वाट इज हिंडी? (व्यंग्य)

मैं हैदराबाद एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट का इंतजार कर रहा था। फ्लाइट थी दो घंटे लेट। आखिरकार दो घंटे बाद फ्लाइट आ ही गई। चेकिन करने का समय आया तो मेरे आगे एक मैडम खड़ी थीं। मैडम पाश्चात्य संस्कृति की ब्रैंड अबासिडर दिख रही थी। ऊपर से भारी-भरकम अंग्रेजी शब्दों का लाग लपेट। जब तक खड़ी रही तब तक किसी से फोन पर अंग्रेजी झाड़े जा रही थीं। मैं ठहरा पक्का हैदराबादी। वह भी पुराने शहर का। उसमें तभी मोगलपुरे का। देश की पूरी लाली मेरे मुँह में दिखती थी। होगी भी क्यों न! साहब पान जो खाता हूँ मैं। वह तो एयरपोर्ट का तामझाम देखकर किसी तरह अपने मुँह पर ताला लगाए बैठे था। अगर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन होता तो अब तक वो हालत करता कि लाली तेरे लाल की जित देखो तित लाल की तर्ज पर सारा वातावरण लाली से भर देता। बहरहाल चेकिन चल रही थी। टाइट सेक्युरिटी के बीच सबकी जमकर तलाशी ली जा रही थी। मैं अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था।
चेकिन करने वाले सीआईएसएफ कांस्टेबल ने मेरे आगे खड़ी मैडम से हिंदी में कुछ पूछा। इस पर मैडम ऐसी भड़की मानो किसी ने उनका पर्स छीन लिया हो। मैडम को न जाने क्या हुआ पता नहीं। फर्राटेदार अंग्रेजी में जोर-जोर से बड़बड़ाने और चिल्लाने लगीं- “हाव डेर यू टु आस्क मी इन हिंडी”, “आई विल कंप्लेन अंगेस्ट यू।”, “आई विल फायर यू फ्रॉम जॉब”, “यू सेंसलेस पिपुल।।” अब मैं ठहरा अंग्रेजी में गुड़गोबर। मुझे न मैडम की बात समझ में आ रही थी और न ही मामला। मैं अपने बाल नोंचने लगा। मुझसे रहा नहीं गया। मैं पास में खड़े सेक्युरिटी वाले से पूछ बैठा – “भाई साहब! यह मैडम इतना क्यों चिल्ला रही हैं? वैसे हुआ क्या है?” 

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सेक्युरिटी गार्ड ने मुझसे कहा – “वह हुआ यूँ कि सीआईएसएफ कांस्टेबल ने मैडम से हिंदी में कुछ पूछ लिया। मैडम ने कहा- “आई डोंट नो हिंडी। प्लीज़ आस्क मी इन इंग्लिश।” इस पर कांस्टेबल ने पूछा- “क्या आप भारतीय हैं?” इतना सुनना था कि मैडम का गुस्सा सातवें आसमान पर। मैडम को लगा कि उनकी भारतीयता को अपमानित किया गया है। इसीलिए मैडम इतनी गुस्से में बड़बड़ा रही हैं।” इस पर मैंने कहा – “अरे साहब! क्या जमाना आ गया देखिए। इतनी-इतनी बातों के लिए ऐसे भला कौन करता है। देखने वाले को भी कितना खराब लगता होगा। कांस्टेबल ने हिंदी में क्या पूछ लिया मैडम ऐसी भड़की जैसे कोई बड़ा अपराध हो गया। अब आप ही बताइए साहब! हिंदी किधर नहीं है? एयरपोर्ट पर हर चीज़ पहले हिंदी में लिखा होता है उसके बाद अंग्रेजी में। उतना क्यों साहब! देश के रुपए-पैसों पर पहले हिंदी में लिखा होता है और बाद में इंग्लिश। इसका मतलब यह तो नहीं कि जिन लोगों को हिंदी पसंद नहीं हैं वे रुपए-पैसे उठाकर फेंक देते हैं? दो शब्द हिंदी में बोल देने से जमीन-जायदाद थोड़ी न कम हो जाएगी! वैसे भी हिंदुस्तान में ऐसा कौन होगा जिसे हिंदी नहीं आती होगी। थोड़ी-बहुत हिंदी तो सभी को आती है।”
इस पर सेक्युरिटी गार्ड ने कहा – “भाषा का झगड़ा जितना हमारे देश की राजनीति में है, उतना लोगों में नहीं है। भाषा के नाम पर लड़ाना, लोगों को भड़काना, जैसे अभी-अभी मैडम भड़क गयी थीं, ठीक उसी तरह उनकी संवेदनाओं से खेलकर वोट बटोरने का प्रयास करना, हमारी गंदी राजनीति का हिस्सा है। मैंने आज तक अपने जीवन में किसी  को हिन्दी का विरोध करते हुए नहीं देखा। वे तो टूटी फूटी ही सही, आपसे अंग्रेजी की जगह हिंदी में बात करते हुए मिलेंगे। हाँ कुछ लोग होते हैं जो एयरपोर्ट जैसी खास जगहों पर सबका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भाषा के नाम पर कुछ न कुछ तमाशा करते रहते हैं। साफ-सुथरी राजनीति जहाँ एक भाषा को फलने-फूलने का अवसर देती है, वही गंदी राजनीति उस भाषा को जमीन में दफन भी कर देती है।”
मैंने सेक्युरिटी गार्ड की बातों पर हामी भरते हुए कहा, “आपकी बात में दम तो है। जब अंग्रेजी बोलने वाले नेतागण अपने भाषणों में इसे देश की सबसे अधिक बोली, लिखी, सुनी और पढ़ी जाने वाली भाषा कहते हैं तब मेरी हँसी छूटने लगती है। जब बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद टी.वी. व अन्य प्रचार-प्रसार माध्यमों के जरिए हिंदी में बेचते हैं तब देश की सबसे अधिक कमाऊ, बिकाऊ तथा गाने-बजाने की यह भाषा बड़ी कमाल लगती है। जब फिल्म और टीवी से जुड़े लोग मोटी-मोटी कमाई कर अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यमों के बड़े-बड़े स्कूलों में भेजते हैं तब मेरी बोलती बंद हो जाती है। जहाँ हिंदी बोलने की सजा कभी कक्षा के बाहर कान पकड़े घुटनों के बल खड़े होकर भुगतनी पड़ती है, या फिर नोटबुक भर-भरकर यह लिखवाया जाता है कि अगली बार से हिंदी में बोलने की गल्ती नहीं करेंगे। जब भाषा का इस्तेमाल जोड़ने के लिए कम और तोड़ने के लिए ज्यादा किया जाता है तब वोट की राजनीति शुरु होती है।”
मेरी और सेक्युरिटी गार्ड की बातचीत खत्म हुई थी कि नहीं तभी अंग्रेजी मैडम फोन पर किसी से बात करती हुई दिखायी दी। ध्यान से सुनने पर पता चला कि फोन के दूसरे सिरे पर उनका नौकर है। मैडम तो पहले अंग्रेजी में बात कर रही थीं। लेकिन दो मिनट बाद डाँटते-फटकारते हुए कहने लगीं- “देखो मैं दो-तीन दिन में लौट आऊँगी। तुम बेकार के बहाने बनाकर काम से छुट्टी मत लेना। अगर तुमने छुट्टी ली तो मैं तुम्हारी पगार काट लूँगी।” यह माजरा देख मैं और सेक्युरिटी गार्ड हक्के-बक्के से अवाक् रह गए।
– डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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