बिहार में किसका कुआं और किसकी खेत, जानें किसके हक में होगा तालाब और उसका पानी!

हाइलाइट्स

बिहार में जातिगत गणना सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सियासत शुरू.
‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी’ पर बढ़ेगी राजनीति.
केंद्र की मोदी सरकार चल सकती है रोहिणी कमीशन रिपोर्ट का दांव.

पटना. ठाकुर का कुआं… बिहार की की राजनीति में आजकल यह खूब चर्चा में है. संसद में राजद सांसद मनोज झा के कविता पाठ से शुरू हुए विवाद ने जहां बिहार की जातिगत राजनीति की तपिश को अचानक ही बढ़ा दिया. वहीं, इस कुएं के पानी से खेत जोतने (सियासी फायदा उठाने) की कवायद के बीच ही बिहार की नीतीश कुमार की सरकार ने ‘कास्ट बॉम्ब’ फोड़ दिया और जातिगत सर्वे रिपोर्ट के आंकड़े जारी कर दिए. अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती पर जारी आंकड़ों ने राजनीतिक रूप से आक्रामकता को बढ़ा दिया है. जीत का बिगुल सत्ताधारी महागठबंधन बजा रहा है तो वहीं, ‘कास्ट बॉम्ब’ को विरोधी फुस्स करार दे रहे हैं, लेकिन धुआं उठ चुका है और इसको हवा देने की सियासत भी शुरू हो चुकी है.

दरअसल, बिहार में जाति आधारित गणना की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, आबादी के हिसाब से अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत है, जिसकी संख्या 4,70,80,514 है. वहीं, पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी है जिनकी तादाद 3,54,63,936 है. जबकि, अनुसूचित जाति के 19.6518% हैं, इनकी आबादी 2,56,89,820 है. वहीं, अनुसूचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है जो कि कुल आबादी का 1.6824% है. अनारक्षित यानी सवर्णों की की कुल आबादी 2,02,91,679 यानी 15.5224% है. कुल आबादी में वर्तमान में मुस्लिम आबादी 17.7 प्रतिशत है. अब इसी आधार पर राजनीति गर्म है और हिस्सेदारी और भागीदारी की बात सियासत में जोर पकड़ने लगी है.

मुख्यमंत्री ने की आर्थिक न्याय की बात
जातिगत सर्वे रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने पर कहा, बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था. इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराया है. जाति आधारित गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है, बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है. इसी के आधार पर सभी वर्गों के विकास एवं उत्थान के लिए अग्रेतर कार्रवाई की जाएगी. इसको लेकर सभी 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी और सभी को अवगत करवाया जाएगा.

भागीदारी और हिस्सेदारी वाली लालू की राजनीति 
नीतीश कुमार ने जातिगत सर्वे को लेकर जहां आने वाले समय की योजनाओं में इस आंकड़े के मददगार होने की बात कही है, वहीं पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव ने कहा कि ये आंकड़े वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और तरक्की के लिए समग्र योजना बनाने एवं हाशिए के समूहों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए नजीर पेश करेंगे. सरकार को अब सुनिश्चित करना चाहिए कि जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी हो. जाहिर है लालू यादव ने ‘सियासी बॉम्ब’ तैयार कर लिया है और इसे वक्त के साथ छोड़ने भी जा रहे हैं.

बिहार में किसका कुआं और किसकी खेत, जानें किसके हक में होगा तालाब और उसका पानी!

तेजस्वी यादव की ए टू जेड राजनीति पर भी नजर
वहीं, अभी तक ए टू जेड की राजनीति का दावा करने वाली तेजस्वी यादव की आगुवाई वाला राजद अभी से भागीदारी और हिस्सेदारी की बात करने लग गई है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि पीएम मोदी ने जातीय गणना की मांग को नकार दिया था, लेकिन बिहार सरकार ने अपने बलबूते जातीय जनणना कराया. तेजस्वी यादव ने कहा कि जातीय गणना की रिपोर्ट से अब गरीबों के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी. तेजस्वी यादव ने कहा कि देशभर में जातीय जनगणना होनी चाहिए. केंद्र सरकार को यह देशभर में कराना चाहिए.

केंद्र सरकार के पास भी है ‘अचूक हथियार’
हालांकि, यहां यह स्पष्ट है कि जाति आधारित जनगणना का संबंध आरक्षण से भी है. दरअसल, नीतीश कुमार की मांग रही है कि देश में आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान हो. वर्तमान में पिछड़ी जातियों को 27% आरक्षण मिलता है. यह पता चलने पर कि पिछड़ी जातियों में किस जाति के लोगों की संख्या कितनी है और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी है. उनके लिए खास योजना बनाई जा सकती है. लेकिन, यहां यह भी बता दें कि मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद समाज के उन तबकों ने अधिक लाभ उठाया है जो ओबीसी में भी उच्च वर्ग में से आते हैं. यानी जिन्हें इसका लाभ मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला है. ऐसे में जवाब में केंद्र सरकार की ओर से भी रोहिणी कमीशन के तौर पर अचूक हथियार का इस्तेमाल किया जा सकता है.

रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट लगा सकती है ‘आग’
बताया जा रहा है कि रोहिणी आयोग ने ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार की नौकरियों और प्रवेश के आंकड़ों का विश्लेषण किया तो पता चला कि सभी नौकरियों और शिक्षा के लिए कॉलेजों की सीटों में से 97 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी उपजातियों की 25 प्रतिशत के पास हैं. करीब 983 ओबीसी समुदायों को सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में सीट के रूप में हिस्सेदारी बिल्कुल भी नहीं मिली.

‘वाजिब हकदारों’ की हिस्सेदारी और भागीदारी का खेल बाकी
सूत्रों की जानकारी के अनुसार, लगभग 1,100 पन्नों की दो भागों की रिपोर्ट में देश में वर्तमान में सूचीबद्ध 2,633 पिछड़ी जातियों की पहचान, जनसंख्या में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व और अब तक आरक्षण नीतियों से उन्हें मिले लाभों से संबंधित डेटा को संकलित किया गया है. इसमें सामने आया है कि करीब डेढ़ सौ जातियां हैं जिन्होंने अब तक ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लिया है. जाहिर है केंद्र सरकार ‘आरक्षण के वाजिब हकदारों’ को लेकर नई सियासत को जन्म दे सकती है.

Tags: 2024 Loksabha Election, 2024 लोकसभा चुनाव, Caste Census, Caste politics, CM Nitish Kumar, Lalu Yadav News, Nitish Government

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