नीरज कुमार/बेगूसराय. बिहार में खेती-किसानी को पुरुषों के वर्चस्व वाला कामकाज माना जाता रहा है. यही नहीं, बोलचाल और सरकार की ओर से भी अक्सर अन्नदाताओं के लिए सिर्फ ‘किसान भाई’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि बिहार के बेगूसराय जिला की महिलाएं अपनी मेहनत के बदौलत समाज में खेती किसानी की परिभाषा को बदलने का काम कर रही हैं. इन महिलाओं में गंगा किनारे स्थित मटिहानी गांव की रहने वाली कुमकुम देवी भी शामिल हैं. वह दियारा इलाके में खेती में हाथ आजमाकर अपना भविष्य सुरक्षित करने का काम कर रही है. दरसअल वह पिछले 11 वर्षों से कई प्रकार की सब्जियों की खेती करने के कारण चर्चा में हैं.
बेगूसराय जिला मुख्यालय से 12 किमी की दूरी पर मटिहानी प्रखंड स्थित राज मटिहानी पंचायत गंगा किनारे बसी है. यहां दियारा इलाके की रहने वाली 39 वर्षीय कुमकुम देवी ने हरी सब्जी और केला को आमदनी का जरिया बना रखा है. उन्होंने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. पति भी परंपरागत खेती से कुछ खास कमाई नहीं कर पा रहे थे. बच्चों को पढ़ाने के लिए पास में पैसे नहीं होते थे. ऐसे में कुछ पड़ोसी महिलाओं ने राष्ट्रीय बागवानी योजना के जरिए मिलने वाले केला के बीज की जानकारी दी. इसके बाद से केला की एक बीघा में बागवानी करने साथ ही 3 बीघा में बैगन, गोभी, भिंडी, टमाटर, मूली, नींबू , हरी मिर्च, नेनुआ सहित कुल 11 प्रकार की खेती कर रहे हैं.
खेती से बदली आर्थिक स्थिति
कुमकुम देवी ने बताया कि जीविका से 2 लाख लोन लेकर सब्जी और केला की खेती पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं. सब्जी का उत्पादन भी बेहतर होता है. हर सप्ताह बाजार में 10 से 15 हजार तक की सब्जियों की बिक्री कर लेते हैं. वहीं, होने वाली कमाई से कर्ज को भी धीरे-धीरे अदा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह सिर्फ कागजी नींबू ही प्रत्येक महीने 5 हजार तक का बेच लेती हैं, तो लौकी से 4 से 5 हजार की कमाई हो जाती है. खेती से ही परिवार की आर्थिक स्थिति बदली है.
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FIRST PUBLISHED : November 23, 2023, 10:26 IST