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नई दिल्ली15 घंटे पहले
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RBI की अपर लेयर NBFCs की लिस्ट में शामिल होने के बाद अब टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड को सितंबर 2025 तक शेयर बाजार में लिस्टिंग के लिए तैयार रहना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस के अनुसार, अगर कोई कंपनी ‘अपर-लेयर’ NBFCs की लिस्ट में शामिल की जाती है तो उसे RBI का नोटिफिकेशन जारी होने के 3 साल के अंदर बाजार में लिस्ट होना अनिवार्य है।
टाटा संस की वैल्यूएशन करीब ₹11 लाख करोड़
टाटा संस की IPO लिस्टिंग, टाटा ट्रस्ट सहित टाटा संस के शेयरहोल्डर्स के लिए फायदेमंद साबित होगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि टाटा संस की वैल्यूएशन करीब ₹11 लाख करोड़ हो सकती है।
₹55,000 करोड़ का होगा टाटा संस के IPO का साइज
ऐसे में अगर टाटा ग्रुप की यह होल्डिंग कंपनी अपने 5% शेयर बेचकर इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी IPO के जरिए लिस्ट होने का फैसला लेती है, तो टाटा संस के IPO का साइज लगभग ₹55,000 करोड़ का होगा। इसका मतलब यह है कि टाटा संस का IPO भारत का सबसे बड़ा पब्लिक इश्यू बन जाएगा।
अभी तक देश का सबसे बड़ा IPO LIC का रहा है जो पिछले साल आया था। जिसका साइज 21,000 करोड़ रुपए था। दूसरे नंबर पर Paytm का 18,300 करोड़ रुपए का IPO है, जो साल 2021 में आया था।
14 सितंबर को अपर लेयर NBFCs की लिस्ट में शामिल हुई थी टाटा संस
भारतीय रिजर्व बैंक ने 14 सितंबर को साल 2023-24 के लिए अपर लेयर ‘नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी’ यानी NBFCs की लिस्ट का ऐलान किया था। RBI ने स्केल बेस्ड रेगुलेशन के तहत इस अपर लेयर NBFCs की लिस्ट में टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड समेत 15 कंपनियों को शामिल किया है।
इस लिस्ट में LIC हाउसिंग फाइनेंस टॉप पर है। वहीं बजाज फाइनेंस दूसरे, श्रीराम फाइनेंस तीसरे और टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड चौथे नंबर पर शामिल है। टाटा संस के अलावा RBI ने टाटा ग्रुप की एक दूसरी कंपनी टाटा कैपिटल फाइनेंशियल सर्विसेस को भी NBFCs की लिस्ट में शामिल किया है। हालांकि, टाटा कैपिटल को लिस्टिंग की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि यह टाटा संस के साथ विलय कर रही है।
‘अपर-लेयर’ NBFCs की लिस्ट से बाहर आ सकती है टाटा संस
SMC ग्लोबल सिक्योरिटीज में रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट सौरभ जैन ने कहा, ‘RBI के क्लासिफिकेशन के बाद ऐसा नहीं है कि टाटा संस को तीन साल के भीतर IPO लॉन्चिंग और लिस्टिंग के लिए जाना ही होगा। टाटा संस के पास कंपनी के री-ऑर्गेनाइजेशन का एक और ऑप्शन है। टाटा ग्रुप की कंपनी री-ऑर्गेनाइजेशन के लिए जा सकती है और RBI की ‘अपर-लेयर’ NBFCs की लिस्ट से बाहर आ सकती है।’
हालांकि, सौरभ जैन ने आगे कहा कि क्लासिफिकेशन के तीन साल के भीतर IPO लॉन्च और शेयर लिस्टिंग की संभावना ज्यादा है। ग्रुप, सेक्टर और सेक्टर के आउटलुक के आधार पर, इस बड़े साइज के IPO को भी निवेशकों से उचित प्रतिक्रिया मिल रही है, क्योंकि इसमें प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट दोनों में पर्याप्त लिक्विडिटी है।’
क्या कहती है RBI की गाइडलाइंस
RBI की गाइडलाइंस के अनुसार, नॉन-लिस्टेड ‘अपर-लेयर’ NBFC के लिए ‘अपर-लेयर’ NBFC के रूप में क्लासिफाइड होने के 3 साल के भीतर लिस्ट होना अनिवार्य है। क्लासिफाइड होने के बाद NBFC को ज्यादा कठोर रेगुलेटरी नियमों का अनुपालन करना होता है।
NBFCs सेक्टर के बढ़ते साइज और उससे जुड़े रिस्क के दूसरे सेक्टर पर बढ़ते असर को देखते हुए रिजर्व बैंक ने NBFC के लिए अक्टूबर 2022 से नए नियमों को जारी किया था। इसमें साइज और कारोबार के हिसाब से NBFC की 4 कैटेगरी बनाई गई हैं।
कैटेगरी का उद्देश्य कंपनी के विस्तार के साथ उसके लिए आवश्यक नियमों को बढ़ाना है। आसान भाषा में कहें तो इनमें से NBFCs-अपर लेयर के नियम करीब-करीब वैसे हैं, जैसे बैकों के लिए दिए हैं। नियमों के मुताबिक, देश की टॉप-10 NBFCs इस लिस्ट में बनी रहती हैं और इनके अलावा रिजर्व बैंक और किसी कंपनी को चाहे तो इसमें शामिल कर सकता है।
क्या है स्केल बेस्ड रेगुलेशन
NBFC का महत्व इस लिए है कि उन्होंने उस जगह तक लोगों की आर्थिक जरूरतों को पूरा किया, जहां बैंक नहीं पहुंच सकते थे। NBFC के द्वारा दूर दराज तक वित्तीय सेवाओं को पहुंचाने की खासियत की वजह से इन्हें बढ़ावा दिया गया और इसके लिए नियम उतने सख्त नहीं रखे गए जितने बैंकों के लिए होते हैं।
हालांकि, समय के साथ कई NBFC का साइज बढ़ा और इसी के साथ ही उनके साथ उनसे जुड़े जोखिमों का आकार भी बढ़ा और वो ऐसी जगह पर पहुंच गए, जहां उनसे जुड़े जोखिमों का दूसरे सेक्टर पर असर देखने को मिल सकता था।
कोविड ने इस कमजोरी को सामने रखा। इसे देखते हुए अक्टूबर 2021 में रिजर्व बैंक ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें स्केल पर आधारित नियमों की बात कही गई। यानि आकार में जितनी बड़ी कंपनी उसके लिए उसी के अनुसार रेगुलेशन रखे गए। एक साल बाद रिजर्व बैंक ने ऐसी 4 कैटेगरी से जुड़े नियमों को जारी कर दिया।
NBFC की कितनी है कैटेगरी
रिजर्व बैंक ने स्केल बेस्ड रेगुलेशन में 4 कैटगरी रखी हैं। जिसमें से 3 कैटेगरी में कंपनियों को रखा गया है। सबसे नीचे बेस लेयर ( NBFC –BL) आती है, जिसमें 1000 करोड़ रुपए से कम के एसेट साइज की कंपनियां शामिल की जाती हैं। मोटे तौर पर इसमें वो कंपनियां आती हैं, जिनका कारोबार सीमित हो यानि वो स्पेस्फिक (P2P, अकाउंट एग्रीगेटर, नॉन-ऑपरेटिव होल्डिंग कंपनी) हों या फिर जिनका कस्टमर इंटरफेस न हो।
इससे ऊपर मिडिल लेयर ( NBFC –ML) आती है। इसमें सभी डिपॉजिट स्वीकार करने वाली कंपनियां शामिल की जाती हैं। भले ही इनका एसेट साइज कितना हो, वहीं डिपॉजिट न स्वीकार करने वाली कंपनियां जिनका एसेट साइज 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो। इंफ्रा डेट फंड- NBFC, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां, इंफ्रा फाइनेंस कंपनी –NBFC में शामिल की जाती हैं। यहां बेस लेयर से ज्यादा रेगुलेशन होते हैं।
फिर इसके ऊपर अपर लेयर ( NBFC-UL) कंपनियां आती हैं। जिनका साइज काफी बड़ा होता है और इनके लिए नियम करीब-करीब वैसे ही होते हैं, जैसे बैंकों के लिए होते हैं। एसेट साइज के आधार पर टॉप-10 एनबीएफसी अपर लेयर में बनी रहती हैं। वहीं कई अन्य पैरामीटर होते हैं, जिनके आधार पर रिजर्व बैंक कुछ अन्य कंपनियों को इसमें शामिल कर सकता है। सरकारी स्वामित्व वाली NBFC को फिलहाल अपर लेवल में शामिल नहीं किया जाएगा, वो या तो बेस लेवल में या फिर मिडिल लेवल में रहेंगी।
वहीं सबसे ऊपर टॉप लेयर ( NBFC-TL) कंपनियां आती हैं। सैद्धांतिक रूप से ये लेवल खाली रखा गया है। हालांकि, अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि अपर लेवल में शामिल कोई NBFC ऐसी जगह पहुंच गई है कि उसके साथ सिस्टमैटिक रिस्क भी बढ़ गई है तो ऐसी कंपनियों को बैंक टॉप लेयर में भेज दिया जाएगा।