सुरंग में जिंदगी की जंगः प्यास बुझाने चट्टानों से टपकता पानी चाटा..

रांची. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग से मंगलवार रात सुरक्षित बचाए गए 41 श्रमिकों के संघर्ष का किस्सा सामने आया है. झारखंड के रहने वाले एक श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया कि हादसे के बाद उन लोगों ने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जिंदा रहे.

झारखंड के 22 साल के श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया कि उन्होंने 12 नवंबर को सुरंग का हिस्सा ढहने के बाद मौत को बहुत करीब से देखा. बेदिया सहित 41 श्रमिक मलबा ढहने के बाद 12 नवंबर से सुरंग में फंसे थे. उन्होंने बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से फोन पर बातचीत में अपनी कहानी साझा की. बेदिया ने कहा कि मलबा ढहने के बाद तेज चीखों से पूरा इलाका गूंज गया. हम सब ने सोचा कि हम सुरंग के भीतर ही दफन हो जाएंगे. शुरूआती कुछ दिनों में हमने सारी उम्मीदें खो दी थीं.

प्यास बुझाने चट्टानों से टपकता पानी चाटा
अनिल बेदिया ने आगे कहा कि यह एक बुरे सपने जैसा था. हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और पहले दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे. बेदिया रांची के बाहरी इलाके खिराबेड़ा गांव के रहने वाले हैं, जहां से कुल 13 लोग एक नवंबर को काम के लिए उत्तरकाशी गए थे. उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि किस्मत ने उनके लिए क्या लिखा है. बेदिया ने बताया कि जब आपदा आई तो सौभाग्य से खिराबेड़ा के 13 लोगों में से केवल तीन ही सुरंग के अंदर थे.

41 में से 15 मजदूर झारखंड के रहने वाले
सुरंग के भीतर फंसे 41 श्रमिकों में से 15 श्रमिक झारखंड से थे. ये लोग रांची, गिरिडीह, खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम के रहने वाले हैं. मंगलवार की रात जब इन श्रमिकों को बाहर निकाला गया तब उनके गांवों में खुशी से लोग जश्न मनाने लगे. बेदिया ने बताया कि हमारे जीवित रहने की पहली उम्मीद तब जागी जब अधिकारियों ने लगभग 70 घंटों के बाद हमसे संपर्क स्थापित किया. उनके अनुसार, उनके दो पर्यवेक्षकों ने उन्हें चट्टानों से टपकता पानी पीने के लिए कहा.

घोर चिंता में गुजरे शुरुआती 10 दिन
बेदिया ने कहा कि हमारे पास सुरंग के अंदर खुद को राहत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था. आखिरकार, जब हमने बाहर से हमसे बात करने वाले लोगों की आवाजें सुनीं, तो दृढ़ विश्वास और जीवित रहने की आशा ने हमारी हताशा को खत्म कर दिया. उन्होंने कहा कि शुरूआती दस दिन घोर चिंता में बिताने के बाद पानी की बोतलें, केले, सेब और संतरे जैसे फलों के अलावा चावल, दाल और चपाती जैसे गर्म भोजन की आपूर्ति नियमित रूप से की जाने लगी.

सिलक्यारा टनल से निकले मजदूर की दास्तां: प्यास बुझाने चट्टानों से टपकता पानी चाटा, मुरमुरे खाकर मिटाई भूख

पिछले दो सप्ताह से मां ने नहीं बनाया खाना
अनिल बेदिया ने कहा कि हम जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकलने के लिए प्रार्थना करते थे. आखिरकार भगवान ने हमारी सुन ली. उनके गांव के ही एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि चिंता से बेहाल उसकी मां ने पिछले दो सप्ताह से खाना नहीं बनाया था और पड़ोसियों ने जो कुछ भी उन्हें दिया, उसी से परिवार का गुजारा चल रहा था. खिराबेड़ा गांव के रहने वाले लकवाग्रस्त श्रवण बेदिया (55) का इकलौता बेटा राजेंद्र (22) भी सिलक्यारा सुरंग का कुछ हिस्सा धंसने से अंदर फंसे श्रमिकों में शामिल था. मंगलवार शाम को अपने बेटे के बाहर निकाले जाने की खबर के बाद उन्हें व्हीलचेयर पर जश्न मनाते देखा गया.

गांव के तीन लोग फंसे थे सुरंग के अंदर
राजेंद्र के अलावा गांव के दो अन्य लोग, सुखराम और अनिल भी 17 दिनों तक सुरंग के भीतर फंसे रहे. दोनों की उम्र करीब 20 साल के आसपास है. सुखराम की लकवाग्रस्त मां पार्वती भी बेटे के सुरंग में फंसे होने की खबर से गमगीन थी. उनके सुरंग से बाहर निकलने के बाद उन्होंने खुशी जाहिर की.

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