14 महीने का इंतजार और फिर ‘वार’ : वीरभद्र सिंह के परिवार ने हिमाचल में कांग्रेस के लिए खोला मोर्चा

हिमाचल के सीएम की रेस में वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को सबसे आगे देखा जा रहा था. लेकिन पार्टी आलाकमान ने आखिरकार सुखविंदर सिंह सुक्खू का नाम फाइनल किया. तब प्रतिभा सिंह और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह (Vikramaditya Singh)ने हार का घूंट पी लिया. लेकिन चिंगारी लग चुकी थी. अब 14 महीने बाद हिमाचल में सुक्खू सरकार जब खतरे में आई, तो विक्रमादित्य ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने सीएम सुक्खू पर अपने परिवार को अपमानित किए जाने का आरोप लगाया है.

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शाही दिग्गज

बुशहर (Bushahr)के शाही परिवार के सदस्य वीरभद्र सिंह को प्यार से ‘राजा साहब’ कहा जाता था. वह शिमला के प्रतिष्ठित बिशप कॉटन स्कूल और दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र रह चुके हैं. 1962 में वह पहली बार लोकसभा सांसद बने. चार बार संसद के निचले सदन के लिए चुने गए. केंद्रीय मंत्री के रूप में दो कार्यकाल के बाद वीरभद्र सिंह 1983 में पहली बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने. अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान वह 6 बार सीएम बने. 2017 में बीजेपी ने हिमाचल का चुनाव जीता और जयराम ठाकुर सीएम बने, तो वीरभद्र सिंह को कुर्सी गंवानी पड़ी.

राजनीतिक परिदृश्य पर वीरभद्र सिंह के आखिरी साल कांग्रेस प्रमुख के रूप में सुक्खू के कार्यकाल के साथ मेल खाते थे. दोनों के बीच कोई तालमेल नहीं थी. एक समय पर तो वीरभद्र सिंह ने सुक्खू के साथ स्टेज शेयर करने से भी इनकार कर दिया था.

जमीन से जुड़े नेता

सुखविंदर सिंह सुक्खू का राजनीतिक उत्थान वीरभद्र सिंह के बिल्कुल विपरीत था. एक साधारण परिवार से आने के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस की छात्र शाखा NSUI के कार्यकर्ता के रूप में की. 2003 में पहली बार हिमाचल विधानसभा के लिए चुने जाने से पहले उन्होंने शिमला नगर निगम में पार्षद के रूप में काम किया. उन्होंने 2019 में राज्य कांग्रेस प्रमुख का पद संभाला, जिससे वीरभद्र के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता के लिए मंच तैयार हुआ.

संतुलित कदम

2022 के हिमाचल चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम पद के लिए आलाकमान की पसंद के तौर पर देखा जा रहा था. लेकिन चर्चा प्रतिभा सिंह की हो रही थी. लेकिन सुक्खू के नाम पर मुहर लगाने से पहले कांग्रेस को अंदरूनी कलह को दूर करना था. कांग्रेस ने इसका रास्ता भी निकाल लिया. सुक्खू के सीएम पद दिया गया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद प्रतिभा सिंह के पास रहा. उनके बेटे विक्रमादित्य को मंत्री पद दिया गया. बड़ी घोषणा के बाद प्रतिभा सिंह ने कहा, ”कांग्रेस आलाकमान ने जो फैसला लिया है, हम उसे स्वीकार करते हैं.” 

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सही समय पर किया वार

वीरभद्र सिंह का परिवार सही वक्त का इंतजार कर रहा था. राज्यसभा की एक सीट के लिए कांग्रेस संघर्ष कर रही थी. 6 विधायकों की क्रॉस वोटिंग के बाद एक समय पर सुक्खू सरकार खतरे में आ गई. दूसरी ओर राजपरिवार ने एक और मोर्चा खोल दिया. विक्रमादित्य सिंह ने बुधवार सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया. उन्होंने सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनकी सरकार पर अपने 14 महीने के शासनकाल में वीरभद्र सिंह का अपमान करने का आरोप लगाया.

विक्रमादित्य सिंह ने सुक्खू सरकार में विधायकों की आवाज को नजरअंदाज किए जाने का आरोप लगाया है. इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा कि अब गेंद कांग्रेस नेतृत्व के पाले में है. 

जयराम रमेश बोले- संगठन में व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं

इस पूरे मामले पर कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा, “नेतृत्व कठिन फैसलों से पीछे नहीं हटेगा. संगठन में व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि यह जनादेश महत्वपूर्ण है, जिसका हमें सम्मान करना है. सभी विकल्प खुले हैं और पार्टी सर्वोच्च है. हम जल्द ही फैसला लेंगे.”

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