तेल अवीव2 घंटे पहले
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हूती विद्रोहियों को ईरान से हथियार और समर्थन मिलता रहा है। हालांकि, ईरान सरकार इससे इनकार करती है। (फाइल)
इजराइल और हमास के बीच जंग जारी है। इस बीच, यमन के हूती विद्रोही इजराइल और अमेरिका के कार्गो शिप को निशाना बना रहे हैं। अब इजराइल ने इस मसले पर सख्त रुख अपना लिया है। इजराइल ने कहा है कि अगर हूती विद्रोहियों पर लगाम कसने में दुनिया उसका साथ नहीं देगी तो वो अकेला ही इस आतंकी संगठन से निपटेगा।
दूसरी तरफ, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और यूरोप के नेताओं से बातचीत की है। माना जा रहा है कि इस दौरान ईरान के समर्थन वाले हूती विद्रोहियों पर कार्रवाई के मामले में भी लंबी बातचीत हुई है।
मर्चेंट शिप निशाने पर
- इजराइल के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जाची हेनेबी ने एक इंटरव्यू में हूती विद्रोहियों को लेकर पहली बार कड़े तेवर दिखाए। कहा- उम्मीद करते हैं कि दुनिया इस मामले में इजराइल का साथ देगी। अगर ये नहीं हुआ तो हम अकेले भी इस मसले से निपटने की ताकत रखते हैं। हमारे मर्चेंट शिप को निशाना बनाया जा रहा है।
- नेतन्याहू ने भी इस मामले तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बाइडेन और यूरोपीय नेताओं को बताया है कि हूती विद्रोही ईरान की शह पर उन जहाजों को निशाना बना रहे हैं, जिनका कहीं न कहीं इजराइल से ताल्लुक होता है। इजराइल ने दो महीने पहले भी इस मामले पर कहा था कि हूती विद्रोहियों का खतरा सिर्फ उसे नहीं है, बल्कि कई देश इसकी चपेट में आएंगे।
- इन दिनों हूती के हमलों में तेजी देखी गई है। दरअसल, हूती को लगता है कि इजराइल इस वक्त हमास और हिजबुल्लाह से दो फ्रंट पर जंग लड़ रहा है और इस वक्त उसे दबाव में लाया जा सकता है। यही वजह है कि उसने इजराइली कनेक्शन वाले तीन जहाजों को हालिया दिनों में निशाना बनाया।
हूती विद्रोहियों ने पिछले दिनों एक जहाज पर कब्जा कर लिया था। यह फोटो उसी दौरान जारी हुए वीडियो से लिया गया था।
अमेरिका भी तैयार
- अमेरिकी जहाजों को भी हूती विद्रोहियों से खतरा है। यही वजह है कि उसने लाल सागर में निगरानी के लिए वॉरशिप और ड्रोन तैनात कर दिए हैं। इनके जरिए हूती विद्रोहियों पर नजर रखी जा रही है।
- इस मामले में खास बात यह है कि अमेरिका ने अब तक हूती के खिलाफ कोई मिलिट्री एक्शन नहीं लिया है। ये सभी यमन से ऑपरेट करते हैं और एक वक्त सऊदी अरब के लिए सबसे बड़ा खतरा थे।
- माना जा रहा है कि अमेरिका ने अपने जहाजों को मिलिट्री एस्कॉर्ट देने का फैसला किया है। ये एस्कॉर्ट लाल सागर से अदन की खाड़ी तक हो सकता है। यही वो इलाका है, जहां हूती विद्रोहियों का खतरा सबसे ज्यादा है।
2014 में कैसे शुरु हुई थी यमन की जंग?
- साल 2014 में यमन में गृह युद्ध की शुरुआत हुई। इसकी जड़ शिया और सुन्नी विवाद में है। दरअसल यमन की कुल आबादी में 35% की हिस्सेदारी शिया समुदाय की है जबकि 65% सुन्नी समुदाय के लोग रहते हैं। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद रहा था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत हुई तो गृह युद्ध में बदल गया। 2014 आते-आते शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
- इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। देश बदलाव के दौर से गुजर रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
- अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का। देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
अरब वर्ल्ड में चीन की दखलंदाजी
- यमन में 9 सालों से चल रही जंग को जारी रखने में सऊदी अरब और ईरान दो महत्वपूर्ण ताकतें हैं। यमन की सरकार को जहां सऊदी का समर्थन है वहीं हूती विद्रोहियों को ईरान का। ऐसे में अगर ईरान और सऊदी के बीच बातचीत होती है और उनके रिश्ते सुधरते हैं तो यकीनन इसका असर यमन की जंग पर पड़ना तय माना जा रहा था।
- 11 मार्च को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। जो चीन ने करवाया। 2016 के बाद दोनों ने एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। इससे दोनों देशों के बीच सात साल से जारी टकराव कम हुआ। दरअसल, सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।
- इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया।
- इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। जिसे चीन ने पूरा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।