अभिनव कुमार/दरभंगा : लोक आस्था का महापर्व छठ का खास महत्व है. इस बार इसकी शुरूआत 17 से हो जाएगी और इसका समापन 20 को होगा. सभी जानते हैं किइस पर्व मेंउगते सूर्य और डूबते सूर्य को अर्घ्यदिया जाता है. इसे सूर्य की उपासना भी कहते हैं. तो आइए जानते हैं कि इस पर्व के क्या नियम होते हैं.किस प्रकार से महिलाएं या पुरुष इस पर्व को करती हैं. इस पर विशेष जानकारी देते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ कुणाल कुमार झा बताते हैं कि 36 घंटा का निर्जला व्रत होता है. इस बार 17 से इसकी शुरुआत होगी.
17 नवंबर से होना है शुद्ध
डॉ.कुणाल कहते हैं किखरना से एक दिन पूर्व अर्थात इस बार 17 नवंबर को शुद्ध होना है. अर्थात स्नान पवित्रता पूर्वक करके अरवा अन्न का खाना खाना है.सांसारिक जितने भी क्रियाकलाप हैं, उसे परहेज करना है.अध्यात्म की ओर ध्यान करना है. 18 नवंबर को खरना है. पूरे दिन व्रत में महिलाएं या पुुरुषरहेंगे, फिर रात में भोग लगता है, जिसे खरना कहते हैं.
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उसी दिन रात में प्रसाद का वितरण परिवार में भी किया जाता है. जो व्रतिहोती हैं, वो भी रात में इस प्रसाद को ग्रहण करके व्रत को धारण करती हैं. 19 नवंबर को महिलाएं व्रत में रहेगी और व्रत में रहकर विभिन्न तरह के पकवान, प्रसाद को बनाएंगी. फिर शाम का अर्घ्य सभी देंगे. अगले सुबह 20तारीख को अरुणोदय काल में ही सप्तमी का अर्घ्य दान दिया जाएगा. यानी पूर्ण सूयोदय का इंतजार नहीं करना होगा. इसे हमलोग भोरकी अर्घ्य भी कहते हैं.
पूर्ण सूर्योदय का नहीं दिया जाएगा अर्घ्य
डॉ.कुणाल आगे बतलाते हैं कि इस बार भोर की अर्घ्य पूर्ण सूर्योदय का नहीं दिया जाएगा. इस दिन अरुणोदय का अर्घ्य दिया जाएगा.इस बार सप्तमी का मन 54 दंड 24 पल है इसलिए अरुणोदय काल में ही जब सूर्य आंशिक रूप से दिखाई देंगे उस समय में सप्तमी का अर्ध दान किया जाएगा. सूर्योदय के बाद अष्टमी तिथि को पारण किया जाएगा.
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FIRST PUBLISHED : November 10, 2023, 09:56 IST