स्‍क्रब टाइफस क्‍या है? रहस्‍यमयी बुखार के कई राज्‍यों में बढ़ रहे केस, क्‍या हैं लक्षण और इलाज

Scrub Typhus: हिमाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड के बाद अब उत्‍तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान समेत कई राज्‍यों में इन दिनों एक रहस्‍यमयी बुखार के मामले बढ़ते जा रहे हैं. हर दिन दर्जनों नए मामले सामने आ रहे हैं. दरअसल, इस बुखार को रहस्‍यमयी इसलिए माना जा रहा है, क्‍योंकि इसके लक्षण तो डेंगू फीवर से मिलते-जुलते हैं, लेकिन जांच में ना तो डेंगू निकलता है और ना ही टायफाइड फीवर. अब डॉक्‍टरों का कहना है कि ये स्‍क्रब टाइफस फीवर है. इसे बुश टाइफस भी कहते हैं. ये बीमारी बैक्‍टीरिया से संक्रमित पिस्‍सु के काटने पर फैलती है. इसके बाद स्‍क्रब टाइफस बुखार बन जाता है. शुरुआत में किसान और बागवान इस बीमारी का शिकार हुए, लेकिन अब ये सभी में फैल रहा है.

स्‍क्रब टाइफस बुखार से काफी लोगों की जान भी जा चुकी है. स्‍क्रब टाइफस के मामलों में मृत्‍यु दर 6 फीसदी बताई जा रही है. अब सवाल ये उठता है कि ये बीमारी फैलती कैसे है. विशेषज्ञों का कहना है कि खेतों और झाड़ियों में रहने वाले चूहों पर चिगर्स कीट पाया जाता है. अगर संक्रमित चिगर्स या चूहों का पिस्‍सू काट लेता है तो ओरेंशिया सुसुगेमोसी बैक्टीरिया इंसान के रक्‍त में प्रवेश कर संक्रमित कर देता है. स्क्रब टाइफस से कोई भी व्‍यक्ति संक्रमित हो सकता है. स्क्रब टाइफस के संक्रमण के ज्यादातर मामले चीन, भारत, जापान, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, साउथ पूर्वी एशिया में ज्यादा मिलते हैं.

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क्‍या हैं स्क्रब टाइफस के लक्षण?
बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी के लक्षण पिस्सु के काटने के 10 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं. स्‍क्रब टाइफस से संक्रमित व्यक्ति को बुखार के साथ ठंड लगती है. इसके अलावा सिरदर्द और बदन दर्द के साथ मांसपेशियों में भी तेज दर्द होता है. संक्रमण ज्‍यादा होने पर हाथ, पैर, गर्दन और कूल्हे के नीचे गिल्टियां हो जाती हैं. साथ ही संक्रमण के बाद सोचने-समझने की क्षमता कम होने लगती है. कभी-कभी शरीर पर दाने भी हो सकते हैं. अगर समय पर इलाज ना कराया जाए तो भ्रम से लेकर कोमा तक की समस्‍या महसूस होने लगती है. कुछ लोगों में ऑर्गन फेलियर और इंटरनल ब्‍लीडिंग भी हो सकती है.

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स्‍क्रब टाइफस के मामलों में मृत्‍यु दर 6 फीसदी बताई जा रही है.

स्‍क्रब टाइफस से कैसे करें बचाव?
महाराष्ट्र, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में स्क्रब टाइफस को लेकर अलर्ट जारी किया गया है. स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों के मुताबिक, स्क्रब टाइफस को लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए. अपने हाथों और पैरों को अच्छे से ढक कर रखें. संक्रमित होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें. स्क्रब टाइफस से बचने के लिए घर के आसपास घास या झाड़ियां ना बढ़ने दें. अगर हैं तो समय-समय पर सफाई करें. शरीर को साफ रखें और साफ कपड़े पहनें. घर के आसपास पानी इकट्ठा ना होने दें. घर और आसपास कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराना बेहतर रहेगा.

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कैसे पड़ा बीमारी का नाम, जांच कैसे?
तेज बुखार के साथ होने वाली ये बीमारी झाड़ियों यानी स्क्रब या बुश में पाए जाने वाले माइट यानी चींचड़ा के काटने से होती है. इसीलिए इसका नाम स्क्रब टाइफस रखा गया है. इसे बुश टाइफस भी कहते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, स्क्रब टायफस की जांच के लिए एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट यानी एलीजा टेस्ट किया जाता है. ये टेस्‍ट आईजीजी और आईजीएम की जानकारी अलग से देता है. इसमें मरीज का ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडीज का पता किया जाता है. एक जांच किट की कीमत करीब 18,000 से 20,000 रुपये होती है. वहीं, एक किट के जरिये 70 से 75 टेस्ट किए जा सकते हैं.

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स्क्रब टायफस की जांच के लिए एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोसोरबेंट यानी एलीजा टेस्ट किया जाता है.

स्क्रब टाइफस का क्‍या है इलाज?
परीक्षण में स्‍क्रब टाइफस रोग की पुष्टि होने के बाद डॉक्‍टर्स बीमारी की गंभीरता कम करने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं. साथ ही दूसरे लक्षणों को ध्यान में रखते हुए उपचार के लिए अन्‍य दवाइयां भी दी जाती हैं. डॉक्टर्स की पूरी कोशिश मरीज की हालत गंभीर होने से रोकना और रोगी को कोमा जैसी स्थिति में नहीं जाने देने की रहती है. बता दें कि स्क्रब टाइफस से बचाव के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई गई है. स्‍क्रब टाइफस से बचाव ही सबसे अच्‍छा इलाज है. वहीं, अगर संक्रमण हो जाता है तो घर पर इलाज करने के बजाय डॉक्‍टर से तुरंत परामर्श लेना सबसे अच्‍छा विकल्‍प है. ये बीमारी सितंबर-अक्‍टूबर के महीने में सबसे ज्‍यादा फलती है.

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