10 साल के शाश्वत का तबला धुन सुन हो जाएंगे मंत्रमुग्ध, देखें Video

कुंदन कुमार/गया:- एक कहावत काफी प्रसिद्ध है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात, यानि होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं. इसी कहावत को बोधगया कोल्हौरा के रहने वाले 10 साल के शाश्वत चरितार्थ कर रहे हैं . शाश्वत जब 2 साल के थे, तो उन्होंने तबला पर हाथ रखना शुरू कर दिया था. 4 साल की उम्र में उन्होंने तबला बजाना शुरू किया. आज बिहार और झारखंड में कई कार्यक्रम में वो तबला बजाते हैं. विश्व विख्यात बौद्ध महोत्सव में भी तबला बजाने का अवसर शाश्वत को मिल चुका है. उन्होंने बौद्ध महोत्सव में अकेले ही तबला वादन कर लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया था.

विरासत में मिली है तबला बजाने की शिक्षा
शाश्वत को तबला बजाने की शिक्षा विरासत में मिली है. उनके पिता, दादा तथा परदादा भी तबला बजाते थे. नन्हें तबला वादक शाश्वत की उंगलियां तबले पर ऐसे नाचती हैं, जैसे वो तबले के कोई जादूगर हो. तबले पर इनकी जब उंगलियां थिरकती हैं, तो लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं. छोटी उम्र मे ही वो तबला वादन की विद्या में पूरी तरह से पारंगत हो चुके हैं. 10 साल के हो चुके शाश्वत संगीत क्षेत्र में पहचान बनाने में जुट चुके हैं. वह अपने पूर्वजों के तबला वादन परंपरा को आगे बढ़ने का काम कर रहे हैं. परदादा स्व. गोखुल जी, दादा स्व वासुदेव जी भी एक कुशल तबला वादक हुए और उनकी तबला वादन परंपरा को जीवित रखने के लिए 10 साल के शाश्वत कुशलता से तबला वादन की शिक्षा ले रहे हैं.

इनसे सिखा तबला वादन का गुण
लगभग दो-ढ़ाई साल की उम्र में ही तबला की शिक्षा के प्रति उनका लगाव देखकर प्रसिद्ध संगीताचार्य गुरु स्व. कामेश्वर पाठक ने शाश्वत पर हाथ रखा था. शाश्वत के प्रथम गुरु कामेश्वर पाठक रहे. वहीं सुप्रसिद्ध पखावज वादक पंडित आशुतोष उपाध्याय, पिता राजेश कुमार, दादा वासुदेव जी, पंडित राम गोपाल, पंडित दिनेश कुमार, पंडित सतीश शर्मा व अन्य गुरुओं से शाश्वत को तबला वादन और संगीत की शिक्षा मिली है. वर्तमान समय में भी सुप्रसिद्ध अंतराष्ट्रीय तबला वादक उस्ताद सलीम अल्लाह भोपाल से और उस्ताद शादाब शाकोरी मुंबई से उन्हें तबला वादन की शिक्षा दे रहे हैं.

बनना चाहते हैं IAS
शाश्वत बताते हैं कि उन्हें बौद्ध महोत्सव में अपना जौहर दिखाने का मौका मिल चुका है. अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव के मंच पर उन्हें 5 साल की उम्र में तबला सोलो बजाने का अवसर मिला. वो बिहार सरकार बाल भवन किलकारी, जगन्नाथ महोत्सव, बोधगया, बैजनाथ धाम, बासुकीनाथ धाम, झारखंड के मंच पर तबला सोलो और सुप्रसिद्ध गायक पंडित सतीश शर्मा के साथ संगत में तबला बजा चुके हैं. अब वह तबला की कला से समाज सेवा करना चाहते हैं. हालांकि उनकी इच्छा IAS बनने की भी है. शाश्वत का कहना है कि तबला वादन के साथ-साथ वो पढ़ाई पर भी ध्यान लगा रहे हैं.

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