर आगू मं शादी के जब प्रस्ताव रखिस तब सरपंच ओला अइसे झाड़िस के पटवारी के होश गायब होगे.
सरपंच पटवारी ल कहिथे- मया-पिरीत के बात सब बकवास हे पटवारी, तैं अपन जात अउ औकात ल देख तब मोर सन बात करबे. मोर घर ले अभी निकल जा नहिते तोर खाल उधेड़ देहूं. आज के बाद कभू अपन मुंह ले मोर बेटी के नांव झन लेबे. तैं मोर घर के इज्जत ल झन बिगाड़ नइते तोला अउ गोदावरी दूनो झन ल कुटी-कुटी काट के फेंकवा दुहूं.
डॉ. चंद्रा ल मालूम हे, प्रेम अइसने लफड़ा मं पर जथे, जइसन चाहथे वइसन होथे कहां, आखिर मं गोदावरी के बिहाव कोनो शंकर नांव के युवक संग हो जथे.
जात पात बाल विवाह ऊपर घला शैल हा कलम चलाय हे. गांव के जनमे बेटी हे, गांव के रस-कस ल बने ढंग ले जानत हे. बाल विवाह के बुराई ल घलौ जानथे. जब गौना के समे आथे तब पता चलथे के जेकर संग बिहाव होय रहिथे तउन गंजेड़िया, मंदहा हे, तब ओकर संग जाय बर मना कर देथे. चूड़ी पहिन के दूसर सन बिहाव करके अपन खुशी-खुशी जीवन बिताथे. सरकार घला ये कोती धियान देय भर हे.
गांव के कला, संस्कृति, पर्व-तिहार ऊपर घला डॉ. चन्द्रा हा पाठक मन के धियान खींचत अपन नाराजगी जाहिर करे हे. ओला दुख हे के कइसे शहरी अउ औद्योगिक संस्कृति गांव के दूध मोंगरा कस सुंदर, पावन अउ महमहावत संस्कृति ल सांड कस चरत जात हे, मटियामेट करत हे. एक उदाहरन देवत ओहर बतावत हे- पहिली गांव मन मं भोजली, जंवारा, दौनापान, गंगाजल, तुलसी दल अउ महापरसाद बधे के सुंदर रिवाज, परम्परा रिहिसे. ये परेम, पिंयार अउ जउन ल आज मोहब्बत कहिथे तेकर प्रतीक रिहिसे. ओ सब ल आज शहरी अउ औद्योगिक संस्कृति चिक्कन धो दीस. का सीख ले हे- आई लव यू. ये चरदिनिया पिंयार हे. मतलब सधिस तहां ले तैं कोन, मैं कोन? अउ ओ पिंयार तुलसीदल, जंवारा जीयत भर निभावत हे. ये दे मितान-मितानिन के इंतकाल होय ऊपर ले ओकर लोग लइका मन बेवहार ल राखय. काहय मोर फूलदाई, मोर फूल ददा के बेटा हे. ये अब नंदागे, नइ देखे-सुने ले मिलय अब कहूं.
अइसन एक ठन अउ सुंदर बेवस्था के बरनन करे हे जेमा कोनो लड़की के जबरिया ककरो संग बिहाव करथे अउ लड़की चेतलग होगे हे तब अपन सहेली अउ प्रेमी संग योजना बनाके घर ले कइसे भाग जथे अउ बाहिर जाके बिहाव कर लेथे. सुखबती अउ मनराखन संग अइसने होहे. सुखबती गोदावरी के ममा दाई हे. अपन सबो दुख ल ओला सुनाय रिहिसे के कइसे गंजेड़ी, भंगेड़ी अउ दरूहा ले मुक्ति पाय बर ये रचना करिस. अइसन किस्सा आजो गांव का शहरों मन मं होथे, कोनो नवा बात नोहे. परेम तो परेम हे, ओहर घोड़ा मं सवार रहिथे अउ मउका पाके अपन रानी ल उड़ा के ले जाथे.
एती एक दिन हाईकोर्ट मं सागर ह पहुंचथे अउ वकील के रूप मं गोदावरी ल देखथे तब खुश हो जथे. ओला देख के ओहर कहिथे- का मिलिस तोला, मोला धोखा देके. गांव छोड़े तब मोला घला छोड़े, कोनो पता नइ छोड़े तोर सुरता मं धोखाबाज नहीं तो.
गोदावरी नइ जानत रिहिसे के ओकर ददा सरपंच राधाकिशन पटवारी ला का-का भला-बुरा नइ सुनाय रिहिसे. वो सबो बात ल ओहर गोदावरी ल बताइस तब भारी दुख मनइस. आखिर मं अपन बिहाव के निमंत्रण कार्ड सरपंच अउ गोदावरी ल देके सागर ह लहुट जथे.
अइसने गोदावरी के एक झन सहेली रहिथे माधुरी. शादी के बाद उकरो जिनगी हंसी-खुशी गुजरत रिहिथे फेर उकरो ऊपर एक दिन पहाड़ टूट जथे, विधवा हो जथे. तब एक दिन गोदावरी अपन गोसाइया शंकर संग मिलके विधवा विवाह करा देथे. माधुरी के जिनगी मं अब फेर बहार-बहार होगे.
एती गोदावरी के पहिली के परेमी सागर के जमीन ल ओकर कका के बेटा मन हड़प ले राहय. ओ केस ल गोदावरी अपन हाथ मं लेके पैरवी करिस. जज अपन निरनय सुनावत सागर के कका अउ ओकर बेटा ल चार सौ बीसी के आरोप मं छै महीना के सजा सुना दीस. अइसने एक ठन दहेज प्रकरण हाथ मं लेके केंवरा बाई नांव के महिला के केस लड़िस. जीत केंवरा बाई के होइस अउ ओकर सास-ससुर अउ गोसइया ल सात-सात साल के जेल होगे. ये केस जीते के बाद गोदावरी बाई के कोर्ट मं दबदबा बढ़गे. ओला अब जम्मो कोती ले केस मिले ले धर लिस.
उपन्यास ‘गोदावरी’ नारी सशक्तीकरण के सुन्दर गुलदस्ता अऊ, दरपन बरोबर हे. हर चरित्र डॉ. शैल चन्द्रा बहुत सुंदर ढंग ले उकेरे के कोशिश करे हे. एक स्थापित महिला उपन्यासकार के दरजा देके सिफारिश करे मं मोला कोनो दुख नइ हे. डॉ शैल चंद्रा ले आशा करथव के भविष्य म अउ अइसने साहित्य समाज ल परोसही.
(डिसक्लेमर – लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनके निजी विचार हैं. तथ्यों की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है.)
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FIRST PUBLISHED : October 9, 2023, 18:12 IST