दिलीप चौबे/कैमूर: पहले के दौर में लोग कहते थे कि पढ़ोगे-लिखोगे होगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब, लेकिन अब ऐसा नहीं है और इसकी परिभाषा भी बदल गई है. अब पढ़ोगे-लिखोगे तब भी नवाब बनोगे और खेलोगे-कूदोगे तब भी नवाब हीं रहोगे बाली बात चलन में आ गई है, क्योंकि खिलाड़ियों को अब सरकार नौकरी भी दे रही है और जिला से लेकर राज्य स्तर तक सम्मान भी मिल रहा है.
सरकार विभिन्न खेलों को बढ़ावा दे रही है तो ग्रामीण स्तर पर ऐसे कई लोग हैं जो ग्रास रूट पर खिलाड़ियों को तैयार कर रहे हैं. खिलाड़ियों के पीछे की गई उनकी मेहनत रंग भी ला रहा है. कैमूर जिला के भभुआ प्रखंड अंतर्गत अखलासपुर गांव के रहने वाले 26 वर्षीय सोनू कुमार शर्मा भी खिलाड़ियों की फौज तैयार करने में जुटे हुए हैं. सोनू कुमार शर्मा पिछले पांच वर्षो से खो-खो और कबड्डी और फुटबॉल सहित अन्य खेल के प्रतिभावन खिलाड़ियों को मुफ्त में तराशने का काम कर रहे हैं.
सोनू पांच वर्षो से खिलाड़ियों की फौज कर रहे हैं तैयार
सोनू ने बताया कि पिछले पांच वर्षो से ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभा को निखारने का काम कर रहे हैं. इन खिलाड़िसों में कुछ कर गुजरने की चाहत तो थी, लेकिन सही मागर्दशन नहीं मिल पा रहा था. इसलिए ऐसे खिलाड़ियों को मुफ्त में प्रशिक्षण देकर उनके खेल को निखारने का काम कर रहे हैं. ज्यादातर बच्चे खो-खो, कबड्डी और फुटबॉल खेलने वाले हैं. ये बच्चे कैमूर के रामगढ़ और कुदरा के आलावा पहाड़ी क्षेत्र के अधौरा के रहने वाले हैं.
सोनू ने बताया कि खुद भी गांव में हीं प्रशक्षिण लेकर राज्य के अलावा नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं. इसलिए मालूम है कहां दिक्कतें आती है और इन खिलाड़ियों को भी परेशानी ना हो इसके लिए उन बिंदुओं पर काम करते हैं. यहां के कई खिलाड़ी राज्य से लेकर नेशनल लेवल तक में सेलेक्ट हो चुके हैं. सोनू ने बताया कि खो-खो के गुरु अवधेश हैं. इसके अलावा कबड्डी के गुरू महावीर और फुटबॉल के गुरु गांव के हीं रहने वाले राजकिशोर हैं. तीनों गांव में हीं रहकर खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते हैं.
प्रतिभा के आगे पैसे आर्थिक तंगी नहीं आएगी आढ़े
सोनू कुमार शर्मा ने बताया कि बिहार के पश्चिम चंपारण, पटना, जहानाबाद, मसौड़ी सहित अन्य स्थानों पर राज्यस्तरीय प्रतियोगिता खो-खो के निर्णायक की भूमिका में रहे हैं. अब खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने का काम कर रहे हैं. गांव से प्रशिक्षण लेकर खिलाड़ी जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है. सोनू ने बताया कि सोच यही है कि जो लड़के और लड़कियां गरीब हैं, उनको भी खेल से जोड़ना है. उनके खेल में पैसा बाधा नहीं बने यही कोशिश रहती है. पहाड़ी क्षेत्र के आने वाले इन खिलाड़ियों के अभिभावक पैसे की तंगी से जूझते हैं. इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर नि:शुल्क प्रशिक्षण देने का फैसला लिया था.
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FIRST PUBLISHED : January 14, 2024, 22:34 IST