अभिलाष/ मिश्रा/ इंदौर. शहर के सराफा बाजार में 1950 से अब तक मिलने वाली मिठाई ‘वड़ी नुक्ती’ को इस शहर ने कई नाम भी दे दिए हैं. किसी के लिए यह दाल का रसगुल्ला है तो किसी के लिए रसभरी, कोई इसे ‘वड़ी नुक्ती’ कहता है तो कोई मूंग के दाने. एक ही व्यंजन के इतने अधिक नाम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में इसके प्रति कितनी दीवानगी है.दुकान संचालक शिवनारायण बताते है कि साल 1949–50 में उनके पिता जीछगन लाल आत्माराम जी ने बड़ा सराफा से इस दुकान की शुरूआत की थी.
उनका कहना है मैं बचपन से ही पिता जी के साथ यहां काम सिखने लगा. या कह लीजिए की हमारे पिता जी ही हमारे उस्ताद थे. जब भी स्वाद में जरा भी बदलाव आता पिता जी तत्काल हमें समझाते की ग्राहकों के लिए स्वाद ही हमारी पूजा है. जिसे हमे हमेशा बनाए रखना है. जो आज भी हम कर रहें है. लगभग 73 वर्ष पुरानी इस ‘जलेबी भंडार’ दुकान का संचालन अब शिवनारायण जी के साथ तीसरी पीढ़ी के तौर पर उनके बेटे संदीप गुप्ता कर रहे है.
ऐसे चढ़ता है स्वाद
शिव नारायण बताते हैं कि यह नुक्ती छिलके वाली मूंग दाल से तैयार होती है. दाल को कुछ घंटे पहले भिगोना पड़ता है. इसके बाद छिलके को हटाकर दाल को अच्छे तरीके से धोया जाता है. मिक्सर में दाल को पीसने के बाद हाथ से काफी देर तक फेंटा जाता है ताकि इसे मुगौड़ी की तरह तलने पर यह कुरकुरी और स्वादिष्ट बन सकें. देसी घी से धीमीं आंच में सिझने के बाद, अपने आप रंग और स्वाद चढ़ने लगता है. खास बात है कि जिस व्यक्ति द्वारा दाल को धोया और पिसा जाता है वही व्यक्ति इस दाल को अपने हांथों से फेटता है, ताकि दाल में किसी तरह से तेल, मसाले या कुछ भी न आ जाए. इससे स्वाद बिगड़ सकता है इसलिए सिर्फ एक व्यक्ति ही इस पूरी प्रक्रिया में शामिल होता है. हमारे द्वारा कभी किसी कलर का उपयोग नहीं किया. अंत में गर्मागरम चासनी में डूबा कर परोसा जाता है.
हर शहरों में अलग नाम से मिली पहचान
संदीप बताते हैं कि इस मिठाई को हर शहर में अलग अलग पहचान मिली है. जैसा कि देश के हर शहर का अपना खानपान है. हर स्थान के खानपान की अपनी विशेषता है फिर चाहे आगरे के पेठे की बात हो या कर्नाटक के मैसूर में बनने वाला मैसूरपाक, बंगाल का रसगुल्ला हो या ओडिशा का छेना पोड़ा, हो या इंदौर का रबड़ी-मालपुआ अपने जायके से सभी को अपना दीवाना बना ही लेता है. इसी तरह इस मिठाई को इंदौर में वड़ी नुक्ती तोमहाराष्ट्र में सिद्धी जलेबी, पंजाबी इसे मुंगेड़ी या पेदाना कहते है तो वहीं बंगाल में रसभरी या मूंग के रसगुल्ले के नाम से जानी जाती है.
इंदौर के वीर अलिजा सरकार मंदिर में विशेष प्रसादी के तौर लगाता है भोग
शहर के प्रसिद्ध वीर अलिजा सरकार मंदिर में भी इस मिठाई की काफी मांग है. दुकानदार शिवनारायण जी बताते है कि हर मंगलवार और शनिवार को विशेष तौर पर इस मिठाई से भगवान का भोग लगता है, जिसके चलते कई ग्राहक दुकान में इसे अलिजा सरकार के नाम पर मांग करते है. मंदिर के पुजारियों और महाराज के लिए खास तौर पर इस मिठाई को तैयार कर भेजा जाता है.
डॉलर जलेबी से लेकर दो किलो तक की जलेबी
शिवनारायण बताते हैं कि मेरे ध्यान से जब पिता जी के समय हमने दुकान में बैठना शुरू किया तो दुकान में मिलने वाली वड़ी नुक्ती के अलावा इमरतीऔर जलेबी को ढाई रूपए शेर से बेचना शुरू किया आज वड़ी नुक्ती का भाव 520 रुपए है इसी तरहइमरती और जलेबी भी 500 रुपए के आस पास के भाव में है. बड़ा सराफा में स्थित यह दुकान सुबह सात से रात के डेढ़ बजे तक लोगोंवड़ी नुक्ती को साथ साथ इमरतीऔर जलेबी को के स्वाद से दीदार करती है .
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FIRST PUBLISHED : October 4, 2023, 14:16 IST