9 बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कंधा… मुखाग्नि भी दी, श्मशान में फर्ज निभाता देख रो पड़े लोग

अनुज गौतम/सागर: बुंदेलखंड में बेटियों और महिलाओं का श्मशान घाट जाना वर्जित रहता है, लेकिन सागर में पिता की मुक्ति के लिए 9 बेटियों ने समाज की परंपराओं को तोड़ दिया. वो न सिर्फ मुक्तिधाम पहुंचीं, बल्कि उन्होंने धार्मिक रीति रिवाज से मुखाग्नि भी दी. दृश्य देखने वालों की आंखें नम हो गईं.

दरअसल, सागर के उप नगरीय क्षेत्र मकरोनिया के वार्ड नंबर 17 में रिटायर्ड पुलिसकर्मी हरिश्चंद्र अहिरवार रहते थे. उनकी नौ बेटियां ही हैं, जिनका पालन पोषण हरिश्चंद्र ने बेटों की तरह किया था. इनमें से 7 बच्चियों के हाथ पीले कर चुके थे, दो बेटियों की शादी होना बाकी थी. लेकिन, अचानक उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया. फिर अस्पताल में निधन हो गया.

रिटायर्ड एएसआई हरिश्चंद्र के कोई बेटा नहीं था. ऐसे में उनकी बेटियों ने एक साथ मिलकर पिता की आत्मा को मुक्ति देने के लिए विधिवत अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया. सभी शव यात्रा के साथ में गईं और फिर मुक्तिधाम में बेटे की तरह अंतिम संस्कार का सारा विधान किया. इस दौरान काफी संख्या में लोग मौजूद रहे.

बहनें करेगी छोटी बहनों को विदा
पिता के जाने के बाद 9 में से दो बेटियां शादी के लिए रह गई हैं, जिनकी जिम्मेदारी अब इन सात बहनों पर है. वह पिता का फर्ज निभाते हुए इन बेटियों को डोली में बैठा कर विदा करेंगी. वहीं, रिश्तेदार छोटेलाल अहिरवार ने बताया कि बेटियों ने पिता को हिंदू रीति रिवाज के अनुसार कंधा दिया और अन्य क्रियाएं कराई. इस दौरान समाज के लोगों ने गर्व से कहा कि पुत्र ही सब कुछ नहीं होते. उनकी 7 बेटियों की शादी हो गई. पुत्री रोशनी व गुड़िया अविवाहित हैं.

हम बहनों का भाई नहीं
बेटी वंदना ने बताया कि पिता को हम बेटियों से काफी लगाव था. हमारा कोई भाई नहीं है. इस कारण उनके साथ सभी छोटी-बड़ी बहनों, जिनमें अनिता, तारा, जयश्री, कल्पनना, रिंकी, गुड़िया, रोशनी, दुर्गा ने एक साथ बेटी होने का फर्ज निभाने का फैसला किया था. उनके पिता ही उनका संसार थे.

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