हाथियों की कब्रगाह बना छत्तीसगढ़, जानें 23 सालों में कितनी हुई मौतें?

रायपुर. हाथियों को जंगल का इंजीनियर कहा जाता है. छत्तीसगढ़ के समृद्ध वन हाथियों के लिए बेहतर तो हैं मगर सुरक्षित नहीं. प्रदेश के 12 से अधिक जिले हाथी प्रभावित हैं. मौत के साथ-साथ हाथी मानव द्वंद्व भी किसी से छिपी नहीं है. वन्य जीवों को बचाने के लिए वन विभाग करोड़ो रुपये खर्च तो करता है, लेकिन न तो द्वंद्व रुक रहा है न ही हाथियों की मौत रुक रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि वन तब तक सलामत रहेगा, जब उसमें वन्य जीव होंगे. छत्तीसगढ़ का 44 प्रतिशत भू-भाग वनों से घिरा है. मगर, यहां रहनें वाले वन्य जीव सुरक्षित नहीं हैं. इंसानी दखल वनों पर इतना बढ़ गया है कि इंसान और हाथियों के बीज द्वंद जारी है. 30 से अधिक हाथियों का झुंड पूरे साल यहां के वनों में विचरण करते हैं.

उनके विचरण के बीच ही मानव से उनकी लड़ाई भी दिखाई देती है. इस लड़ाई में दोनों की मौत होती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2001 से आज तक 70 हाथियों की मौत हो चुकी है, जबकि 195 इंसानों की जान गई है. सबसे ज्यादा हाथियों की मौत रायगढ़ जिले में दर्ज की गई है. इसी जगह हाथियों ने चीनी इंजीनियर जहांग की टाऊ को रौंद कर मार डाला था. आरटीआई में यह बात निकलकर आई कि यहां 21 दिसंबर 2001 से आज तक हाथियों के कुचलने से 159 ग्रामीणों की मौत हो चुकी है. ये मौतें वन परिक्षेत्र छाल में हुई हैं. इसी तरह वन परिक्षेत्र धरमजयगढ़ में हाथियों के कुचलने से अब तक 109 ग्रामीणों की मौत हो चुकी है.

इस जगह इतनी हुई मौतें
वन मंडल धरमजयगढ़ में 3 दिसंबर 2005 से आज तक 64 जंगली हाथियों की मौत हो चुकी है. सबसे ज्यादा हाथियों की मौत वन परिक्षेत्र छाल और धरमजयगढ़ में हुई हैं. यहां अब तक 54 हाथियों की मौत हुई है. इन सभी की मौत का अलग-अलग कारण है. इन क्षेत्रों के अलावा कोरबा, सरगुजा संभाग, धमतरी, महासमुंद सहित कई वन परिक्षेत्र में हाथियों की मौत और उनके कुचलने इंसानों की मौत हुई है. हाथी रहवास में कोल ब्लॉक आरटीआई कार्यकर्ता और वन्य जीव प्रेमी सजल मधु ने बताया कि हाथियों की मौत के आंकड़े  चौकाने वाले हैं. एलीफेंट कॉरिडोर बनाने के बजाय हाथियों के रहवास क्षेत्र में 17 कोल ब्लॉक की अनुमति दी जा चुकी है.

वनों में बढ़ गया इंसानों का दखल
वनों में इंसानों का दखल बढ़ गया है. उद्योग लगाए गए हैं. जहां हाथी सहित अन्य वन्य जीव रहते हैं वहां उद्योगों के ईआईए रिपोर्ट में वन्य जीवों का उल्लेख भी नहीं है. करोड़ों रुपये खर्च मगर नतीजा जीरो. एक वक्त था जब छत्तीसगढ़ में हाथी ओडीशा और झारखंड से आते थे. अब हाथियों ने यहां स्थायी बसेरा बना लिया है. हाथियों के रहवास के लिए कुमकी हाथी भी लाया गया. हाथियो के दल की निगरानी के लिए आईडी कॉलर लगाए गए, मगर नतीजा सिफर है. यही वजह है कि हाथियों की मौत लगातार जारी है. उन्होंने कहा कि कहीं हाथियों की स्वाभाविक मौत है तो कहीं करंट की चपेट में आकर उनकी मौत हुई है.

Tags: Chhattisgarh news, Raipur news

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