कुंदन कुमार/गया. त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध करने वाले पंचतीर्थ में पितृपक्ष महासंगम के द्वितीय तिथि को उत्तर मानस तीर्थ में जाकर आचमन कर कुशा से सर पर जल छिड़कने और स्नान करने का विधान है. गया शहर के पिता महेश्वर के पास उत्तर मानस सरोवर में पितृपक्ष के द्वितीया तिथि को पिंडदान व तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने पर पितरों को जन्म मरण से छुटकारा मिल जाता है. उतर मानस में जाकर आत्म शुद्धि के लिए स्नान करें. उसके बाद तर्पण करके पिंडदान करें. सूर्य को नमस्कार करने से पितरों को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है.
उतर मानस से मौन होकर दक्षिण मानस में जाएं. दक्षिण मानस में तीन तीर्थ हैं, उनमें स्नान करके अलग-अलग कर्मकांड करके फल्गू नदी के तट पर जो जिह्वालोल तीर्थ है, वहां पिंडदान करने से पितरों को अक्षय शांति मिलती हैं. इसके बाद तीर्थों की श्राद्ध की योग्यता सिद्वि के लिए गदाधर भगवान को पंचामृत से स्नान करावें और वस्त्रालंकार चढ़ावें. आत्मा की शुद्धी और सूर्य लोक की प्राप्ति के लिए स्नान और तर्पण कर पितृ विमुक्ति के लिए सपिंडों का श्राद्ध किया जाता है. उत्तर मानस के बाद दक्षिण मानस (सूर्यकुंड) जाते हैं जो विष्णुपद मंदिर के नजदीक स्थित है. मान्यता के अनुसार सूर्य कुंड सरोवर में तर्पण करने से पितरों को सूर्य लोक की प्राप्ति होती है.
उत्तर मानस तीर्थ की विशेषता
उत्तर मानस तीर्थ की विशेषता यह है कि यहां पूर्वजों के निमित्त बनाएं, पिंड जो विभिन्न अन्न से तैयार किए जाते हैं. उसे अन्न का स्वाद भगवान सूरज की किरणें ही खींचकर पिंडदान करने वाले के पूर्वजों तक पहुंचाती हैं. चाहे वह जिस भी योनि में हो वहां तक पहुंचाने का काम भगवान भास्कर के किरणों का है. माना जाता है कि उत्तर मानस में पिंडदान से जुड़े कार्य करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृ काफी प्रसन्न होते हैं. उनकी प्रसन्नता से घर में खुशहाली आती है और उन्नति के कार्य आरंभ होते हैं.
उत्तर मानस घाट पर पिंडदान का महत्व
इस संबंध में जानकारी देते हुए आयुर्वेदिक कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर विनोद कुमार बताते हैं कि इस दिन पूर्वज उत्तर मानस घाट पर आकर अपने पुत्रों का इंतजार पिंडदान के लिए करते हैं. जब उनके पुत्र यहां आकर पिंडदान करते हैं तो वह काफी प्रसन्न होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 1, 2023, 13:34 IST