‘सुपर फूड’ है यह जंगली फल, एक बार खा लिया तो नहीं लगेगी 8-9 घंटा भूख, वैज्ञानिक भी हैरान

कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल.हिमालय औषधियों का भंडार है. यहां कई ऐसी जड़ी-बूटियां व फल पाये जाते हैं, जो मनुष्य को निरोग रखने के साथ ताकतवर भी बनाते हैं. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के दूरस्थ गांव जखोल समेत अन्य कई उच्च हिमालयी इलाकों में नगदून या नगदूण नाम का एक पौधा पाया जाता है. इस पौधे की जड़ में लगने वाला फल किसी सुपर फूड से कम नहीं है. इसे खाने के बाद 8 से 9 घंटों तक भूख नहीं लगती है. इसका सेवन यहां के ग्रामीण भरपूर मात्रा में करते हैं, जिससे वे लंबे समय तक बुग्यालों या ग्लेशियर में अपने कार्य या ट्रेकिंग आदि कर सकें ग्रामीणों को इस सुपर फूड के बारे में पहले से जानकारी तो थी,लेकिन अब वैज्ञानिकों की इसे कंदमूल फल पर नजर पड़ने के बाद वैज्ञानिक भी इस फल को लेकर शोध में जुटे हुए हैं. नगदूण का पहाड़ के लोक जीवन में भी विशेष महत्व है. खासतौर पर उत्तरकाशी के जखोल गांव में नगदूण के नाम से मेले का भी आयोजन किया जाता है.

6000 फीट पर मिलता है नगदूण

नगदूण हिमालय में 6 हजार फीट की ऊंचाई वाले इलाकों में मिलता है. जखोल गांव में इसके नाम पर मेले का आयोजन भी होता है. नगदूण मेले के आयोजन से एक दिन पहले लोग नगदूण लाने के लिए जंगल की छानियों में जाते हैं. इस दौरान सभी जंगल से नगदूण के पौधों की जड़ पर लगे कंदमूल फल खोदकर लाते हैं. दूरदराज से लाई गई नगदूण का अलग-अलग तरीके से पकवान बनाये जाते हैं. नगदूण का हलवा या गोलियां बनाकर इसे घी व शहद के साथ खाया जाता है.

जब वैज्ञानिकों ने सीडीआरआई लैब बैंगलोर भेजा तो कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आये. इसमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन के साथ कार्बोहाइड्रेट, फैट समेत कई तरह के पोषक तत्व मिले हैं. यही कारण है कि एक बार इसको खाने से कई घंटों तक भूख नहीं लगती है. डॉ विजयकांत पुरोहित बताते हैं कि नगदूण को कच्चा नहीं खा सकते हैं. इससे पकाकर ही खाया जा सकता है. अगर कोई कच्चा खाता है, तो मूंह में सूजन की समस्या आती है.

नगदूण की खेती पर जोर

उच्च शिखरीय पादप शोध केंद्र (हेप्रेक) के निदेशक डॉ विजयकांत पुरोहित ने बताया कि नगदूण को लेकर रिसर्च किया जा रहा है. मल्टी लोकेशन पर इसे उगाने के प्रयास किये जा रहे हैं. बताया कि जखोल गांव से इसके कंद लाकर उखीमठ स्थित हेप्रेक की नर्सरी में लगाये गये हैं. साथ ही मॉनिटरिंग की जा रही है कि इसे स्थान परिवर्तन करने से नगदूण के फल में मौजूद, प्रोटीन समेत अन्य पोषक तत्वों में किसी तरह की कमी या बदलाव तो नहीं आ रहे हैं. अगर किसी तरह की कमी नहीं पाई जाती है, तो इसकी खेती को लेकर भी योजना तैयार की जायेगी.

कैसे बनाया जाता है नगदूण?

नगदूण को पहले अच्छे ढंग से धोया जाता है फिर उसका छिलका निकालकर ओखल में कूटा जाता है. इसके बाद नगदूण को अच्छे से पकाकर सिलबट्टे के ऊपर बारीक पीसा जाता है. ऐसा नगदूण के कड़वेपन को कम करने के लिए किया जाता है. इसके बाद इसे हलवा/खीर के रूप में या गास (एक गोला बनाकर) इसमें घी और शहद डालकर परोसा जाता है.

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