लगातार कम हो रही मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या, इस खासियत के कारण थे मशहूर

कृष्ण कुमार/नागौर. राजस्थान की आन बान व शान का जिक्र करे और घोड़ों जिक्र न हो ऐसा संभव नही है क्योंकि यहां पर घोड़ों को रखना शान मानते हैं. लेकिन इन घोड़ों में मारवाड़ी नस्ल के घोड़े की संख्या लगातार नागौर मे कम होती जा रही है. आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है कि मारवाड़, मेवाड़ और जांगल प्रदेश में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों का पालन किया जाता था वर्तमान समय यहां पर केवल शौक रुपी पालन होने लगे है .

वर्तमान समय में नागौर जिले में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की बात करे तो अब यहां पर ज्यादा पालन नही होता है. जिसके कारण यहां पर ज्यादा पशुपालन नही होता है. ज्यादा पशुपालन नही होने की तीन से चार मुख्य वजह सामने आ रही हैं जिसका जिक्र करते हुऐ पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक महेश कुमार मीणा ने बताया कि आधुनिक मशीनरी ने घोड़ों की जगह ले ली तथा घोड़े के लालन पालन में खर्चा अत्यधिक आता है जिसके कारण घोड़े का खर्चा निकालना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल हो जाता है. वहीं यहां पर पहले जैसा घोड़ों का उपयोग रहा नही है जिसके कारण घोड़ा पालन का स्तर नीचे गिरता जा रहा है.

अंतिम गणना वर्ष 2019 में हुई

महेश मीणा बताते है वर्ष 2012 में हर नस्ल के घोड़े की गणना हुई जिसमें पूरे नागौर जिले मे 2086 कुल घोड़ो की संख्या थी लेकिन वर्ष 2019 में पशु गणना में घोड़ों की संख्या राज्य सरकार द्वारा जारी ही नही की है केवल पशु जनगणना में गाय, भैंस, बकरी सुअर और भेड़ की संख्या जारी की गई है. वहीं अजमेर संभाग की बात करे तो वर्ष 2019 मे घोड़ों की कुल संख्या 3314 है वहीं वर्ष 2012 की जनगणना अनुसार 7144 थी. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि घोड़ों की संख्या लगातार कम हुई है.

जानिए मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की विशेषता

डॉ. सुरेन्द्र किरड़ोलिया बताते है कि मारवाड़ी घोड़े अपनी कद काठी व मजबूती के लिए जाने जाते हैं. इन घोड़ों की खुराक ज्यादा होती है और इनकी पहचान इनके कानों से की जाती है. इनके कान का सबसे ऊपरी हिस्सा अंदर की ओर मुड़ा हुआ होता है. यह घोड़े वफदारी, बहादुरी और समझदारी के लिए विश्व विख्यात है. मारवाड़ी नस्ल के घोड़े मारवाड़, जयपुर, अजमेर, उदयपुर और गुजरात के समीप क्षेत्रों में पाए जाते है.

वहीं डॉ. सुरेन्द्र का कहना है कि कृत्रिम गर्भाधान का कार्य शुरू कर दिया है लेकिन वर्तमान समय में नागौर के राजकीय हॉस्पिटल में कोई भी अश्वपालक अपनी घोड़ी को लेकर यहां नही आया है. वहीं अश्वपालक कृत्रिम गर्भाधान से ज्यादा नेचुरल गर्भाधान करवाना उचित समझते है.

Tags: Local18, Nagaur News, Rajasthan news

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *