11 की उम्र में गई दोनों आंख की रोशनी, मां की हुई मौत तो गए डिप्रेशन में…आज ये हैं शख्स बैंक का मैनेजर

कुंदन कुमार/गया.जब कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो कोई कमोजरी आपकी मजबूती बन जाती है. इसके बाद आप कोई मुकाम आसानी से हासिल करते हैं.इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं गया के मानपुर के रहने वाले रविकांत. रविकांत की 11 वर्ष की उम्र में चेचक के कारण दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी. बावजूद इन्होंने हार नहीं मानी.अभी वह गया में हीं यूनियन बैंक में मैनेजर के तौर पर काम कर रहे हैं.

आंखों की रोशनी जाने के बाद रविकांत पटना में जाकर ब्रेल लिपि की पढ़ाई सिखी. फिर नवादा से मैट्रिक की पढाई पूरी करने के बाद दिल्ली चले गये. जहां से वह इंटरमीडिएट किये.डीयू से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2013 में रेलवे में नौकरी लग गई.उसके बाद 2016 में बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के तौर पर ज्वाइन किया.

आंखों की गई रोशनी तो छोड़ी पढ़ाई, फिर की नई शुरूआत
गया के मानपुर के छोटे से मुहल्ले से निकलकर रविकांत कई कठिनाइयों का सामना करते हुए आज बैंक में मैनेजर के तौर पर काम कर रहे हैं. 11 वर्ष की उम्र में जब वे पांचवी कक्षा में थे, तो आंखों की रोशनी जाने के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी. लेकिन गांव के हीं एक युवक ने इन्हें ब्रेल लिपि से पढ़ाई करने की सलाह दी. इसके बाद इन्होंने पटना से ब्रेल लिपीसीखी, लेकिन वहां मन नहीं लगा.पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापस अपने घर आए.बिहार बोर्ड से इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. रविकांत के पिता एक किसान हैं.उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई में खूब सहयोग किया. बचपन से पढाई में अच्छे होने के कारण इन्हें अच्छी तालीम मिली.इसके लिए इनके पिता इन्हें दिल्ली भेजा और वहीं से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी पाई.

मां की मौत के बाद चले गए थे डिप्रेशन में
गया शहर के टावर चौक के पास यूनियन बैंक में रविकांत मैनेजर के पद पर पद स्थापित है. आंखों से पूरी तरह दिखाई नहीं देने के बावजूद भी अपने कामों को बखूबी निभाते हैं. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके रविकांत अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं. इन्होंने कम्प्यूटर में एक साफ्टवेयर इंस्टाल कर रखा है, जिससे इनका काम आसानी से हो जाता है. रविकांत बताते हैं कि आंखो की रौशनी जाने के बाद इनकीमां ने इन्हें खुब सहयोग किया.वह खुद कष्ट में रहकर हमें पढने के लिए प्रेरित किया. बीए करने के दौरान उनकी निधन हो गई जिस कारण डिप्रेशन में चले गये.

पूर्व मुख्यमंत्री ने दिया था अवॉर्ड
कुछ ही महीने बाद रेलवे में नौकरी लगी.लखनउ में करीब 3 साल तक काम किया. फिर बैंक में असिस्टेंट मैनेजर पर नौकरी लगी. अभी मैनेजर के पद पर काबिज हैं. इन्होंने बताया इनके पढाई में काफी परेशानी हुई. नार्मल लोगों को आसानी से किताब मिल जाती थी, लेकिन हमें पहले किसी से रिकॉर्डकरवाते थे. उसके बाद रीडर से बुक पढ़वाकर अपनी पढाई पूरी की. पढ़ाई के दौरान इन्होंने कई उपलब्धि भी हासिल की.इंटरमीडिएट में अपने जोन में टाप करने पर इन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे शिला दीक्षित के द्वारा इन्हें इंदिरा गांधी अवार्ड दिया गया.

साथ ही एनएसएस से जुड़ेहोने के कारण दिल्ली यूनिवर्सिटी से भी कई बार सम्मानित किया गया.इन्होंने अन्य दिव्यांग जनों को सलाह देते हुए कहा है कि अपने दिव्यांगता को देखकर घबराएं नहीं.लगातार मेहनत करने से सफलता एक न एक दिन जरूर मिलती है. आज के दौर में कई टेक्नोलॉजी हम लोगों के लिए विकसित किया गया है, जिससे आसानी से पढ़ाई की जा सकती है.

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