हाइलाइट्स
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का बुधवार को 100 वर्ष की आयु में निधन.
नोबेल पुरस्कार विजेता किसिंजर एक वक्त बड़ी राजनयिक ताकत थे.
उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति पर एक अमिट छाप छोड़ी.
वाशिंगटन. अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) का बुधवार को 100 वर्ष की आयु में कनेक्टिकट में उनके घर पर निधन हो गया. एक विवादास्पद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हेनरी किसिंजर अपने वक्त में राजनयिक तौर पर एक बड़ी ताकत माने जाते थे. दो राष्ट्रपतियों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति (US Foreign Policy) पर एक अमिट छाप छोड़ी. किसिंजर उम्र के इस पड़ाव पर भी सक्रिय थे. वह लगातार व्हाइट हाउस में बैठकों में हिस्सा लेते रहे. उन्होंने नेतृत्व की शैलियों पर एक पुस्तक प्रकाशित की और उत्तर कोरिया से पैदा परमाणु खतरे के बारे में सीनेट समिति के समक्ष गवाही दी. जुलाई 2023 में उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने के लिए अचानक बीजिंग का दौरा किया.
1970 के दशक में रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के अधीन विदेश मंत्री के रूप में काम करते हुए हेनरी किसिंजर ने उस दशक की कई युग बदलने वाली वैश्विक घटनाओं को तय करने में अपना योगदान दिया था. जर्मन में जन्मे यहूदी शरणार्थी किसिंजर की कोशिशों से अमेरिका की चीन के साथ कूटनीतिक संपर्कों की शुरुआत हुई. ऐतिहासिक अमेरिकी-सोवियत हथियार नियंत्रण वार्ता हुई, इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच संबंधों का विस्तार हुआ और उत्तरी वियतनाम के साथ पेरिस शांति समझौते हुए. अमेरिकी विदेश नीति के प्रमुख वास्तुकार के रूप में किसिंजर का असर 1974 में निक्सन के इस्तीफे के साथ कम हो गया.
हेनरी किसिंजर फिर भी राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड के अधीन एक राजनयिक ताकत बने रहे और अपने पूरे जीवन भर अमेरिका की विदेश नीति के बारे में मजबूत राय पेश करते रहे. दुनिया में कई लोगों ने किसिंजर की प्रतिभा और व्यापक अनुभव के लिए सराहना की है, जबकि दूसरों ने उन्हें विशेष रूप से लैटिन अमेरिका में कम्युनिस्ट विरोधी तानाशाही के समर्थन के लिए युद्ध अपराधी करार दिया. उनके बाद के वर्षों में उनकी यात्राएं अन्य देशों द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने या पिछली अमेरिकी विदेश नीति के बारे में पूछताछ करने के प्रयासों से सीमित थीं.
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उनको 1973 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. यह पुरस्कार उत्तरी वियतनाम के ले डक थो के साथ उनको संयुक्त रूप से दिया गया था, जिन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था. इसे अब तक के सबसे विवादास्पद नोबेल शांति पुरस्कारों में से एक माना जाता था. नोबेल समिति के दो सदस्यों ने इस चयन पर इस्तीफा दे दिया था और कंबोडिया पर अमेरिकी गुप्त बमबारी के बारे में सवाल उठाए गए थे.
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FIRST PUBLISHED : November 30, 2023, 08:17 IST