हस्तकला से बाबर की बदली किस्मत, लकड़ी से बनाते हैं आकर्षक खिलौने, जानें कमाई

दीपक कुमार, बांका: भारतीय संस्कृति में आपको हर जगह हस्तकला का समावेशन मिल जाएगा. खासकर लकड़ी पर आकर्षक नक्काशी भारत की पुरातन काल को परिलक्षित करता है. हालांकि वर्तमान दौर में यह कला कहीं धूमिल सी होती जा रही है. हाथ की कलाकारी पर अब मशीन भारी पड़ रहा है. हालांकि कुछ ऐसे भी कुशल कारीगर हैं जो हस्तकला को अब भी जीवंत रखा है और इसे कमाई का जरिया भी बनाया है. हस्तकला ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का बड़ा स्रोत भी है.

हालांकि हस्तकला का बाजार अब सिमटते जा रहा है कि बिहार के बांका में बाबर इसको जीवंत रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. बांका जिला के अमरपुर प्रखंड के चोरवई गांव में आज भी हस्तकला जीवित हैं. बाबर आज भी बच्चों के लिए लकड़ी का खिलौना बनाते हैं.

पूर्वजों से खिलौने बनाने की चली आ रही है परंपरा
बाबर ने बताया कि लोग अपने बच्चों को बालपन वाले खिलौने खेलने के लिए देते थे. वहीं खिलौने बनाने का काम करते हैं. बाबर ने बताया कि लटुटू, गुड्डे, डांडिया, मोहर हैंडल का निर्माण करते हैं. बाबर ने बताया कि यह परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है जिसको जीवंत रखने की कोशिश कर रहे हैं. इस हस्तकला को लोग भूल रहे हैं. उन्होंने बताया कि जो भी उत्पाद बनाते हैं सभी लोकल के साथ राज्यस्तरीय बाजार और कोलकाता भेजा जाता है.

उन्होंने बताया कि कटोरिया के जंगलों से लकड़ी काटकर लाते हैं. जिसके बाद पूरा परिवार खिलौने बनाने के लिए लड़कियों को अच्छी तरह से साफकर हाथों से कढ़ाई कर खिलौने का निर्माण करते हैं. साथ ही सुंदर दिखने के लिए खिलौने पर रंगीन आकृतियां भी बनाई जाती है जो बच्चों को पसंद आता है.

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सालाना 6 से 7 लाख का करते हैं कारोबार
बाबर ने बताया कि एक दिन में एक कारीगर 200 खिलौने का निर्माण करते हैं. जिसकी कीमत 10 रूपए प्रति खिलौना होता है. उन्होंने बताया कि परिवार में पांच सदस्य हैं और सभी मिलकर रोाजना एक हजार खिलौने बना लेते है. सालाना 6 से 7 लाख तक की बिक्री कर लेते हैं. बाबर ने बताया कि इस आधुनिक जमाने में लोग जहां आधुनिक खिलौनों से अपने बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित करते हैं, वही आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो पारंपरिक खिलौने पर जोर देते हैं और बच्चों को इससे काफी लाभ होता है.

लट्टू खेलने से बच्चों में चुस्ती फुर्ती के साथ स्वास्थ्य भी ठीक रहता है. पहले इसी खिलौने से खेलकर बच्चे बड़े होते थे, लेकिन आज मोबाइल के पीछे दीवाने हैं. उन्होंने बताया कि हस्तकला के प्रति सरकार की भी उदासीन रवैया है, जिससे हस्तकला दम तोड़ता जा रहा है.

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