Kings of India: भारत के राजा-महाराजा अकूत संपत्ति के मालिक हुआ करते थे. एक से बढ़कर एक शानदार महल में रहले वाले रजवाड़ों का अपनी रियासत के जंगलों पर भी पूरा अधिकार होता और धड़ल्ले से शिकार किया करते थे. मेहमानों को भी शिकार खिलाने ले जाया करते थे. चर्चित इतिहासकार डोमिनीक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी ‘किताब फ्रीडम एट मिडनाइट’ में राजा-महाराजाओं के शगल पर विस्तार से लिखा है.
लापियर और कॉलिन्स (Collins and Lapierre) लिखते हैं कि आजादी के वक्त यानी 1947 में भारत में शेरों की संख्या 20,000 से ज्यादा थी. ज्यादा तो राजा-महाराजाओं की बंदूक का निशाना बनने के लिए होते थे. भरतपुर के महाराजा नामी शिकारी थे. उन्होंने 8 वर्ष की उम्र में पहला शेर मारा था. 35 वर्ष के होने तक उन्होंने इतने शेर का शिकार किया कि उनकी खाल को मिलाकर उनके महल के सारे कमरों और दीवार पर उसे बिछा दिया गया.
3 घंटे में 4,482 चिड़ियों का शिकार
भरतपुर के महाराजा अपने मेहमानों को शिकार पर ले जाते थे. उन्होंने शिकार के लिए बाकायदा एक रोल्स रॉयस बनवाई थी, जिसकी छत चांदी की थी और यह उबड़-खाबड़ रास्तों और जंगलों में भी दनदनाती हुई चला करती थी. महाराजा भरतपुर की रियासत में एक बार में इतनी मुर्गाबियां मारी गईं, जितनी दुनिया में पहले कभी हलाल नहीं हुई थीं. वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग के सम्मान में महाराजा ने शिकार का आयोजन किया. इसमें तीन घंटे के अंदर 4,482 चिड़ियां मारी गयी थीं.

ग्वालियर के महाराजा और वायसराय शिकार पर. यह साल 1914 की फोटो है.
भरतपुर के महाराजा ने प्रिंस ऑफ वेल्स और उनके नौजवान एडीसी माउंटबेटन को भी काले चीतल के शिकार पर बुलाया था. बाद में लॉर्ड माउंटबेटन, वायसराय बनकर भारत आए.
किसने मारे सबसे ज्यादा शेर?
ग्वालियर के महाराजा को भी शिकार का शौक था. वह खासकर शेर का शिकार किया करते थे. लापियर और कॉलिन्स के मुताबिक महाराजा ने अपने जीवनकालमें 1,400 से अधिक शेर मारे थे और उन्होंने गिने-चुने लोगों के लिए शेर के शिकार के गुर बताते हुए एक पुस्तक भी लिख डाली थी. महाराजा माधो राव सिंधिया ने साल 1914 में लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग को भी शिकार पर आमंत्रित किया था.
आखिरी चीतों का शिकार
छत्तीसगढ़ की कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह भी बहुत मशहूर शिकारी हुआ करते थे. उन्होंने सैकड़ों शेर, चीता से लेकर जंगली सूअर तक मारे थे. साल 1947 यानी जिस साल भारत आजाद हुआ, उस साल उन्होंने एक साथ तीन चीतों का शिकार किया था. कहा जाता है कि यह तीनों चीते भारत के आखिरी थे और इसके बाद विलुप्त हो गए.

कोरिया (छत्तीसगढ़) रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप देव 3 चीतों के साथ, जिसका उन्होंने शिकार किया था. (फोटो- Wikimedia)
20 कमरों में रखे थे जानवर
मैसूर के महाराजा (King Of Mysore) तो सबसे आगे थे. शिकार के मामले में उनका पूरी दुनिया में नाम था. महाराजा मैसूर का 600 कमरों का महल वायसराय-भवन से भी बड़ा था. उस घर के 20 कमरों में तो केवल वे शेर, चीते, हाथी, और जंगली भैंसे रखे हुए. इन जंगली जानवरों का शिकार महाराजा की पिछली तीन पीढ़ियों ने किया था.
दिव्यभानु सिंह (Divyabhanusinh ) अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ इंडियाज चीताज’ में लिखते हैं कि भारत में चीतों के खत्म होने के पीछे उनका शिकार सबसे प्रमुख वजह रही है. भारत के देशी रियासतों के राजे-रजवाड़ों ने तो उनका शिकार किया ही. मुगलों और अंग्रेजों ने भी खूब शिकार किया. उस वक्त तक जंगली जानवरों का शिकार गैरकानूनी नहीं हुआ करता था.
ब्रिटेन के राजा ने 10 दिन किया शिकार
साल 1911 में जब ब्रिटेन के महाराजा किंग जॉर्ज पंचम दिल्ली आए तो 10 दिन शिकार पर गए. उन्होंने 39 टाइगर, 18 गैंडा, दर्जनों जंगली भालू और तमाम जानवरों का शिकार किया. Past India की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1900 में भारत में एक लाख के आसपास टाइगर हुआ करते थे, लेकिन बेतहाशा शिकार की वजह से इनकी संख्या कम होती गई और बाद में इतनी तेजी से घटी कि अब भारत में 2500 के आसपास टाइगर बचे हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 13, 2024, 12:02 IST