जीवित्पुत्रिका पर्व पर पूजन करतीं महिलाएं।
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संतान की दीर्घायु, आरोग्य और सर्व कल्याण के लिए महिलाएं जीवित्पुत्रिका या जिउतिया निराजल व्रत रखेंगी। जीउत वाहन की पूजा और कथा सुनेंगी। कच्चे सूत में जिउतिया धारण करेंगी। लक्ष्मीकुंड पर लगे सोरहिया मेला का भी समापन होगा। अन्य मंदिरों में भी व्रती महिलाएं पूजन अर्चन करेंगी। पंचांगकारों ने छह अक्तूबर को ही जीवित्पुत्रिका मनाने पर सहमति जताई है।
जीवित्पुत्रिका को लेकर भी तिथि भेद बना है। मगर काशी के पंचांगकारों के अनुसार, छह अक्तूबर को ही जीवित्पुत्रिका का व्रत और अनुष्ठान संपन्न होगा। पौराणिक मान्यता और रीति रिवाज के मुताबिक, महिलाएं उड़द के साबूत दाने को निगलकर व्रत शुरू करती हैं। इसे बाद अन्न व जल कुछ भी ग्रहण नहीं करेंगी। शाम को पास के मंदिरों के पास विधि-विधान से पूजन करेंगी। अगले दिन व्रत का पारण करेंगी। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दी जाती है। सोलह दिनों से चल रहे सोरहिया मेला का भी जिउतिया के दिन ही समापन होगा। लक्ष्मीकुंड पर लक्ष्मी मंदिर में महिलाएं पूजन कर पुत्र के सौभाग्य व दीर्घायु की कामना करती हैं। व्रती महिलाएं कच्चे सूत के साथ सोने व चांदी के भी जिउतियां बनवाकर पुत्र की संख्यानुसार धारण करती हैं। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि धागे का गंडा बनाकर गंडे की विधिवत पूजा करेंगी। इसके बाद इसे गले में धारण करेंगी। रक्षासूत्र के रूप में पुत्र को भी गले में जिउतिया धारण करवाया जाता है।
ऐसे करें पूजा
जीवित्पुत्रिका व्रत में भी साफ-सफाई का ख्याल रखा है। इसमें गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ कर दें। छोटा-सा तालाब भी जमीन खोदकर बना लें। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल पूरित पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रूई से अलंकृत करें। फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत आदि नैवेद्य चढ़ाकर पूजन करें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए। कथा सुननी चाहिए।
तिथि को लेकर मतभेद
महावीर पंचांग के संपादक डॉ. रामेश्वरनाथ ओझा, प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय और बीएचयू के प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि छह अक्तूबर को जीवित्पुत्रिका का व्रत रखा जाएगा। जबकि बीएचयू से प्रकाशित विश्व पंचांग में जीवित्पुत्रिका का व्रत सात अक्तूबर को मान्य है।