सनंदन उपाध्याय/बलिया : लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. इस कविता के किरदार सही मायने में सौरभ श्रीवास्तव हैं, जिन्होंने 17 साल की उम्र में एयरफोर्स में नौकरी ज्वाइन करने के बाद अपनी जिंदगी का एक सफर शुरू किया. 20 साल बाद सेवानिवृत्ति होने पर वह घर के आंगन में जाकर आराम नहीं फरमाए. क्योंकि उन्हें तो एक बड़ी मंजिल का इंतजार था. उन्होंने बतौर अधिवक्ता दिल्ली के हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की और वहीं से उन्होंने जूनियर डिविजन सेवा में जज की कुर्सी पाने में सफलता हासिल की है.
सौरभ की प्रारंभिक शिक्षा नागा जी विद्या मंदिर, माल्देपुर से हुई है. बी. काम और एम. काम पूना विश्वविद्यालय और एलएलबी की पढ़ाई चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से की है. सौरभ पहले एयरफोर्स में कार्यरत थे. 18 साल सेवा देनेके बाद, वहां से रिटायर्ड हुए. पिछले डेढ़ साल से दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर रहे थे. इसके साथ ही पीसीएस (जे) की तैयारी में लगे थे. सौरभ ने सफलता का श्रेय गुरुजनों, परिजनों और अपने दिवंगत पिता को दिया है.
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बेटे के जज बनने पर मां हुई भावुक
सौरभ कुमार श्रीवास्तव की मां सुमन लता श्रीवास्तव ने बताया कि जो एक मां को चाहिए वो हमें मिल गया है. मेरा जीवन सफल हो गया है. मेरा सर गर्व से ऊपर उठ गया है. मैं सारे लड़कों से यह कहना चाहती हूं कि आप मेहनत और लगन से कोई भी कार्य करेंगे तो आप निश्चित सफल होंगे. थोड़ा विलंब जरूर होगा, लेकिन वो अवश्य सफल होंगे.
सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं
सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि मेरा सेलेक्शन हाई कोर्ट में जज के पद पर हुआ हैं. बहुत कठिन परिश्रम से यह मुकाम हासिल हुआ. 17 साल की उम्र में ही हमारी नौकरी एयर फोर्स में लग गई थी. 20 साल एयर फोर्स में सेवा के बाद रिटायर्ड हो गया. उसके बाद मैं डेढ़ साल तक दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस किया. प्रैक्टिस और पढ़ाई साथ साथ चल रही थी. मैं 16 से 18 घंटे तक पढ़ाई किया करता था. मैं शॉर्टकट जैसा कोई रास्ता नहीं अपनाया. ये मेरे बचपना से लेकर आज तक के संघर्ष और मेहनत की देन है. मोबाइल का यूज न के बराबर करता था.
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FIRST PUBLISHED : September 02, 2023, 21:23 IST