मंगला तिवारी/मिर्जापुर: माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. आज बसंत पंचमी है. इस तिथि का विशेष महत्व इसलिए भी हो जाता है क्योंकि ऋतुराज बसंत की शुरुआत इसी दिन से होती है. मान्यता अनुसार बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती (Maa Saraswati) का पूजा की जाती है. आइए आज जानते हैं मां सरस्वती के स्वरूप के रहस्य को.
धर्मगुरु त्रियोगी मिट्ठू मिश्र बताते हैं कि नवरात्र में मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी माता को देवी सरस्वती का ही रूप माना जाता है. ब्रह्मचारिणी माता के रूप में देवी सरस्वती पीत वस्त्र धारण करती है. माता सरस्वती के हाथों में वीणा, पुस्तक और माला है. मां सरस्वती हंस के सवारी पर आरूढ़ होती हैं. उन्होंने बताया कि मां सरस्वती का प्रिय रंग भी पीतांबर माना जाता है. इसलिए उनकी पूजा में हर वस्तु पीतवर्णित हो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने बताया कि पीत वस्त्र त्याग और भक्ति भाव का प्रतीक है. पीले रंग का संबंध गुरु ग्रह से भी माना जाता है जो ज्ञान के कारक ग्रह हैं. इसलिए देवी सरस्वती को ज्ञान का प्रतीक रंग पीला भी प्रिय है.
हाथों में पुस्तक होने का क्या है मतलब
धर्मगुरु त्रियोगी मिट्ठू मिश्र ने बताया कि सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है. सृष्टि में ज्ञान और विज्ञान संबंधी जितनी भी विद्याएं हैं, सब की देवी माता सरस्वती है. उन्होंने बताया कि देवी सरस्वती के हाथों में पुस्तक का रहस्य यह है की देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं. और पुस्तक ज्ञान का भंडार है. वेद मां सरस्वती के हाथों की शोभा है. इसलिए सरस्वती पूजा के दिन बच्चे उन पुस्तकों को माता सरस्वती के समीप रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं. ऐसी मान्यता है की माता सरस्वती की कृपा होने से कठिन विषय भी समझना सरल हो जाता है.
क्यों है मां सरस्वती के हाथों में वीणा ?
माता सरस्वती के हाथों में वीणा होने का रहस्य को लेकर धर्मगुरु त्रियोगी मिट्ठू मिश्र ने बताया कि इस सृष्टि में देवी सरस्वती की आगमन से पहले कोई ध्वनि नहीं थी. पूरी सृष्टि में सब मूक, शांत और नीरस था. देवी सरस्वती वीणा लेकर प्रकट हुई और जब अपने वीणा के तारों को झंकृत किया तो नदियों और पक्षियों में स्वर गुंजायमान हुआ.
अक्ष माला का क्या है रहस्य?
धर्मगुरु त्रियोगी मिट्ठू मिश्र ने बताया कि देवी सरस्वती के एक हाथ में अक्ष माला है जिसे सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्माजी भी धारण करते हैं. यह माला ज्ञान के अक्षय होने का प्रतीक है. अक्ष माला ‘अ’ वर्ण से प्रारम्भ होकर ‘क्ष’ वर्ण पर समाप्त होती है. वो बताते हैं कि इसका मतलब है जो साधक की तरह ध्यान लगाकर मनका फीते हैं वही परम ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 14, 2024, 21:27 IST