1500 कमाने वाला मजदूर… दो साल में बन गया मालिक, अब खुद के हैं दो कारखाने

आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण: जहां चाह वहां राह. चंपारण के एक युवक की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. इस युवा ने जीवन के 15 वर्ष घर से दूर दूसरे राज्य में एक मजदूर की तरह बिताया. आज वही युवा दो कारखानों का मालिक है. कभी रोजगार के लिए दर-दर भटकने वाला इंसान, आज दूसरों को रोजगार दे रहा है.

दरअसल, यह कहानी पश्चिम चंपारण जिले के बैरिया ब्लॉक के मझरिया गांव निवासी 33 वर्षीय युवक की है, जिसने हाल ही में मजदूर से मालिक बनने तक का सफर तय किया है. इस युवा की सफलता गांव के अन्य युवाओं के लिए प्रेरणादायक हो गई है. अब सभी इस युवा की तरह बनना चाहते हैं.

15 वर्षों तक की हरियाणा में मजदूरी
मझरिया गांव निवासी मनोज कुमार पाल पेशे से बढ़ई हैं. वह किसी भी तरह का फर्नीचर बनाने में माहिर हैं. खास बात यह है कि सिर्फ मनोज ही नहीं, बल्कि इनकी पुश्तें यह काम करती आ रही हैं. घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से मनोज महज 15 वर्ष की उम्र में ही कमाने के लिए हरियाणा के गुड़गांव चले गए, जहां उन्हें 1500 रुपए मजदूरी मिलती थी. 10 वर्षों तक काम करने के बाद उनकी तनख्वाह बढ़कर 9500 रुपये प्रति माह तक पहुंची. बकौल मनोज उस समय घर चलाने वाले वह इकलौते शख्स थे. ऐसे में दूसरे राज्य में रहकर महज 9500 रुपये प्रति महीने की कमाई कहीं से भी सार्थक नहीं थी. सब काट-छांट कर वह 3000 रुपये ही घर भेज पाते थे. ऐसे में उन्हें ओवरटाइम करना पड़ता था.

आज हैं दो कारखानों के मालिक
मनोज के अनुसार, 15 वर्षों तक किसी तरह जिंदगी काटने के बाद एक दिन ऐसा आया, जब सबकुछ बदल गया. दरअसल, मनोज को उनके भाई ने सरकार की योजना पीएमईजीपी के बारे में बताया. काम करने में माहिर मनोज ने इस योजना को बड़ी ही गंभीरता से लिया. ऐसे में वह काम छोड़कर अपने घर बैरिया आ गए. किसी तरह से योजना के लाभार्थियों में शामिल होने के बाद उन्हें 9.5 लाख का लोन मिला. मनोज ने करीब 5 लाख रुपये की मशीन खरीदी और अपनी ही जमीन पर कुछ पैसों से क्लस्टर लगाकर काम शुरू कर दिया.

20-25 लोगों को रोजगार
बताया कि लाभ मिलने के 2 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद तीसरे वर्ष से उनकी स्थिति सुधरने लगी. आज स्थित यह है कि उनका काम बड़े पैमाने पर फैल चुका है. वह दो कारखानों के मालिक हैं, जहां 20 से 25 कारीगर काम करते हैं. बकौल मनोज आज मजदूरों को वेतन देने और सारे खर्च ने बाद भी उनके पास हर वर्ष 2 से 3 लाख रुपये लाभ के रूप में बच जाते हैं.

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