स्कूटर मैकेनिक ने बनाया सिख म्यूजियम, जानें क्या है परविंदर का उद्देश्य और दर्द ?

अंकित दुदानी/चंडीगढ़. हमारे वीरों ने देश को आजाद करने के लिए या फिर अपने धर्म को बचाने के लिए न केवल खुद को कुर्बान कर दिया था. अपनी शहादत दे दी लेकिन मुस्लिम धर्म को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया. ऐसे ही सिख धर्म का इतिहास जो कि अपने आप में बहुत कुछ कहता है ऐसे वीरों की शहादतों और वीर गाथाओं से आज की पीढ़ी को अवगत कराने के लिए बलौंगी के रहने वाले परविंदर सिंह ने एक सिख म्यूजियम बनाया है. जिसमें सिखों की विरासत को सहेजने के लिए बहुत सारे स्टैचू बनाए गए हैं. जो की अपनी कहानी खुद ही कह रहे हैं

चंडीगढ़ में एक शख्स सिखों के इतिहास को सहेजने की कोशिशों मे जुटा है. वह अपने हाथों से पंजाब के शहीदों की मूर्तियां बनाकर म्यूजियम में लगाकर सिखों की विरासत को आगे बढ़ा रहा है.मोहाली के पीसीएल बलौंगी रोड पर श्मशान घाट के पास यह म्यूजियम सिख अजायब घर के नाम से स्थित है. परविंदर सिंह बताते हैं कि उनका पेशा इस काम से बिल्कुल अलग था लेकिन उन्होंने युवा पीढ़ी को अपने सिख इतिहास और संस्कृति से जोड़ने के लिए यह काम शुरू किया था. पहले लखनौर में उन्होंने यह म्यूजियम स्थापित किया था. इसके बाद अब बलौंगी में स्थापित किया है. स्थायी जगह न मिल पाने से थोड़ी दिक्कत आ रही है.  हालांकि वह अपनी पूरी ताकत से जुटे हुए हैं.

पेशे से स्कूटर मैकेनिक है परविंदर सिंह
कहते हैं शौक बड़ी चीज है. लेकिन बहुत कम लोग अपने शौक को जीवन का लक्ष्य बना पाते हैं. लेकिन आज हम बता रहे हैं आपको एक ऐसे शख्स के बारे में जो हर दिन अपने शौक को जी रहा है और इसे लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहा है. यह कहानी है चंडीगढ़ के 57 साल के परविंदर सिंह की. जिन्होंने सिखों के इतिहास को संवारने के लिए सिख म्यूजियम तैयार किया है. परविंदर सिंह बचपन से ही रचनात्मक प्रवृत्ति के रहे है. बचपन से ही उन्हें मूर्तियां बनाने का शौक रहा है. पेशे से स्कूटर मैकेनिक होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने शौक के साथ समझौता नहीं किया और धीरे-धीरे अपने हाथ की कला को मूर्तियों में उतारना शुरू कर दिया. साल 2000 से उन्होंने मोहाली में सिख संग्रहालय बनाना शुरू किया था.

सिखों की विरासत को है आगे बढ़ाना है लक्ष्य
परविंदर सिंह ने न्यूज़ 18 से बातचीत में बताया कि हमारा सिख इतिहास कोई ज्यादा पुराना नहीं है लेकिन फिर भी जिन लोगों ने कुर्बानियां दी हैं उसको बताने वाला कोई नहीं. इसी सोच के साथ उन्होंने सिख संग्रहालय के बारे में सोचा और वहीं से उनका सफर शुरू हो गया. परविंदर बताते है कि वह फाइबर मूर्तियां बनाते हैं और मूर्ति के कपड़े, बाल, दाढ़ी आदि बनाने में उनकी पत्नी मदद करती हैं. एक मूर्ति बनाने में पैसे की तंगी के कारण कई बार छह से नौ महीने तक लग जाते है. लेकिन अगर पैसे हो तो एक से दो महीने में मूर्ति तैयार कर दी जाती है. परविंदर ने बताया कि अपनी इस कला से वह लोगों को सिख इतिहास के एक हिस्से के बारे में शिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने सिख शहीदों की वीरता को दर्शाया है. उन्होंने कहा, “मैं एक स्थायी मंच बनाना चाहता था, जहां लोग आसानी से सिखों के समृद्ध इतिहास के बारे में जान सकें.”

सिख वीरों की मूर्तियां
परविंदर सिंह शहीद ऊधम सिंह, बाबा बंदा सिंह बहादुर, महाराजा रणजीत सिंह, शहीद भाई तारू सिंह, शहीद मतिदास, भाई दयालजी, शहीद भाई मनी सिंह, सिख साहेबजादे शहीद जोरावर सिंह और फतेह सिंह आदि कई वीर सपूतों के स्टेच्यू अभी तक अपने म्यूजियम में लगा चुके है.

परविंदर सिंह के मन में है एक दर्द 
परविंदर ने न्यूज़ 18 से बातचीत में कहा कि इतना सब करने के बावजूद भी उनका मन दुखी होता है क्योंकि जहां अपना ये म्यूजियम बनाया है वह सरकारी पंचायत की जमीन है और पंचायत ने उन्हें दे दी थी लेकिन बाद में गमाडा ने इसे टेक ओवर कर लिया था. परविंदर ने बताया कि उनकी इच्छा है की वो यहां मजबूत और अच्छा म्यूजियम बनाए लेकिन जब भी वो कुछ कंस्ट्रक्शन करने लगते है तो उन्हें सरकार की ओर से नोटिस आ जाता है. परविंदर ने कहा कि उन्हें सरकार से उम्मीद है कि सरकार उनकी इस कला को समझने की कोशिश करेगी और उन्हें इस जमीन पर बड़ा म्यूजियम बनाने की इजाजत देगी.

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