हिंदू-सिख भाईचारे की पहचान है यह गुरुद्वारा, यहां देवताओं की भी होती है पूजा

ज्योति रानी, पलवल. पलवल में एक ऐसा अनोखा गुरुद्वारा है, जहां गुरु ग्रंथ साहब के साथ ही मंदिर भी बना हुआ है. इसमें माता वैष्णो देवी, भगवान शिव व भगवान श्री कृष्ण राधा जी के साथ-साथ हिंदू धर्म के सभी देवी देवता विराजमान है. इस गुरुद्वारे में हिंदू और सिखों के सभी उत्सव मिलजुल कर मनाए जाते हैं. गुरु नानक जयंती हो या जन्माष्टमी सभी पर्व यही संदेश देते नजर आते हैं कि हिंदू-सिख दो जिस्म एक जान है.

जवाहर नगर कैंप का रुझानी गुरुद्वारा हिंदुओं- सिखों की मिली जुली धार्मिक व संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है .इस गुरुद्वारे में पिछले लगभग 60 वर्षों से रोजाना दोनों समय गरीबों के लिए लंगर चलता है और करीब 200 ऐसे गरीब परिवार हैं जिन्हें रोजाना इस गुरुद्वारे से खाना मिलता है. इतना ही नहीं समय समय पर गुरुद्वारे में स्वास्थ्य शिविर और मानव सेवा के कार्य होते हैं.

गुरुद्वारे में मन्दिर बनाने की क्या है कहानी
रुझानी गुरुद्वारे में मंदिर की स्थापना के पीछे एक कहानी है. गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान सुभाष गांधी बताते हैं कि सन 1984 के दंगों से पहले यह सिर्फ गुरुद्वारा ही था. 84 के दंगों में कुछ लोग रुझानी गुरुद्वारा को नुकसान पहुंचाने आ रहे थे. यह खबर जैसे ही गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को लगी तभी उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब के पास भगवान श्री कृष्ण व माता वैष्णो की प्रतिमाएं लगा दी ताकि गुरुद्वारा को कोई नुकसान ना पहुंच सके. जो सोचा था वैसा ही हुआ दंगाइयों की भीड़ जब गुरुद्वारा में पहुंची तो वहां हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाओं को देखकर दंगाई वापस लौट गए.

दंगे समाप्त होने के बाद गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने उन प्रतिमाओं को आज तक नहीं हटाया और रुझानी गुरुद्वारा देश का पहला ऐसा गुरुद्वारा बन गया जहां हिंदुओं को सिखों से कभी अलग नहीं समझ गया. बल्कि इस गुरुद्वारे में ऐसा प्रतीत होता है जैसे हिंदू-सिख दो जिस्म एक जान हो. सुबह शाम दोनों समय गुरुद्वारा में जहां जप जी वह सुखमणि साहब का पाठ नियमित रूप से होता है. वही पुजारी द्वारा रोजाना आरती व प्रार्थना की जाती है.

हर दिन लगता है लंगर
बाबा बलराम दास नामक संत ने इस स्थान पर एक कुटिया बनाकर भूखे प्यासे लोगों को राहत दी थी. उसे समय कुछ लोगों ने बाबा जी के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए चंदा भी दिया था. जिसे बाबा जी ने लोगों के लिए लंगर तैयार किया और भूखे प्यासे लोगों की मदद की धीरे-धीरे यह कुटिया मंदिर वह गुरुद्वारा बन गया और आज भी यहां बाबा बलराम दास के नाम पर वार्षिक उत्सव मनाया जाता है. सुभाष गांधी बताते हैं कि आज भी दानी लोग यहां गरीबों के लिए लंगर की व्यवस्था करते हैं तथा गरीबों को खाना खिलाने के लिए बुकिंग करवाते हैं.

आलम यह है कि गुरुद्वारा में 2027 तक लोगों ने अपना लंगर अभी से बुक कराया हुआ है. करीब तीन सौ परिवार ऐसे हैं. जिनके पास दो वक्त का खाना तक नहीं है. ऐसे परिवारों के कार्ड बनाए हुए हैं तथा वे दोनों समय खाना यहीं से लेकर जाते हैं.

हम लोग गुरुद्वारा की आमदनी से गरीबों के लिए स्वास्थ्य है कैंप व मुफ्त दवाइयां देने के साथ ऐसे कैंप भी लगवाते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा मानव सेवा की जा सके. हमारा मकसद बस इतना ही है कि हिंदू व सिखों के बीच भाईचारा बना रहे और गुरुद्वारा के द्वारा से कोई भी मनुष्य भूख न जाए.

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