68 साल से बरकार है यहां के कलाकंद की बादशाहत, अमेरिका तक पहुंचा स्वाद

ओम प्रकाश निरंजन/कोडरमा: जिले का केसरिया कलाकंद 68 वर्षों से भी अधिक समय से लोगों के दिलों पर राज कर रहा है. इसकी मिठास जिसने एक बार चखी, फिर वह इस स्वाद का दीवाना हो जाता है. बड़ी संख्या में लोग इसे दूसरों को भेंट भी करते हैं. ताज्जुब तो तब होता है जिन्हें कलाकंद भेंट किया जाता है, वो इसकी और डिमांड कर बैठते हैं.

यही वजह है कि जिला प्रशासन इस केसरिया कलाकंद को नई पहचान देने में जुटा हुआ है. जिला प्रशासन इसकी जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग को लेकर कार्य कर रहा है. जानकार बताते हैं कि वर्ष 1955-56 में झंडा चौक के समीप स्थित भाटिया मिष्ठान भंडार के द्वारा सबसे पहले कलाकंद मिठाई बनाई गई थी.

पंजाब से झुमरीतिलैया में आकर बसे होटल मालिक कर्ण सिंह भाटिया और उनके पुत्र हंसराज भाटिया व मुल्क राज भाटिया को भी तब यह पता नहीं था कि कोडरमा का कलाकंद इतना प्रसिद्ध होगा. 80 के दशक में भाटिया मिष्ठान भंडार बंद हो गया और इससे जुड़े लोग अलग-अलग व्यवसाय में चले गए.

कोडरमा का वातावरण बनाता है इसको खास
जिले के झंडा चौक के समीप स्थित मिठाई की 53 वर्ष पुरानी दुकान आनंद विहार के संचालक आशीष खेतान ने बताया कि कलाकंद के लिए कोडरमा का पानी, स्थानीय स्तर पर मिलने वाला दूध एवं यहां का वातावरण काफी उपयुक्त है. जिसकी वजह से गर्म दूध को फाड़ने के बाद बने छेना में आसानी से क्रिस्टल जमा होते हैं. फिर यह ठंडा होने पर कलाकंद का रूप ले लेता है. इसके ऊपर केसर, पिस्ता और बादाम से गार्निशिंग की जाती है. जिले का पानी और वातावरण की वजह से कोडरमा का कलाकंद दानेदार और काफी स्वादिष्ट होता है. एक किला कलाकंद बनाने में 6 से 7 लीटर दूध का उपयोग होता है.

दूसरे जिले में कारीगरों को नहीं मिली सफलता
आशीष बताते हैं कि उनके कई कारीगरों ने दूसरे जिले में जाकर कलाकंद बनाने का प्रयास किया, लेकिन वातावरण और पानी में अंतर की वजह से दानेदार स्वादिष्ट कलाकंद बनाने में उन्हें सफलता नहीं मिली. आशीष ने बताया कि स्थानीय स्तर पर मिलने वाला लोकल दूध ही कलाकंद बनाने के लिए उपयुक्त है. पैकेट, डेयरी दूध से दानेदार और स्वादिष्ट कलाकंद नहीं बन पाता है.

5 वैरायटी के कलाकंद उपलब्ध
आशीष बताते हैं कि उनके द्वारा पांच वैरायटी के कलाकंद बनाए जाते हैं, जिसमें सफेद कलाकंद, केसरिया, गुड कलाकंद, शुगर फ्री और चॉकलेट कलाकंद शामिल है. इसमें केसरिया कलाकंद जो पीले रंग का होती है, उसकी बिक्री सबसे अधिक होती है. वहीं त्योहारों में इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. इनकी कीमत 450 से 550 रुपये प्रति किलो होती है.

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के लोगों ने भी चखा स्वाद
आशीष ने बताया कि कलाकंद को 2 से 3 दिन के लिए स्टोर किया जा सकता है और ठंड के मौसम में यह एक सप्ताह तक भी ठीक रह जाता है. उनके यहां के कलाकंद का स्वाद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया मैं बैठे लोगों ने भी चखा है. साधन के अनुसार उनके द्वारा आसपास के जिले में भी कलाकंद की आपूर्ति की जाती है.

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