Film Masoom: बॉलीवुड में अवैध रिश्तों की कहानियों पर हजारों फिल्में बनी हैं. तमाम फिल्मों में यह भी दिखाया कि नायिका बिना विवाह के मां बनने वाली होती है या फिर मां बन जाती है. सैकड़ों फिल्मों में हीरो के पिता को विवाह के बगैर हुई संतान को स्वीकार न करते दिखाया गया है. असल में संतान की वैधता का सवाल सदियों पुराना है. महाभारत (Mahabharat) काल में भी यह सवाल था, जब कर्ण ने श्रीकृष्ण (LORD Shrikrishna) से कहाः क्या अवैध संतान होना मेरा दोष थाॽ आज भी इस पर विचार मंथन होता है और अलग-अलग तरह के, खास तौर पर पारिवारिक संपत्तियों से जुड़े मामले अदालतों में जाते हैं. लेकिन आधुनिक युग में एक विचार यह है कि रिश्तों की वैधता होती है या वे अवैध भी हो सकते हैं, परंतु संतान अवैध नहीं होती.
वह तो मासूम है
न्याय भी कहता है कि स्वयं अपने जन्म में किसी भी व्यक्ति की कोई भूमिका नहीं होती. इस कारण उसे जन्म के लिए दोषी करार दिया जाना उचित नहीं. अतः किसी भी संतान को अवैध नहीं कहा जाना चाहिए. 40 साल पहले रिलीज हुई फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की मासूम का मुद्दा दरअसल यही है. हालांकि यहां अदालत और न्याय प्रक्रिया नहीं है, लेकिन भावनाओं के बहाने आखिरकार यही स्थापित किया गया है कि बच्चे का क्या दोषॽ वह तो मासूम है! यह फिल्म प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार एरिक सिगल (Erich Segal) के उपन्यास मैन वुमन एंड चाइल्ड (Man Woman And Child) का भारतीय रूपांतरण है. एक खुशनुमा परिवार में आया बच्चा, उसमें दरार की वजह बनता है.
हॉलीवुड में फिल्म
यह संयोग है कि हॉलीवुड में इसी उपन्यास के नाम से 1983 में ही फिल्म बनी. जबकि शेखर कपूर (Shekhar Kapoor) की मासूम भी उसी साल हिंदी में आई. रोचक बात यह कि हिंदी में यह फिल्म अंग्रेजी फिल्म से कहीं बेहतर साबित हुई. फिल्म में नसीरूद्दीन शाह, शबाना आजमी, सईद जाफरी और सुप्रिया पाठक अहम भूमिकाओं में थे. डीके (नसीर) और इंदू (शबाना) खुश हैं. उनकी दो बेटियां हैं. तभी एक दिन डीके के पास नैनीताल से पुराने स्कूल हेडमास्टर का फोन आता है कि भावना (सुप्रिया पाठक) से उसका एक बेटा. डीके और भावना स्कूल रीयूनियन में मिले थे. भावना अब मर चुकी है और बेटा (जुगल हंसराज) नौ साल का हो चुका है. यहां कहानी बेहद रोचक मोड़ पर खड़ी होती है और भावनाओं के उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ती है.
तुझसे नाराज नहीं
आज के दौर में जब विवाह पूर्व संबंध बढ़ रहे हैं और रिश्तों की डोरियां कमजोर हो रही है, मासूम एक देखने योग्य महत्पूर्ण फिल्म है. फिल्म की पटकथा और गीत गुलजार (Gulzar) ने लिखे थे. आर.डी. बर्मन (R.D. Barman) का संगीत था. मासूम के गानेः हुजूर इस कदर, दो नैना, तुझसे नाराज नहीं जिंदगी और लकड़ी की काठी आज भी खूब सुने जाते हैं. जबकि फिल्म को बने 40 बरस गुजर चुके हैं. इसी कहानी को बाद में मलयालम और तमिल मेकर्स ने भी बनाया. शेखर कपूर की निर्देशक के रूप में शानदार यात्रा यहीं से शुरू हुई. अगर आपके पास जी5 (Zee5) का ओटीटी सब्सक्रिप्शन है, तो आप इसे वहां देख सकते हैं. वर्ना यह यूट्यूब (You Tube) पर भी उपलब्ध है.