नकुल कुमार/पूर्वी चंपारण.जिला मुख्यालय मोतिहारी के रहने वाले मूर्तिकार काशीनाथ कनौजिया पिछले 60 वर्ष से मिट्टी से मूर्ति बना रहे हैं. वर्षों से इनकी कारीगरी के मुरीद लोग आज भी इनसे मूर्ति बनवाने का काम करते हैं. हालांकि अब मूर्ति निर्माण में पहले जैसा क्रेज नहीं रह गया है. काशीनाथ बताते हैं किसालभर में मात्र दो से ढाई लाख की आमदनी हो पाती है. उसमें भी सहायकों के साथ रुपया बांटने के बाद मुश्किल से 50 हजार सालाना बच पाता है. वे बताते हैं किजब से मोबाइल का चलन शुरू हुआ है, लोग पूजा-पाठ पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. आज की युवा पीढ़ी दिन-रात मोबाइल में व्यस्त रहती है. अब वह उमंग नहीं रह गया है.
काशीनाथ के मूर्ति आर्टिस्ट बनने के पीछे भी संघर्ष की एक लंबी कहानी है. वे बताते हैं कि जब से उन्होंने होश संभाला, तब से मूर्ति बना रहे हैं. बचपन में उन्हें बहुत बड़ा मूर्तिकार बनेगा शौक था. इस दौरान वो छोटी-छोटी मूर्ति बनाते थे, लेकिन उनके पिता को यह सब पसंद नहीं था. वे चाहते थे कि बेटा पढ़-लिखकर कुछ बने. इस बीच इनके पिता के मित्र जगत नारायण गुप्ता ने उन्हें अपने बेटा के कला को सम्मान देने एवं इस क्षेत्र में लगाने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद पिता भी मान गए. स्थानीय स्तर पर जो कुछ उन्होंने सीखा, इसके अलावा कोलकाता जाकर भी सीखा.उसके बाद मोतिहारी आकर व्यावसायिक ढंग से मूर्ति बनाने लगे.
काशीनाथ बताते हैं कि मिट्टी की तैयारी से लेकर कपड़ा पहने तक कई चरणों से गुजरने के बाद एक मूर्ति तैयार होती है. मूर्ति की साइज के अनुसार समय व संसाधन खर्च होता है. मीडियम साइज की मूर्ति तैयार करने में एक दिन का समय लगता है, तो वहीं एक ही तरह की कई मूर्तियां सांचा में बनाते हैं.वे बताते हैं कि बसंत के आगमन के साथ सरस्वती माता की मूर्ति निर्माण से सीजन शुरू होता है. उसके बाद चैत्र नवरात्रि में दुर्गा मूर्ति निर्माण, सावन में बजरंगबली, जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण, गणेश चतुर्थी पर गणेश एवं शारदीय नवरात्र में दुर्गा एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्ति की डिमांड रहती है. मूर्ति की कीमत कम से कम 500 से शुरू होती है. वहीं कुछ लोग अधिक कीमत तो कुछ लोग कम कीमत की मूर्ति को खरीदना पसंद करते हैं.
.
FIRST PUBLISHED : September 10, 2023, 13:55 IST