अमित शाह के बदले सुर
‘अबकी बार 200 पार’ के नारे के साथ मध्यप्रदेश में अपने चुनावी सफर की शुरुआत करने वाली बीजेपी अब 150 पर आकर ठिठक गई है। पार्टी के सभी बड़े नेता अब 150 सीटें जीतने की बात कहने लगे हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपने सुर बदले हैं और 150 सीटें जीतने की बात कह रहे हैं। हाल ही में मंडला में जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी 150 सीटें जीतने वाली है।
नरेंद्र सिंह तोमर भी कर चुके हैं 150 सीटों की बात
इससे पहले मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक कार्यक्रम में 150 सीटें जीतने की बात कही थी। हालांकि एक पत्रकार ने इस दौरान उनसे पूछा भी कि पार्टी 200 की बात करते-करते 150 पर कैसे आ गई, जवाब में नरेंद्र सिंह तोमर ने मजाकिया लहजे में कहा था कि ‘आप ही बता दीजिए कितनी सीटों की बात करनी है।’
आखिर ऐसी कौन सी वजहें हैं, जिनकी वजह से पार्टी ने 50 सीटें कम कर दीं। एक नजर ऐसे 5 प्वॉइंट पर…
1. बड़े और अहम नेताओं की नाराजगी
चुनाव से पहले ऐन मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं। इसके अलावा पूर्व लोकसभा स्पीकर और बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुमित्रा महाजन भी पार्टी में अपनी नाराजगी व्यक्त करा चुकी हैं। इंदौर के ही एक और नेता सत्यनारायण सत्तन भी पार्टी से नाराज चल रहे हैं।
2. सर्वे रिपोर्ट में सब ठीक नहीं
एमपी चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव से जो फीडबैक पार्टी को मिले हैं, उसमें सब ठीक नहीं है। सर्वे रिपोर्ट में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है।
3. लगातार पार्टी छोड़ रहे नेता
एमपी में चुनाव की घोषणाओं से पहले ही बीजेपी ने 39 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करके दांव खेला था। इस लिस्ट के जारी होने के साथ ही बीजेपी में बगावत का दौर भी जारी हो गया। एक-एक करके कई मौजूदा विधायक और पूर्व नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। हाल ही में वीरेंद्र रघुवंशी, भंवर सिंह शेखावत और गिरिजाशंकर शर्मा ने भाजपा छोड़ दी है। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने भी बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है।
4. सत्ता विरोधी लहर भी बनी चुनौती
लगभग 20 सालों से भाजपा सत्ता में हैं। मुख्यमंत्री भी शिवराज सिंह ही हैं। ऐसे में जनता के बीच सत्ता विरोधी लहर भी बनी हुई हैं। यह बात पार्टी को भी पता है। पार्टी ने जो सर्वे कराए हैं, उसमें भी ये बात सामने आई थी। इन चुनावों में शिवराज सिंह पर कम भरोसे की बात भी इसी फैक्टर से सामने निकलकर आई है।
5. पार्टी में गुटबाजी
पार्टी इन चुनौतियों से निकले भी तो कार्यकर्ताओं में गुटबाजी भी चरम पर हैं। लगभग सभी सीटों पर हर उम्मीदवार के अपने समर्थक हैं। टिकट न मिलने पर सभी बगावत कर सकते हैं। पार्टी के सर्वे और फीडबैक में ये बातें सामने आ चुकी हैं। इसलिए इनसे पार पाना भी एक चुनौती बना हुआ है।
ऐसा रहा पिछले चुनावों में परफॉर्मेंस
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 40.89 प्रतिशत वोट और 114 सीटें हासिल की जबकि बीजेपी को 41.02 प्रतिशत मत और 107 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। बीजेपी चुनाव हारी और 15 महीने तक विपक्ष में बैठी। सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के कांग्रेस छोड़ने के कारण बीजेपी वापस राज्य में सत्ता में आ सकी।