सोनिया गांधी ने संसद पहुँचने के लिए इस बार लोकसभा की बजाय राज्यसभा की राह क्यों पकड़ी?

सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। इसी के साथ ही उत्तर प्रदेश के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से निवर्तमान सांसद सोनिया गांधी ने लोकसभा में अपनी राजनीतिक पारी को विराम देते हुए राज्यसभा की राह पकड़ ली है ताकि वह संसद की सदस्य बनी रह सकें। वैसे पहले ही माना जा रहा था कि चूंकि सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है इसलिए वह लोकसभा चुनाव लड़ने की बजाय राज्यसभा के जरिये संसद पहुँचें। लेकिन यदि वाकई अस्वस्थता के चलते ही सोनिया लोकसभा की बजाय राज्यसभा जा रही हैं तो यह सोच बिल्कुल भी ठीक नहीं है। यह सही है कि वरिष्ठ नेताओं के अनुभव और मार्गदर्शन की सभी पार्टियों को आवश्यकता होती है लेकिन यह तो जरूरी नहीं है कि वह वरिष्ठ व्यक्ति संसद के किसी सदन का हिस्सा होगा तभी उसके अनुभव का लाभ उठाया जा सकेगा।

राज्यसभा की एक सीट अस्वस्थ व्यक्ति को देने की बजाय किसी ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति को देनी चाहिए जो देश और समाज के लिए अधिक परिश्रम के साथ काम कर सके। यहां हमारा यह कहने का बिल्कुल भी आशय नहीं है कि बुजुर्ग और अस्वस्थ व्यक्ति को किनारे कर देना चाहिए। दरअसल जिस तेजी के साथ दुनिया आगे बढ़ रही है उसी तेजी से हमें भी कदम ताल बनाये रखने या दुनिया से आगे निकलने के लिए और तेजी के साथ काम करने की जरूरत है। इसे उदाहरण के साथ समझें तो देखें कि अब तक राजस्थान से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह राज्यसभा सदस्य थे। यह सही है कि डॉ. मनमोहन सिंह ने देश के लिए कई मायनों में अहम योगदान दिया है लेकिन सवाल उठता है कि क्या वह अपने इस कार्यकाल में राज्यसभा में कोई सार्थक काम कर पाये या राजस्थान के हितों को रख पाये? जवाब होगा नहीं। तो सवाल उठता है कि क्यों अपने वरिष्ठ नेताओं को पदों पर बैठाये रखने के लिए राजनीतिक दल संसदीय सीटों को आरक्षित रख लेते हैं? क्या पार्टी में और योग्य नेताओं का अकाल पड़ गया है? 140 करोड़ देशवासियों में से क्या कोई भी योग्य व्यक्ति राजनीतिक दलों को नहीं मिलता है?

बात चूंकि कांग्रेस की हो रही है तो यह भी जानना जरूरी है कि सोनिया गांधी ने एक रिकॉर्ड बनाया है। वह रिकॉर्ड यह है कि वह कांग्रेस के गठन के बाद से उसकी एकमात्र ऐसी अध्यक्ष रही हैं जिन्होंने सबसे लंबे समय तक पार्टी का नेतृत्व किया। वैसे उनका यह नेतृत्व परिवारवाद के विस्तार का रहा। सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते ही उनके बेटे राहुल गांधी पार्टी में आगे बढ़े और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा की भी पार्टी के मामलों में सक्रिय भूमिका बढ़ी। इसके अलावा, कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर होने के बावजूद गांधी परिवार पार्टी के मामलों में प्रभावी भूमिका में बना हुआ है। देखा जाये तो इसमें कोई दो राय नहीं कि 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का आधार रख कर सोनिया गांधी ने केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दस साल तक उनकी पार्टी केंद्र की सत्ता में बनी रही। सोनिया गांधी प्रधानमंत्री तो नहीं बन पाईं लेकिन मनमोहन सरकार के दौरान सोनिया के नेतृत्व वाली समिति ही सुपर प्रधानमंत्री समझी जाती थी। देखा जाये तो इतना सब हासिल करने के बाद जरूरी नहीं था कि सोनिया गांधी संसद की सदस्य बनी रहें लेकिन पद का मोह छोड़ पाना आसान नहीं है।

वैसे कांग्रेस की ओर से भले यह कहा जा रहा हो कि सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से राज्यसभा गई हैं मगर यह भी एक राजनीतिक हकीकत है कि सोनिया गांधी का इस बार रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीत पाना आसान नहीं होता। पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी से उनके बेटे राहुल गांधी हार गये थे और खुद सोनिया गांधी का जीत का अंतर पहले से बहुत कम हो गया था। पांच साल में वह रायबरेली बमुश्किल ही गई होंगी। अब तो उनकी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा भी रायबरेली का हाल-चाल लेने नहीं जातीं। कोविड के समय में भी सोनिया ने अपने संसदीय क्षेत्र से मुंह फेरे रखा। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों और पंचायत चुनावों में जिस तरह अमेठी और रायबरेली समेत पूरे प्रदेश से कांग्रेस का लगभग सूपड़ा ही साफ हो गया उससे सोनिया गांधी के लिए अपने राजनीतिक जीवन के इस दौर में हार का मुंह देखना आसान नहीं होता। इसलिए भी सोनिया गांधी ने इस बार उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने का साहस नहीं दिखाया।

हम आपको बता दें कि सोनिया गांधी 1999 से लगातार लोकसभा सदस्य हैं और वर्तमान में वह उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वह अमेठी से भी लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं। वह कर्नाटक के बेल्लारी से भी चुनाव जीत चुकी हैं। उस सीट पर उन्होंने भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज को हराया था। हालांकि बाद में उन्होंने उस सीट को छोड़ दिया था। बहरहाल, यह पहली बार होगा कि वह संसद के उच्च सदन में जाएंगी। वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद राज्यसभा में प्रवेश करने वाली गांधी परिवार की दूसरी सदस्य होंगी। इंदिरा गांधी अगस्त, 1964 से फरवरी 1967 तक उच्च सदन की सदस्य थीं।

-नीरज कुमार दुबे

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