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धीरे-धीरे मुनाफा बढ़कर एक रुपया, 10 रुपए, 100 रुपए और 6,000 रुपए तक पहुंच गया. साल 1959 में लिज्जत पापड़ ने 6,000 रुपए की कमाई की. इन पैसों का इस्तेमाल मार्केटिंग या विज्ञापन करने के बजाए पापड़ की गुणवत्ता को सुधारने में किया गया. धीरे-धीरे काम बढ़ा, तो लोग जुड़ने लगे.