ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा, महान दार्शनिक को एक श्रद्धांजलि

Vithal C Nadkarni

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में स्थित आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण होगा. 8वीं शताब्दी में दार्शनिक आचार्य शंकर या आदि शंकराचार्य ने संघर्ष और उथल-पुथल के बीच एकता का संदेश दिया था. ओंकारेश्वर में स्थापित शंकराचार्य की यह प्रतिमा 108 फीट ऊंची है. यह प्रतिमा अपने निर्माण के तरीके की वजह से भी काफी खास है. 2018 में प्रसिद्ध शोलापुर के कलाकार वासुदेव कामथ ने इस प्रतिमा को बनाना शुरू किया था.

इसके बाद एक विशाल सार्वजनिक रैली और एकात्म यात्रा नामक जुलूस निकाला गया, जिसमें लगभग 23,000 ग्राम पंचायतें शामिल हुई थी. इस यात्रा के दौरान सामुदायिक भागीदारी की मदद से मूर्ति के लिए धातु का चयन किया गया और उसे एकत्र किया गया. यह स्टैच्यू ऑफ वननेस सार्वजनिक-निजी भागीदारी का एक उदाहरण है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदि शंकराचार्य की गौरवशाली उपलब्धियों को याद किया और कहा कि उन्होंने 4 आध्यात्मिक मठों की रचना भी की थी. उन्होंने दशनामी सम्प्रदाय (दस नामों की परंपरा) की स्थापना की. उन्हें एका-दंडी संन्यासी के रूप में भी जाना जाने लगा. ये साधु आम तौर पर वेदांत परंपरा के प्रसार के लिए श्रृंगेरी, बद्रीनाथ, द्वारका और पुरी के चार प्रमुख केंद्रों से जुड़े, जो 21वीं सदी में भी फल-फूल रहा है.

सीएम शिवराज ने कहा, ‘आदि शंकराचार्य न केवल एक विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक थे, बल्कि उन्होंने छोटी उम्र में ही एकता के लिए पूरे भारत में पैदल यात्रा की थी. उन्होंने एक ही मंच पर कई देवताओं की पूजा के साथ विभिन्न संप्रदायों को एक छत के नीचे लाया. उन्होंने उपनिषदों, ब्रह्म सूत्र और भगवद गीता पर भी कई लेख लिखे, जो आज भी क्लासिक लेखक के रूप में जानी जाती है.’

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