शाश्वत सिंह/झांसी: देश की आज़ादी के लिए हुई 1857 की क्रांति का झांसी महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु रहा है. झांसी में वीरता और शौर्य की कई गाथाएं रची गई. वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई ने जब यहां नेतृत्व किया तो उनके साथ जो लोग खड़े थे उन्होंने भी पुरे साहस के साथ अंग्रेजों से युद्ध लड़ा. ऐसे ही तीन लोग थे गुलाम गौस खां, मोतीबाई और खुदा बख्श. यह तीनों रानी के साथ अंतिम सांस तक लड़े.
झांसी और देश के प्रति तीनों की भक्ति को देखते हुए तीनों की कब्र झांसी किले में ही बनाई गई है. झांसी किले के मुख्य द्वार के पास ही तीनों की कब्र बनाई गई है. तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को एक ही मजार में दफन किया गया है. इस मजार को देखने के लिए लोग आज भी दूर-दूर से आते हैं. किले में जो भी पर्यटक आते हैं उनकी यात्रा इस मजार को देखे बिना अधूरी ही रहती है.
दुल्हा जू ने की थी गद्दारी
इतिहासकार सुरेश दुबे ने बताया कि गुलाम गौस खां झांसी किले की कड़क बिजली तोप चलाया करते थे. उन्होंने अंतिम समय तक अंग्रेजों को किले में नहीं घुसने दिया. दुल्हा जू की गद्दारी की वजह से वह अंग्रेज किले में घुस पाए. रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए गुलाम गौस, खुदा बख्श और मोती बाई ने 1858 में अपने प्राणों की आहुति दे दी. इनके सम्मान में ही उनकी कब्र यहां बनाई गई है.
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FIRST PUBLISHED : January 8, 2024, 20:09 IST